ओडिशा के बालासोर में ट्रेनें वापस पटरी पर आ गई हैं। दो पैसेंजर ट्रेनों और एक मालगाड़ी की दुर्घटना में 288 लोगों की मौत हो गई थी। सैकड़ों लोग घायल हुए थे। दो जून को हुई दुर्घटना के तुरंत बाद जैसे ही बचाव कार्य शुरू हुआ, वैसे ही विपक्ष ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के इस्तीफे की मांग की।

हर बार किसी दुर्घटना के बाद “नैतिक जिम्मेदारी” के आधार पर रेल मंत्री के इस्तीफे की मांग की जाती है। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का उदाहरण हमेशा उद्धृत किया जाता है। 1956 में सितंबर और नवंबर के बीच तीन महीने के अंतराल में हुई दो बड़ी दुर्घटनाओं के बाद शास्त्री ने पद छोड़ दिया था।

नेहरू के पहले मंत्रिमंडल में रेल मंत्री थे शास्त्री

13 मई, 1952 को जवाहरलाल नेहरू के पहले मंत्रिमंडल में लाल बहादुर शास्त्री ने रेल और परिवहन मंत्री के रूप में शपथ ली थी। लोकसभा की प्राक्कलन समिति ने मई 1956 की रिपोर्ट में कमोबेश दुर्घटनाओं से संबंधित मुद्दों पर सरकार के प्रयासों की सराहना ही की गई थी।

पहली दुर्घटना

लेकिन अच्छा दौर ज्यादा समय तक नहीं चला। 2 सितंबर, 1956 की शुरुआत में सिकंदराबाद-द्रोणाचलम पैसेंजर ट्रेन आज के तेलंगाना में जादचेरला और महबूबनगर के बीच दुर्घटनाग्रस्त हो गई।

शास्त्री ने दुर्घटनास्थल का दौरा किया। 5 सितंबर, 1956 को उन्होंने लोकसभा में एक रिपोर्ट पेश की जिसमें पुलों के निरीक्षण पर रेलवे को जारी किए गए निर्देश थे। 13 सितंबर, 1956 को शास्त्री ने सदन में कहा, “कहने की जरूरत नहीं है कि इस दुर्घटना ने मुझे सबसे ज्यादा दुखी किया है और मैं साइट पर चीजों को देखकर व्यथित हूं। मारे गए लोगों की याद मुझे शायद लंबे समय तक परेशान करेगी। अब मुझे बताया गया है कि मरने वालों की संख्या 117 पहुंच गई है।”

विपक्ष ने सरकार और विशेष रूप से शास्त्री की सदन में कड़ी आलोचना की। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद आनंद नांबियार ने कहा, “रेलवे बोर्ड और मंत्रालय इसके (दुर्घटना) लिए जिम्मेदार है। उन्हें दुर्घटना को एक्सप्लेन करना चाहिए और पद को छोड़ना चाहिए।”

शास्त्री ने प्रधानमंत्री नेहरू को अपना इस्तीफा देने की पेशकश की, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। शास्त्री रेल मंत्री के पद पर बने रहे। चीजें वापस पटरी पर आ गई थीं लेकिन लंबे समय तक नहीं।

दूसरी दुर्घटना

बमुश्किल तीन महीने बाद एक और त्रासदी हुई। 23 नवंबर, 1956 की शुरुआत में तूतीकोरिन एक्सप्रेस मरुदैयार नदी में गिर गई। 150 से अधिक की मौत हो गई और 100 से अधिक घायल हो गए।

आचार्य जेबी कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी (केएमपीपी) के पुडुकोट्टई से सांसद के मुथुस्वामी वल्लथारासु ने लोकसभा में दुर्घटना पर स्थगन प्रस्ताव पेश किया। उन्होंने कहा, “कल के ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ अखबार में मैंने एक रिपोर्ट देखी कि लगभग 200 या अधिक (लोग) अभी भी नीचे दबे हुए हैं। उन्हें अभी तक निकाला जाना बाकी है। मैं इस बारे में कुछ स्पष्टीकरण चाहता हूं। संख्या 200, 300 या अधिक हो, यह अब सवाल नहीं है।”

जैसे ही विपक्ष ने हमला तेज किया, 26 नवंबर, 1956 को पंडित नेहरू ने शास्त्री के इस्तीफे की घोषणा की। लोकसभा में बोलते हुए पीएम ने कहा कि मुझे लगता है कि इस तरह के मामले में कोई बहाना अच्छा नहीं है।

पिछली घटनाओं का जिक्र करते हुए नेहरू ने कहा कि ये सब बड़ी चेतावनी है। उन्होंने कहा, “रेलवे को ठीक से चलाने के लिए हर संभव कदम उठाए जाने चाहिए ताकि आत्मविश्वास और सुरक्षा की भावना पैदा हो सके।”

शास्त्री ने इस्तीफे में क्या लिखा था?

इसके बाद पीएम ने सदन में शास्त्री का इस्तीफा पढ़ा, “मृतकों की संख्या पहले की तुलना में बहुत अधिक है और मुझे नहीं पता कि यह किस आंकड़े को छूएगा क्योंकि अब तक पूरा मलबा हटाना संभव नहीं हो पाया है। वहीं कई लोग ऐसे भी हैं जो गंभीर रूप से घायल हैं। मैं इस बेहद दुखद और चौंकाने वाली आपदा के बारे में लोगों और संसद की चिंता को भली-भांति महसूस कर सकता हूं। पिछली बार जब मैंने इस्तीफा दिया था तो आपने मेरा इस्तीफा स्वीकार नहीं किया था और मैं आपको फिर से शर्मिंदा नहीं करना चाहता। लेकिन मुझे लगता है कि यह मेरे लिए और पूरी सरकार के लिए अच्छा होगा अगर मैं चुपचाप अपने पद से इस्तीफा दे दूं। यह काफी हद तक लोगों के मन को शांत करेगा।”

पीएम नेहरू ने सदन को बताया, “इस पत्र के मिलने पर, मैंने उनसे कल रात भी बात की थी। मैंने उनके मन की पीड़ा और उनके द्वारा उठाए जा रहे बोझ को देखा। बाद में, मैंने इसके बारे में फिर से सोचा और मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि मेरे लिए उनका इस्तीफा स्वीकार करना बेहतर होगा।”

शास्त्री का इस्तीफा 7 दिसंबर, 1956 से प्रभावी रूप से स्वीकार कर लिया गया और उनकी जगह जगजीवन राम ने ले ली। इसके साथ शास्त्री पहली लोकसभा के दौरान नेहरू मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं रहे। 1966 में उनके निधन तक, यह एकमात्र अवधि थी जब शास्त्री केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर थे।

फिर कभी रेल मंत्री नहीं बने शास्त्री

इन दो रेल दुर्घटनाओं के बाद उठी मांगों के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रेल और परिवहन मंत्रालय को दो अलग-अलग मंत्रालय में विभाजित कर दिया। 17 अप्रैल, 1957 को दूसरी लोकसभा में नए मंत्रिमंडल का गठन किया गया। लाल बहादुर शास्त्री को परिवहन और संचार मंत्रालय का पदभार मिला। वह फिर कभी रेल मंत्री के रूप में नहीं लौटे।

हर रेल मंत्री को डराता है शास्त्री का इस्तीफा

दुर्घटना का “नैतिक उत्तरदायित्व” जो उन्होंने उठाया वह अकेले शास्त्री का नहीं हो सकता था, लेकिन यह स्वतंत्र भारत में अपनी तरह का पहला मामला था। और उनका इस्तीफा हर रेल मंत्री को डराता है। हर बार जब कोई बड़ी ट्रेन दुर्घटना होती है, तो शास्त्री की “नैतिक जिम्मेदारी” को विपक्ष द्वारा उद्धृत किया जाता है, सत्ता पक्ष द्वारा नहीं।