रुडयार्ड किपलिंग की कालजयी रचना ‘द जंगल बुक’ का प्रमुख पात्र ‘मोगली’ को भारत समेत दुनिया भर में पसंद किया जाता है। किपलिंग साहित्य का नोबेल पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के लेखक हैं। 1894 में लिखे ‘द जंगल बुक’ में दिखाया गया है कि कैसे परिवार से बिछड़े एक इंसान के बच्चे (मोगली) को जानवरों ने प्यार दुलार से पाला।
कई मायनों में यह जानवरों में पाए जाने वाले प्रेम और संवेदना की कहानी है। लेकिन विडंबना यह कि कहानियों में इंसानी बच्चे के प्रति जानवरों के प्रेम को उकेरने वाले रुडयार्ड किपलिंग असल जिंदगी में नस्लवाद के नाम पर इंसानों को नरसंहार के भी समर्थक थे।
जलियांवाला बाग हत्याकांड का किया था समर्थन
जलियांवाला बाग हत्याकांड को अंग्रेजी हुकूमत की सबसे बर्बर घटनाओं में गिना जाता है। 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के जलियांवाला बाग में बैसाखी का उत्सव मनाने इकट्ठा हुए निहत्थे लोगों पर अंग्रेज अफसर रेजिनॉल्ड डायर ने गोलियां चलवाई थीं। 50 बंदूकधारियों ने करीब 30,000 बच्चे, बूढ़े, महिला, जवान पर दस मिनट तक 1650 राउंड गोलियां बरसाई थीं। सरकार के दस्तावेजों की मानें तो सैकड़ों और स्वतंत्र सोर्स पर भरोसा करें तो करीब 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।
जलियांवाला बाग नरसंहार को जनरल डायर के आदेश अंजाम दिया गया था। इस अपराध के लिए डायर पर मुकदमा चला लेकिन कोई सजा नहीं हुई। डायर को नौकरी से बर्खास्त कर ब्रिटेन वापस भेज दिया गया। नोबेल विजेता साहित्यकार रुडयार्ड किपलिंग ने जलियांवाला बाग हत्याकांड का समर्थन किया। उनके मुताबिक, डायर ने लोगों को मारकर भारत को बचा लिया था।
इतना ही नहीं जब डायर के ब्रिटेन पहुंचने पर किपलिंग ने उनके लिए ‘क्राउड फंडिंग’ की थी यानी चंदा इकट्ठा करवाया था। खुद भी उन्होंने 10 पाउंड का योगदान दिया था। 1927 में डायर के अंतिम संस्कार पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए किपलिंग ने कहा था, उन्होंने अपना कर्त्वय निभाया।
ब्रिटेन के एक रूढ़िवादी अखबार ने डायर के लिए 26,000 पाउंड की राशि जुटाई थी। ‘जलियांवाला बाग’ पुस्तक के अनुसार, “इसकी शुरुआत ‘द मैन हू सेव्ड इंडिया’ शीर्षक से एक लेख से हुई थी, जिसे ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा जुलाई 1920 में डायर को उनके पद से हटाए जाने के कुछ ही दिनों बाद लिखा गया था।”
भारतीयों को समझते थे नीच
भारत के बॉम्बे में पैदा होने वाले रुडयार्ड किपलिंग घोर रंगभेदी व्यक्ति थे। वह अंग्रेज या गोरा होने को ईश्वरीय वरदान मानने वाली जमात का हिस्सा थे। पश्चिम को श्रेष्ठ मानने की अपनी नस्लवादी मानसिकता के कारण, वह भारत और दक्षिण एशिया को नीच और बोझ समझते थे।