रूस-यूक्रेन का युद्ध रोकने के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सऊदी अरब की मदद ली है। सऊदी में ही अब अहम बैठक होने वाली है जिसमें रूस के बड़े अधिकारी मौजूद रहेंगे, अमेरिकी रक्षा विभाग के ही भी कई दिग्गज साथ होंगे। यह अलग बात है कि यूक्रेन और जेलेंस्की को इन बैठकों से अभी के लिए दूर रखा गया है, लेकिन सवाल कुछ और है, ज्यादा बड़ा है और सोचने पर मजबूर भी करता है। आखिर सऊदी अरब पर इतना विश्वास क्यों किया जा रहा है? आखिर क्यों सऊदी अरब ही मध्यस्थता कराने के लिए नंबर वन खिलाड़ी माना जा रहा है?
सऊदी अरब का कैसा ट्रैक रिकॉर्ड?
अब इस सवाल का एक स्पष्ट जवाब है- सऊदी अरब का बेहतरीन ट्रैक रिकॉर्ड। सऊदी की धरती पर ही कई बड़े युद्ध रुके हैं, वहां पर मध्यस्थता के जरिए समझौते किए गए हैं। बात चाहे ईरान-इराक के सालों पुराने युद्ध की हो या फिर हाल के इजरायल-हमास संघर्ष की, हर बार सऊदी अरब ने अहम भूमिका निभाई है।
ईरान-इराक युद्ध में भूमिका
ईरान-इराक युद्ध की बात करें तो यह 1980 के दशक में शुरू हुआ था, कई सालों तक ऐसे ही चलता रहा। लेकिन 2022 में यह युद्ध तब रुका जब सऊदी अरब में दोनों ही देश के नेता मध्यस्थता की टेबल पर आए। माना जाता है कि सऊदी ने एक भूमिका निभाकर दोनों देशों को शांत कराया था और उसके बाद ही ईरान और इराक के बीच में राजनयिक संबंध फिर स्थापित हुए और व्यापार भी बढ़ने लगा।
ईरान-अमेरिका और परमाणु समझौता
इसी तरह ईरान और अमेरिका के बीच में जो परमाणु कार्यक्रम हुआ था, तब भी पर्दे के पीछे से सऊदी अरब ने अहम भूमिका निभाई। असल में ईरान अपने परमाणु परीक्षण जारी रखना चाहता था, वहीं अमेरिका उस पर पूरी तरह रोक। इस तनाव को कम करने के लिए 2015 में एक समझौता हुआ था, उसके तहत ईरान ने अपने परमाणु परीक्षण रोके, लेकिन अमेरिका ने भी उसकी मदद की। लेकिन ट्रंप ने सत्ता में आते ही उस समझौते से खुद को बाहर कर लिया और तनाव फिर बढ़ गया। माना जाता है कि तब सऊदी अरब ने ही दोनों देशों से बात कर शांति बहाल करने में अहम भूमिका निभाई।
इजरायल-हमास संघर्ष में भूमिका
इजरायल और हमास का संघर्ष भी कई दशक पुराना है, लेकिन 2023 में एक अटैक ने रिश्तों को पूरी तरह खत्म कर दिया और नया युद्ध छिड़ गया। बाद में जब उस युद्ध को खत्म करने की बात हुई तो सऊदी अरब ने ही कतर, अमेरिका और मिस्र जैसे देशों को साथ लाया और फिर इजरायल और हमास के बीच में युद्ध विराम करवाया।
क्यों सऊदी मध्यस्थता के लिए जरूरी?
अब सवाल उठता है कि सऊदी इतनी आसानी से बड़े से बड़े युद्ध को कैसे रुकवा पाता है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि सऊदी ने रणनीति के तहत अपने रिश्ते अमेरिका से अच्छे रखे हैं, लेकिन रूस और चीन के साथ भी बातचीत कभी रोकी नहीं, ऐसे में जब भी किसी बड़े मुल्क का विवाद होता है, सऊदी आराम से न्यूट्रल बन बात कर सकता है।
रूस-यूक्रेन युद्ध का क्या होगा?
इसी तरह सऊदी अरब एक बड़ा मुस्लिम मुल्क है, ऐसे में जब भी इस्लामिक देशों में तनाव पैदा होता है, बातचीत की टेबल पर लाने का काम सऊदी कर सकता है। इसके अलावा सऊरी अरब क्योंकि तेल की सबसे ज्यादा सप्लाई करता है, उसने वैश्विक पलट पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करवा रखी है। अब उसकी इसी ताकत के दम पर कहा जा रहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में भी कोई बड़ा फैसला हो सकता है। लेकिन सच्चाई यह है कि इन प्रयासों में क्योंकि यूक्रेन को शामिल नहीं किया गया, ऐसे में मध्यस्थता की राह मुश्किल है। रूस-यूक्रेन की और खबरों के लिए यहां क्लिक करें