अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की रविवार से शुरू हो रही तीन दिवसीय यात्रा के दौरान असैन्य परमाणु करार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रक्षा क्षेत्र में संयुक्त उद्यम पर आगे बढ़ना, उन प्रमुख मुद्दों में शामिल होंगे जिस पर भारत व अमेरिका ठोस नतीजे हासिल करना चाहेंगे।
ओबामा की यात्रा के दौरान शानदार नतीजे हासिल करने के लिए भारत और अमेरिका कड़ी मेहनत कर रहे हैं। इस दौरे में अमेरिकी राष्ट्रपति का बेहद व्यस्त कार्यक्रम होगा जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वार्ता, गणतंत्र दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शरीक होना, कारोबार जगत के नेताओं से मुलाकात और ‘भारत व अमेरिका: साथ मिलकर किए जा सकने वाले भविष्य का निर्माण’ पर एक व्याख्यान भी शामिल है।
ओबामा रविवार सुबह दस बजे दिल्ली पहुंचकर पालम के एयरफोर्स स्टेशन पर उतरेंगे। दूसरी बार भारत के दौरे पर आ रहे राष्ट्रपति के साथ उनकी कैबिनेट के कई सदस्य, प्रभावशाली कारोबारी और नैंसी पेलोसी सहित कई अमेरिकी सांसद मौजूद रहेंगे। वाइट हाउस के प्रेस अधिकारी जोश अर्नेस्ट ने कहा कि राष्ट्रपति इस दौरे को लेकर बहुत उत्साहित हैं। गणतंत्र दिवस के अतिथि के रूप में आमंत्रित होना स्वाभाविक रूप से सम्मान है। अमेरिकी राष्ट्रपति भारत में राजनेताओं के साथ होने वाली कई गंभीर बैठकों को लेकर और निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदी के साथ बैठक को लेकर आशान्वित हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति इसे न केवल दोनों देशों के बीच बल्कि दोनों नेताओं के बीच भी परस्पर मजबूत व बेहतर संबंध बनाने के अवसर के तौर पर देख रहे हैं जिनकी उद्देश्यों को लेकर समझ और उत्साह में बहुत समानता है।
एर्नेस्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका व भारत के संबंधों में नई ऊर्जा व उत्साह का संचार करने में रुचि रखते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने भी यही इच्छा जाहिर की है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा को हाल के बरसों में सबसे अहम कूटनीतिक घटनाक्रम करार देते हुए कहा है कि रक्षा, सुरक्षा, आतंकवाद निरोध में सहयोग और भारत के सुदूर पड़ोसी देशों में हालात, उन मुद्दों में शामिल होंगे जिन पर ओबामा और प्रधानमंत्री मोदी चर्चा करेंगे। परमाणु करार पर दोनों देशों के बीच मतभेद के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि पिछली वार्ताओं के दौरान प्रगति हुई थी और भारत अत्यधिक अहम परमाणु क्षेत्र में अमेरिका के साथ प्रभावी रूप से आगे बढ़ने के लिए आशावादी है।
मालूम हो कि भारतीय उत्तरदायित्व कानून किसी तरह की परमाणु दुर्घटना होने की स्थिति में आपूर्तिकर्ता को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराता है। जबकि फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों का कहना है कि भारत वैश्विक नियमों का पालन करे जिसके तहत प्राथमिक जिम्मेदारी आॅपरेटर की होती है। भारत की अड़चन यह है कि यहां देश में सभी परमाणु संयंत्रों का संचालन सरकारी कंपनी ‘न्यूक्लीयर पावर कॉरपोरेशन आॅफ इंडिया लिमिटेड’ (एनपीसीआइएल) के हाथ में है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करने का मतलब होगा कि दुर्घटना की स्थिति में सरकार को मुआवजे की अदायगी करनी होगी।
उत्तरदायित्व कानून में एक अन्य विवादास्पद उपबंध असीमित जिम्मेदारी है जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को बीमाकर्ता पाने में मुश्किल होगी। सूत्रों के मुताबिक लंदन में भारत-अमेरिका संपर्क समूह की दो दिवसीय बैठक में प्रगति हुई लेकिन विलंब करने वाले कुछ मुद्दों के राजनीतिक हल की जरूरत हो सकती है।
दोनों ही देश व्यापार और आर्थिक संबंध बढ़ाने के तरीकों और जलवायु संकट के अहम मुद्दे पर भी चर्चा करेंगे। मोदी और ओबामा के बीच होनी वाली वार्ता में जलवायु संकट का मुद्दा प्रमुखता से उठने की उम्मीद है। रविवार को होने वाली वार्ता से पहले पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि नरेंद्र मोदी नीत सरकार हरित मुद्दों पर दबाव में काम नहीं करेगी जैसा कि इसने देश के लाखों गरीबों से वादा किया था। उन्होंने इन बातों को खारिज कर दिया कि अमेरिका जलवायु परिवर्तन मुद्दे को लेकर भारत पर दबाव डाल रहा है।
भारत ने इस बात का जिक्र किया है कि वह विकास की अपनी कोशिशों में पूंजी, प्रौद्योगिकी, ज्ञान और कौशल के क्षेत्र में अमेरिका को एक अहम साझेदार के तौर पर देखता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि रक्षा, प्रौद्योगिकी और आतंकवाद निरोध के क्षेत्र में यह एक अहम साझेदार है। अमेरिका हमारी अंतरिक्ष सुरक्षा और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में भी एक अहम देश है। प्रवक्ता ने कहा कि हमारे सुदूर पड़ोसी देशों और वैश्विक स्तर पर शांति व स्थिरता लाने की भारत की कोशिशों में वह एक अहम साझेदार भी है।
भारत के लिए अहम
भारत खासतौर से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रक्षा क्षेत्र में संयुक्त उद्यमों के लिए उत्सुक है। भारत का मानना है कि पूंजी, प्रौद्योगिकी, ज्ञान और कौशल के क्षेत्र में अमेरिका एक अहम साझेदार है। आतंकवाद व एशिया के सुरक्षा हालात भी अहम मुद्दे होंगे।
इन पर है मतभेद
दोनों देशों के बीच कई हैं। खासकर परमाणु उत्तरदायित्व कानून। इसी वजह से असैन्य परमाणु करार के क्रियान्वयन पर बात आगे नहीं बढ़ पा रही है। अमेरिका इसमें संशोधन चाहता है। इसके अलावा जलवायु संकट भी एक बड़ा मुद्दा है जिसमें लंबी चर्चा के बाद भी दोनों देश अभी तक परस्पर सहमति के बिंदु खोज पाने में नाकाम रहे हैं।