इटली में पुराने प्रधानमंत्री गुइजेप्प कोंटे के नेतृत्व में पॉपुलिस्ट फाइव स्टार पार्टी ने सोशल डेमोक्रैटों के साथ मिलकर नई सरकार बनाई है। राजनीतिक अस्थिरता के लिए मशहूर रहे इटली में मध्यमार्गी नई सरकार के साथ नए चुनाव और धुर दक्षिणपंथी लीगा पार्टी की जीत का खतरा तो टल गया है, लेकिन नई सरकार की दोनों पार्टियों के बीच लंबे समय तक रहे आपसी वैर को देखते हुए लोगों का भरोसा जीतना आसान नहीं होगा। प्रधानमंत्री कोंटे की नई सरकार के सामने एक ओर शरणार्थियों के मामले पर नरम नीति अपनाकर यूरोपीय देशों की मुख्यधारा में लौटने की चुनौती होगी तो दूसरी चुनौती आर्थिक मोर्चे पर यूरोप विरोधी नीतियों को बदल कर यूरोपीय संघ में फिर से अपनी जगह बनाने की होगी।
ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर होने के फैसले के बाद संघ से किसी भी देश का बाहर निकलना अब आम विकल्पों में शामिल हो गया है। इटली की बिगड़ती आर्थिक हालत और पुरानी सरकार द्वारा वित्तीय स्थिरता के यूरोपीय नियमों को न मानने से यूरोपीय संघ में इटली की स्थिति कमजोर होती जा रही थी। हालांकि इटली आबादी और आर्थिक क्षमता के हिसाब से यूरोप के सबसे अहम देशों में शामिल है, लेकिन पिछली गठबंधन सरकार के गृह मंत्री और धुर दक्षिणपंथी लीगा के नेता साल्विनी शरणार्थियों और वित्तीय अनुशासन के मामले में लगातार टकराव की नीति अपना रहे थे।
इसका उन्हें और उनकी पार्टी को फायदा भी हो रहा था। स्थिति यहां तक पहुंच गई थी कि वह सरकार पर पूरा नियंत्रण चाहने लगे थे। लेकिन साल्विनी का दांव उल्टा पड़ गया। नए चुनाव के बदले कोंटे ने नया साथी चुनने का फैसला किया और आखिरकार पुराने सारे शिकवों को भूलकर सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी फाइव स्टार पार्टी के साथ गठबंधन बनाने के लिए राजी भी हो गई।
नए चुनावों में भारी जीत के साथ नई सरकार का नेतृत्व करने का साल्विनी का सपना फिलहाल सपना ही रह गया है, लेकिन इटली में धुर दक्षिणपंथी पार्टी के सत्ता में आने के खतरे कम नहीं हुए हैं। जर्मनी में प्रांतीय चुनावों में जिस तरह धुर दक्षिणपंथी एएफडी की जीत हुई है और उसे करीब एक चौथाई वोट मिल मिले हैं, यूरोप के हर देश में उनकी अपील अब भी कायम लगती है। अगर लोकतांत्रिक पार्टियों को इटली की जनता का भरोसा फिर से जीतना है तो शरणार्थी समस्या और वित्तीय मुश्किलों का हल जरूरी होगा। इसी पर गुइजेप्प कोंटे की नई सरकार की कामयाबी भी निर्भर करेगी।
पुरानी सरकार में जहां लीगा पार्टी के मातेयो साल्विनी बर्लिन, पेरिस और ब्रसेल्स पर हमले कर रहे थे और रूस के व्लादीमिर पुतिन तथा ईयू के आलोचक अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के साथ नजदीकी ढूंढ रहे थे, वहीं नई सरकार यूरोपीय लक्ष्यों के साथ कदम मिलाकर चलने का वादा कर रही है. प्रधानमंत्री कोंटे ने महत्वपूर्ण पदों पर ऐसे मंत्री चुने हैं जो कम से कम शब्दों के चयन में ईयू के साथ कदमताल दिखा रहे हैं. शरणार्थियों का मुद्दा यूरोप के कई दूसरे देशों
की तरह इटली के लिए भी कठिन मुद्दा है।
इटली और ग्रीस जैसे देश यूरोपीय संघ की सीमा पर हैं और यूरोप आने वाले शरणार्थियों का बहुत बड़ा हिस्सा वहीं से होकर यूरोप आता है। लिस्बन संधि के अनुसार शरणार्थियों को वहीं आवेदन देना होता है जहां से वे यूरोप में दाखिल होते हैं। इटली या ग्रीस पूरे यूरोप के शरणार्थियों का बोझ अकेले नहीं ढो सकते। साल्विनी ने गृह मंत्रालय का इस्तेमाल शरणार्थियों के खिलाफ माहौल बनाने के लिए किया। अब मंत्रालय की जिम्मेदारी एक कुशल रिटायर्ड अधिकारी लुचियाना लामोर्गेजे पर है. उनसे इस मोर्चे पर शांति लौटाने की उम्मीद है, लेकिन लिस्बन संधि में परिवर्तन जरूरी होगा। इसमें यूरोप के बाकी देशों को इटली के साथ एकजुटता दिखानी होगी।
यूरोप के देशों में पिछले सालों में कठोर बचत की नीति चलती रही है जिसका नतीजा कुछ देशों में आर्थिक मंदी और बेरोजगारी के रूप में सामने आया है। स्थिति में बेहतरी के लिए बहुत से लोग सरकारी खर्च में बढ़ोत्तरी की मांग करते रहे हैं, लेकिन उसका मतलब इन देशों में कर्ज में वृद्धि होगा, लेकिन यूरोपीय संघ इसके खिलाफ है। उसने अधिकतम तीन प्रतिशत कर्ज की सीमा तय कर रखी है। इटली की पुरानी सरकार ने बजट में सरकारी खर्च में कटौती के बदले वेतन का खर्च घटाने, स्कूलों, स्वास्थ्य सेवा तथा ग्रीन अर्थव्यवस्था में सबसिडी देने जैसे फैसले लिए थे।
नई सरकार को अक्टूबर तक नया बजट पेश करना है जिसमें तीन प्रशत बजट घाटे के नियम को लागू करना होगा। ऐसा नहीं होने पर यूरोपीय संघ इटली की सरकार के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर सकता है। बचत से मास्ट्रिष्ट में तय तीन फीसदी के नियम का पालन तो हो जाएगा लेकिन आर्थिक स्थिति और बिगड़ सकती है. सरकार के पांव दोधारी तलवार पर हैं।
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गुइजेप्प कोंटे और सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी का गठबंधन धुर दक्षिणपंथी लीगा पार्टी के डर से बना है। नए चुनाव होने की स्थिति में पॉपुलिस्ट फाइव स्टार पार्टी संसद में सबसे बड़ी पार्टी होने और इस तरह सरकार बनाने का दावेदार होने का दर्जा खो देती। नुकसान सोशल डेमोक्रैटों को भी होता। साल्विनी के सरकार प्रमुख बनने से इटली यूरोपीय संघ का भरोसेमंद सदस्य नहीं रह जाता और वे इटली को भी संघ से बाहर ले जाने की शुरुआत कर सकते थे।
अब ये खतरा फिलहाल मिट गया है, लेकिन कोंटे की ये सरकार विफल रहती है तो साल्विनी को और फायदा पहुंचेगा और उनके सत्ता में वापस आने का रास्ता आसान हो जाएगा। सारी उम्मीदें कोंटे की सरकार से है, लेकिन सोशल डेमोक्रैटों के लिए मतदाताओं के समर्थन को अपने पक्ष में करना आसान नहीं. तब तक इटली पॉपुलिस्ट पार्टियों के लिए राजनीतिक प्रयोगशाला बना रहेगा।
प्रोवाइडरः डॉयचे वेले जर्मनी