Srilanka New President: श्रीलंका के चुनाव आयोग ने रविवार को एक पूर्व मार्क्सवादी राजनेता को देश का राष्ट्रपति घोषित किया। आयोग ने बताया कि पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट के नेता अनुरा कुमारा दिसानायका ने शनिवार के चुनाव में 42.31 फीसदी के साथ राष्ट्रपति पद जीता। विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा 32.76 फीसदी वोट के साथ दूसरे नंबर पर रहे। रानिल विक्रमसिंघे तीसरे नंबर पर रहे। हालांकि, विक्रमसिंघे ने अभी तक हार नहीं मानी है। लेकिन विदेश मंत्री अली साबरी ने कहा कि यह साफ है कि दिसानायका की जीत हुई है।
कौन हैं अनुरा दिसानायके
24 नवंबर 1968 को एक छोटे से गांव गैलेवेला में जन्मे दिसानायके चार साल की उम्र में केकीरावा चले गए। यहीं पर उनकी परवरिश हुई। अब अगर उनकी पढ़ाई की बात करें तो दंबूथगामा के गामिनी स्कूल से उन्होंने पढ़ाई शुरू की और बाद में उन्होंने दंबूथगामा सेंट्रल कॉलेज में एडमिशन लिया। यहां पर वह पढ़ाई में नंबर एक पर रहे। वे अपने स्कूल से यूनिवर्सिटी में एंट्री पाने वाले पहले छात्र बने।
1992 में दिसानायके ने कोलंबो के पास केलानिया यूनिवर्सिटी में बेचलर ऑफ साइंस इन एग्रीकल्चर में ग्रेजुएशन की। यहीं पर उन्हें अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने के लिए एक मंच मिला। 1995 में जब उन्होंने ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की तब तक श्रीलंका की राजनीति में उनका भविष्य साफ हो चुका था। 1997 में दिसानायके ने राष्ट्रीय राजनीति में अपना पहला कदम उस समय पर उठाया जब उन्हें जेवीपी की यूथ विंग का नेशनल ऑर्गेनाइजर नियुक्त किया गया। जेवीपी 1970 और 1980 के दशकों में हिंसक विद्रोहों की विरासत थी। वह अभी भी उन संघर्षों के घाव से उबरने की कोशिश कर रही थी।
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सीएम पद का चुनाव लड़े
एक साल बाद 1998 में उन्हें जेवीपी की केंद्रीय समिति और फिर इसकी राजनीतिक समिति में शामिल किया गया। इससे पार्टी में एक अहम खिलाड़ी के तौर पर उनकी भूमिका को देखा जाने लगा। चुनावी राजनीति में उनका पहला पड़ाव साल 1998 के केंद्रीय प्रांतीय परिषद चुनावों में शुरू हुआ। यहां पर वह बतौर सीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े। हालांकि, जेवीपी परिषद की करारी शिकस्त हुई। लेकिन इससे उनको यह फायदा हुआ कि वोटर्स के बीच में वह अपनी अच्छी खासी पैठ बनाए पाए। दो साल के बाद में दिसानायके संसद के लिए चुने गए।
2004 में दिसानायके की चर्चा उस समय होने लगी जब उन्होंने कुरुनेगला जिले से संसदीय चुनाव लड़ा और लोगों ने भारी वोटों के साथ में उनको जिताया। गठबंधन सरकार में उन्होंने एग्रीकल्चर समेत कई मंत्री के तौर पर काम किया। दिसानायके के हौसले उस समय और ज्यादा बुलंद हो गए जब साल 2008 में उन्हें जेवीपी पॉर्लियामेंट्री ग्रुप का मुखिया नियुक्त किया गया और दो साल बाद जेवीपी को चुनावी कामयाबी नहीं मिलने के बाद भी वे फिर से संसद के लिए चुने गए।
2019 के चुनाव में राजनीति में एक खास चेहरा बनकर उभरे
जनवरी 2014 में दिसानायके ने सोमवंसा अमरसिंघे की जगह JVP की बागडोर संभाली। उन्हीं की वजह से जेवीपी के वोट बैंक में बढ़ोतरी हुई। 2015 के आम चुनावों में कोलंबो जिले से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसी दौरान दिसानायके ने संसद में ऐसे भाषण दिए जिससे लोगों का उन पर भरोसा और भी बढ़ गया। 2019 तक दिसानायके श्रीलंका की राजनीति में एक अहम शख्स बनकर उभरे और उन्हें नेशनल पीपुल्स पावर गठबंधन के लिए राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया। हालांकि, उन्हें केवल 3.16 फीसदी वोट मिले। लेकिन इसी चुनाव की वजह से 2024 के चुनाव की नींव रखी गई।
2022 के विरोध प्रदर्शनों ने गोटाबाया राजपक्षे शासन को उखाड़ फेंका और जेवीपी काफी आगे पहुंच गई। राजपक्षे परिवार अर्थव्यवस्था ना संभाल पाने की वजह से दबता चला गया। पहले इस परिवार का काफी दबदबा माना जाता था।