गणेश चतुर्थी का त्योहार भारत के कई राज्यों में मनाया जाता है। लेकिन महाराष्ट्र में इसे लेकर जो उत्साह देखने को मिलता है, उसकी तुलना किसी और राज्य से नहीं हो सकती। हालांकि मराठा शासन से पहले गणेश उत्सव महाराष्ट्र की परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं था। शुरू में यह केवल एक घरेलू समारोह हुआ करता था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इसे चर्चित करने का श्रेय बाल गंगाधर तिलक को दिया जाता है।
दो दशक से पत्रकारिता कर रहे धवल कुलकर्णी लिखते हैं कि शुरुआत में गणेश उत्सव पर ब्राह्मणों का वर्चस्व हुआ करता था। शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के पिता प्रबोधनकार ठाकरे और डॉ. अंबेडकर ने इस वर्चस्व का विरोध किया था। अपनी किताब ‘ठाकरे भाऊ’में कुलकर्णी लिखते हैं, “दादर में गणेश उत्सव का आयोजन सभी जाति के लोगों के चन्दे से किया जाता था लेकिन उसकी आयोजन समिति में ब्राह्मणों का वर्चस्व रहता था।”
पहले मिला निमंत्रण, फिर आने लगी जान से मारने की धमकी
द प्रिंट पर प्रकाशित एक लेख में कुलकर्णी ने चांगदेव भवानराव खैरमोडे द्वारा लिखी अंबेडकर की जीवनी ‘डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर खंड-2’ के हवाले से गणेश उत्सव और अंबेडकर से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बताया है।
खैरमोडे की किताब के मुताबिक, एक बार गणेश उत्सव की आयोजन समिति ने डॉ. अंबेडकर को उत्सव के दौरान बोलने के लिए आमंत्रित किया। हालांकि आमंत्रण देने के बाद सवर्ण हिंदुओं को इस बात की चिंता सताने लगी कि कहीं दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले डॉ. अंबेडकर की मौजूदगी से गणेश की मूर्ति ‘अपवित्र’ न हो जाए। वे सोचने लगे कि अगर ऐसा हो गया है तो उनकी आने वाली और पिछली पीढ़ियों को नरक की आग में जलना पड़ेगा।
खैरमोडे लिखते हैं कि दादर के अपर कास्ट हिंदुओं ने अंबेडकर को कार्यक्रम स्थल पर बोलने से रोकने के लिए ‘साजिश’ रचना शुरू कर दिया। अंबेडकर को जान से मारने की धमकी मिलने लगी। इससे परेशान होकर उनके सहयोगियों ने कार्यक्रम में न जाने की सलाह दी। लेकिन उन्होंने ठान लिया था कि कार्यक्रम में जाना ही है। खैरमोडे के मुताबिक, “अंबेडकर ने कहा था किसी न किसी दिन तो मरना ही है, फिर लड़ते हुए क्यों न मरे।”
जब रिवॉल्वर लेकर गणेश उत्सव में पहुंचे डॉ. अंबेडकर
किताब की मानें तो अम्बेडकर अपने कोट की जेब में भरी हुई रिवॉल्वर लेकर समारोह के लिए रवाना हुए। उनके अंगरक्षक बलराम माने ने कुछ महार पहलवानों को भी बुलाया, जो कार्यक्रम स्थल पर अंबेडकर की सुरक्षा में खड़े रहे। महार दलित समुदाय की एक जाति है। डॉ. अंबेडकर खुद भी महार जाति से थे।
खैर, कार्यक्रम स्थल पर अंबेडकर के भाषण को बाधित करने के कुछ असफल प्रयास हुए। लेकिन उन्होंने अपना भाषण जारी रखा। कार्यक्रम में बोलते हुए अंबेडकर ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदू समुदाय तब तक मजबूत नहीं हो सकता जब तक वह अपनी रूढ़िवादी धारणाओं को त्याग नहीं देता। अंबेडकर ने वहां मौजूद लोगों से ऊंची जातियों और अछूतों के साथ समान व्यवहार करने का भी आह्वान किया।