भारत ने सुरक्षा परिषद से कहा है कि संघर्ष संबंधित यौन हिंसा में शामिल आतंकवादियों पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए तथा आतंकवाद की बढ़ती बुराई से निपटने के लिए एक वैश्विक संधि को अंतिम रूप दिए जाने की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि पिछले दो दशकों में हालांकि महिलाओं, शांति एवं सुरक्षा से संबंधित विभिन्न पहलुओं को लेकर मानदंड ढांचे में उल्लेखनीय मजबूती आई है, लेकिन सशस्त्र संघर्ष की स्थिति में यौन हिंसा को रोकना अभी बाकी है।
उन्होंने इसे सशस्त्र संघर्ष के फैलाव और सरकार से इतर विभिन्न तत्वों की संलिप्तता वाली उभरती प्रकृति और इस तरह की स्थिति में विश्व के बड़े हिस्से में आतंकवाद के फैलने से जोड़ा। अकबरद्दीन ने गुरुवार को यहां सुरक्षा परिषद में महिलाओं के विषय पर आयोजित खुले सत्र में कहा, ‘अधिक संवेदनशील तबकों, खासकर महिलाओं को इस तरह के हिंसक संघर्षों में कहीं अधिक पीड़ित होना पड़ता है।’
उन्होंने कहा कि आतंकवादियों को वित्तीय मदद, हथियारों की आपूर्ति, विदेशी लड़ाकों की भर्ती और प्रशिक्षण की तेजी से विस्तारित हो रही सीमा पार प्रकृति ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जहां समूचे क्षेत्र प्रभावित होते हैं और कोई भी देश अकेले इस बुराई से प्रभावी रूप से निपटने में सक्षम नहीं है। आतंकवाद से उत्पन्न जटिल चुनौतियों से निपटने में अंतरराष्ट्रीय समुदाय में एकता की कमी का जिक्र करते हुए अकबरद्दीन ने कहा कि सीमा पार आपराधिक समूहों द्वारा संचालित बड़े तस्करी नेटवर्क संवेदनशील समुदायों, खासकर महिलाओं की तकलीफों में वृद्धि करते हैं।