प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ 2025 ने न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र बनकर दुनिया का ध्यान खींचा, बल्कि यह परंपरा और प्रौद्योगिकी के अद्भुत संगम का भी उदाहरण बन गया है। इस ऐतिहासिक आयोजन पर शोध कर चुके हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों ने अपने अनुभव साझा किए और इसे समाज के विकास का प्रतिबिंब बताया। न्यूयॉर्क स्थित भारत के वाणिज्य दूतावास में हुए एक विशेष कार्यक्रम में प्रोफेसर तरुण खन्ना (Tarun Khanna), डायना ईक (Diana Eck) और टियोना जुजुल (Tiona Zuzul) ने महाकुंभ के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि यह आयोजन कैसे आध्यात्मिकता, इंजीनियरिंग, प्रशासन और अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन स्थापित करता है। न्यूयॉर्क में भारत के वाणिज्य दूतावास में सोमवार को एक विशेष चर्चा का आयोजन किया गया था। इसका शीर्षक था ‘इनसाइट्स फ्रॉम द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट स्प्रिचुअल गैदरिंग – महाकुंभ (Insights from the World’s Largest Spiritual Gathering – Maha Kumbh)’।

प्रोफेसरों ने आयोजन की नई चीजों पर अपने अनुभव शेयर किए

हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर तरुण खन्ना ने कुंभ मेले में मानकों, स्वच्छता और तकनीकी नवाचारों पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि 2025 का महाकुंभ ‘स्वच्छ कुंभ’ के रूप में प्रसिद्ध हो रहा है, जहां अत्यधिक भीड़ के बावजूद सफाई पर विशेष ध्यान दिया गया है। उन्होंने महाकुंभ में ‘खोया पाया’ सेवाओं के डिजिटलीकरण की भी प्रशंसा की और इसे परंपरा व तकनीक के मेल का शानदार उदाहरण बताया। खन्ना ने कहा कि यह आयोजन दिखाता है कि समाज कैसे अपनी परंपराओं को संजोते हुए तकनीकी विकास को अपनाता है।

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हार्वर्ड डिवाइनिटी स्कूल की प्रोफेसर डायना ईक ने कुंभ मेले को एक महान तीर्थयात्रा बताया और इसकी विस्तृत व्यवस्थाओं की सराहना की। उन्होंने कहा कि कुंभ में बिजली सबस्टेशनों, अस्थायी टेंटों, स्वास्थ्य सेवाओं और छोटे व्यवसायों का जाल मात्र कुछ दिनों में बिछाया जाता है, जो आश्चर्यजनक है। उन्होंने बताया कि कुशल इंजीनियरिंग टीम इस अस्थायी शहर को तैयार करने के लिए पूरी ताकत से जुटती है और इसका नियोजन दुनिया के लिए प्रेरणादायक है। ईक ने कुंभ में तकनीकी नवाचारों को भी असाधारण बताया, जिससे व्यवस्थाओं का सुचारु संचालन सुनिश्चित हुआ है।

हार्वर्ड बिजनेस स्कूल की सहायक प्रोफेसर टियोना जुजुल ने महाकुंभ के आर्थिक पहलुओं पर प्रकाश डाला और बताया कि कैसे यह आयोजन छोटे और मध्यम व्यापारियों के लिए बड़े अवसर लेकर आता है। उन्होंने 2013 में इस आयोजन पर किए गए अपने शोध का जिक्र करते हुए कहा कि कुंभ के दौरान उभरने वाले अस्थायी बाजारों और सेवाओं का असर दूरगामी होता है। जुजुल ने कहा कि वे 2037 में होने वाले अगले कुंभ मेले में इस आर्थिक प्रभाव का अध्ययन करने के लिए फिर भारत आना चाहेंगी।

महाकुंभ का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक रूप से भी बेहद बड़ा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस आयोजन को सफल बनाने के लिए व्यापक प्रबंध किए हैं। इस वर्ष महाकुंभ में अब तक 60 करोड़ से अधिक श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान कर चुके हैं। महाशिवरात्रि के साथ इस आयोजन का समापन हो जाएगा, लेकिन इसका अध्ययन और प्रभाव आने वाले वर्षों तक दुनिया भर के शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहेगा।