यौन प्रवृत्ति और लैंगिक पहचान के आधार पर हिंसा और भेदभाव के मामलों पर गौर करने के लिए एक स्वतंत्र विशेषज्ञ की नियुक्ति को लेकर जिनिवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की बैठक में मतदान से भारत अनुपस्थित रहा। हालांकि, यह प्रस्ताव कुछ वोटो के अंतर से पारित हो गया। समलैंगिकों के खिलाफ गलत करने वालों पर गौर करने को लेकर तीन साल के लिए एक स्वतंत्र विशेषज्ञ के का पद सृजित करने का प्रावधान करने वाला एक प्रस्ताव 47 सदस्यीय मानवाधिकार परिषद ने 18 के मुकाबले 23 वोटों से पारित हो गया। छह देश अनुपस्थित रहे।
अपने देश के फैसले का समर्थन करते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने नई दिल्ली में कहा कि भारत ने देश की कानूनी हकीकत पर विचार करते हुए यह फैसला किया। स्वरूप ने संवाददाताओं से कहा कि भारत में समलैंगिक (एलजीबीटी) समुदाय का अधिकार एक ऐसा विषय है जिस पर उच्चतम न्यायालय कई उपचारात्मक याचिकाओं के तहत विचार कर रहा। ये याचिकाएं कई संस्थाओं और संगठनों ने दायर की हैं। न्यायालय ने इस मुद्दे पर अभी तक कोई फैसला नहीं दिया है।
विशेषज्ञ को सितंबर में जिनिवा स्थित संस्था की अगली बैठक में नियुक्त किए जाने की उम्मीद है। प्रस्ताव का लैटिन अमेरिका और पश्चिमी देशों ने जोरदार समर्थन किया जबकि कई अफ्रीकी देश और मध्य पूर्व के देशों ने चीन के साथ इसके खिलाफ वोट डाला। विशेषज्ञों के कर्तव्यों में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का आंकलन करना, यौन प्रवृत्ति के आधार पर होने वाली हिंसा के बारे में जागरूकता पैदा करना और सदस्य देशों तथा अन्य हितधारकों को वार्ता में शामिल करना है। अफगान मूल के उमर मातीन के ओरलेंडो स्थित एक समलैंगिक बार में 49 लोगों का नरसंहार किए जाने के बाद यह पद सृजित करने का फैसला किया गया है।