रूस के कुर्स्क में यूक्रेन की कार्रवाई ने पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद इसे यूक्रेन का सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है जिसमें रूस की 1000 किमी धरती पर कब्जा जमाया गया है। जो व्लादिमीर पुतिन इस युद्ध की शुरुआत में यूक्रेन को 72 घंटे में हराने की बात कर रहे थे, उसी देश ने रूस को दिन में ही तारें दिखा दिए हैं। युद्ध को एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां पर यूक्रेन के पास भी बारगेनिंग पावर आ चुकी है।
जेलेंस्की के मन में क्या चल रहा?
इस समय सिर्फ एक ही सवाल सबसे बड़ा है- रूस के जिन क्षेत्रों पर यूक्रेन ने कब्जा जमाया है, वो उन्हें छोड़ देगा या फिर उन पर अपना कब्जा जारी रखेगा। जानकार मानते हैं कि जेलेंस्की अभी रूस के क्षेत्र से अपनी सेना वापस नहीं बुलाने वाले हैं। उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इसी जवाबी कार्रवाई के जरिए रूसी सेना पर दबाव बनाया जा सकता है। यूक्रेन के कुछ हिस्सों पर अभी रूसी कब्जा है, ऐसे में अगर उन्हें मुक्त करवाना है तो पुतिन को झुकना जरूरी है। अब इससे बेहतर मौका शायद ही फिर राष्ट्रपति जेलेंस्की को मिलेगा।
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पुतिन काफी गुस्से में, फायदा या नुकसान?
लेकिन इस कहानी का एक दूसरा पहलू भी है। रूस इस समय काफी गुस्से में है, राष्ट्रपति पुतिन को विश्वास ही नहीं हो रहा कि यूक्रेन ने कैसे उन्हें उन्हीं के क्षेत्र में परास्त कर दिया। इस वजह से रूसी हमले और ज्यादा तेज हो गए हैं। लगातार हमले किए जा रहे हैं। अब यूक्रेन के लिए चुनौती इस बात की है कि उसके कुछ इलाकों में सेना कम है और वहां पर रूस फिर आक्रमण कर सकता है। ऐसे में एक जगह पर कब्जा करने के चक्कर में कुछ दूसरे इलाकों में उसकी स्थिति कमजोर बन सकती है।
भीषण युद्ध की गारंटी
अब फैसला यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को लेना है, वे पुतिन को सिर्फ मैसेज देकर वापस अपनी सेना खींच लेते हैं या फिर आक्रमक रवैया अपनाते हुए अपनी सेना को उसी इलाके में रखते हैं। दोनों ही स्थिति में भीषण युद्ध की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। इससे उलट हालात और ज्यादा बिगड़ सकते हैं, विस्फोटक बन सकते हैं।