मुगल बादशाह अकबर (Akbar) अपने बेटे सलीम (जहांगीर) से बेइंतहा प्यार करते थे। लेकिन एक वक्त आया जब दो और बेटों सुल्तान दानियाल और सुल्तान मुराद की तरफ झुकने लगे। हालांकि दोनों की असमय दर्दनाक मौत हो गई और इसकी वजह बनी शराब। दोनों इस कदर शराब के नशे में डूब गए कि बादशाह को उनपर पहरा बैठाना पड़ा। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक शाज़ी ज़मां अपनी किताब ‘अकबर’ में भी इसका जिक्र करते हैं।
जंग लगी बूंदक में पी शराब
शाज़ी ज़मां लिखते हैं कि जब अकबर (Akbar) को सबसे छोटे बेटे शहजादे दानियाल की नशाखोरी की खबर मिली तो उनपर सख़्त पहरा बैठा दिया। शराब के बगैर दानियाल बेचैन होते जा रहे थे। एक दिन शहजादा दानियाल ने रोते हुए अपने वफादार सेवक से कहा कि ‘यका-ऊ-जनाजा’ में शराब डाल कर ले आओ मेरे लिये। शहजादे ने अपनी बंदूक को ‘यका-ऊ-जनाजा’ नाम दिया था। जिसका मतलब होता है एक ही गोली से जनाजा निकल जाना।
असमय मौत के मुंह में समा गए दो बेटे
इनाम के लालच में शहजादे का सेवक बंदूक की नली में शराब डालकर ले आया। बंदूक की नली में जंग लगी थी और उससे शराब पीते ही शहजादे ने बिस्तर पकड़ लिया। वह लगातार बीमार होता गया और 40वें दिन सिर्फ 35 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गया। शहजादे दानियाल के बड़े भाई मुराद की भी ठीक इसी तरह 30 साल की उम्र में मौत हो गई थी। मुराद को भी बुरी तरह शराब की लत लग गई थी।
शाज़ी ज़मां लिखते हैं कि अपने आखिरी दिनों में जब अकबर (Akbar) बुरी तरह बीमार पड़े तो उन्हें सबसे ज्यादा याद अपने प्रिय बेटे सलीम की आई, जो उन दिनों बगावती हो गए थे। अकबर की आंखें, सुल्तान मुराद और दनियाल को भी ढूंढ रही थीं, जो अब दुनिया में नहीं थे।
अकबर को तोहफे में मिला हुक्का
बीमारी के दिनों में बादशाह अकबर (Akbar) को अजीब-अजीब शौक हुआ। कभी हाथी की लड़ाई देखने की इच्छा जाहिर करते तो कभी कुछ और। इन्हीं दिनों में बादशाह के करीबी मिर्जा असद बेग दकन से लौटकर आए तो तो बादशाह के लिए हुक्का लेकर आए। तब अकबर ने पहली बार हुक्का देखा। अकबर ने अपने करीबी हकीम गिलानी को बुलाया। हकीम ने कहा कि इसका (हुक्के का) हमारी किताबों में जिक्र नहीं है, लेकिन यह नई इजाद है और इसके तने चीन से लाए जाते हैं। हां, फिरंगी हकीमों ने इसकी बहुत तारीफ की है।
अकबर ने सिर्फ एक बार लगाया था हुक्के को हाथ
बादशाह अकबर (Akbar) के करीबी और रिश्तेदार मिर्जा अजीज कोका ने कहा कि ये तंबाकू है और इसके बारे में मदीना में भी लोग जानते हैं। बादशाह के लिए दवा के तौर पर यह लाया गया है। हालांकि बादशाह के करीबी हकीम हुक्के के खिलाफ थे, लेकिन बादशाह ने कहा कि वो असद को खुश करने के लिए थोड़ा हुक्का गुड़गुड़ा लेते हैं। बहस चलती रही और हुक्के के बारे में और जानकारी के लिए ईसाई पादरी को बुलाया गया।
पादरी ने हुक्के की बहुत तारीफ की और बताया कि किस तरह अंग्रेज इसे गुड़गुड़ाते हैं, लेकिन वह हकीम को संतुष्ट नहीं कर पाया। वह पहला और आखिरी दिन था जब अकबर ने हुक्का पिया था। उसके बाद कभी हुक्के को हाथ नहीं लगाया।