दुनिया एक और युद्ध के मुहाने पर खड़ी है, ईरान ने जब से 100 से ज्यादा मिसाइलें दागने का काम किया है, इजरायल आग बबूला है, बदला लेने की बात कर रहा है। यानी कि पूरा मिडिल ईस्ट इस समय जबरदस्त तनाव की चपेट में है, किसी भी वक्त बड़ा हमला, बड़ा अटैक हो सकता है। अब तो अमेरिका ने भी क्योंकि इजरायल को मदद करने की बात कर दी है, इसने भी जमीन पर समीकरणों को बदल दिया है। लेकिन इजरायल की असल ताकत अमेरिकी सेना या उसके हथियार नहीं है।

इजरायल की असल ताकत उसकी सेना है, वहां भी सक्रिय सैनिक तो युद्ध लड़ ही रहे हैं, एक ऐसी फोर्स भी है जो जरूरत पड़ने पर युद्ध भी लडे़गी और अपने देश के लिए जान देने के लिए भी तैयार रहेगी। अपनी इसी ताकत के दम पर इजरायल कई दिनों तक युद्ध लड़ पाता है, विरोधियों को परास्त करने की ताकत रखता है। अब जानकार मानते हैं कि जिस योजना के दम पर इजरायल यह सब कर रहा है, वो कहीं ना कहीं भारत की अग्निपथ योजना से मेल खाती है। पूरी तरह समान तो नहीं है, लेकिन कुछ पहलू जरूर एक दूसरे से मैच करते हैं।

इजरायल की तरह क्या भारत भी कर सकता है हमला? 

असल में इजरायल में अनिवार्य सेना अधिनियम चलता है, इसकी वजह से सभी सक्षम नागरिकों के लिए कुछ समय सेना के लिए सेवा देना जरूरी होता है। नियम कहता है कि इजरायली पुरुषों को 32 महीने और महिलाओं को 24 महीने के लिए सेना में काम करना होगा। इस वजह से IDF के पास अगर 1,69,500 सक्रिय सैन्यकर्मी हैं तो दूसरी तरफ रिजर्व की संख्या 4,65,000 तक पहुंच चुकी है। यह भी बताया गया है कि रिजर्व सेना में शामिल नागरिकों को साल में एक बार तो प्रशिक्षण के लिए जाना ही पड़ता है।

अब सरल शब्दों में कहें तो इजरायल में कम अवधि के लिए सेना में कई युवाओं को शामिल किया जाता है। वहां इस बात को लेकर बवाल नहीं होता कि कुछ सालों की सेवा के बाद उन युवाओं का क्या होगा। यह जरूर है कि इजरायल में सभी लोगों को कुछ समय सेना में काम करना जरूरी है, इसके लिए नियम बने हुए हैं, भारत ने अलग से कोई नियम नहीं बनाया है। लेकिन अग्निवीर जैसी योजना के दम पर उसने कम अवधि के लिए कई युवा सैनिकों को सेना में शामिल करने का काम जरूर किया है।

अब सरकार का तर्क है कि इन युवा सैनिकों की वजह से भारतीय सेना की औसतन उम्र भी कम होगी और कई बड़े ऑपरेशन में उनकी मदद भी ली जा सकती है। इसके ऊपर क्योंकि उन्हें एक समान सैनिक की तरह ट्रेनिंग मिलती है, ऐसे में उनकी काबिलियत पर भी कोई सवाल नहीं उठता। जानकार मानते हैं कि भारत ने अब जाकर इस बारे में सोचा है, लेकिन इजरायल जैसे देशों ने शुरुआत से ही खुद को इसके लिए तैयार रखा। इजरायल हमेशा से जानता था कि वो जहां खड़ा है, चारों तरफ उसके दुश्मन हैं।

इसी वजह से उसने अपनी सेना की ताकत और संख्या दोनों बढ़ाने पर जोर दिया। उसकी एक ही रणनीति थी, अगर युद्ध छिड़े तो एक साथ बड़ी संख्या सैनिक उनके पास मौजूद रहने चाहिए। अग्निवीर जैसी योजना ने उसे कम अवधि के लिए कई सैनिक दिए जो कई जरूरी ऑपरेशन में देश के साथ खड़े रहे। अभी भी जब हमास, हिजबुल्लाह और अब ईरान के खिलाफ टक्कर लेनी है, इजरायल को इस बात की चिंता नहीं है कि उसके सैनिक कम पड़ जाएंगे। इसके ऊपर आधुनिक हथियार तो उसका सुरक्षा कवच बने ही हुए हैं।

वैसे कम अवधि के लिए तो कई दूसरे देश भी सैनिकों की भर्ती करवाते हैं और वहां भी कोई बवाल की स्थिति नहीं है। बाते चाहे उत्तर कोरिया की हो, इटीरिया की हो या फिर स्विट्ज़रलैंड की, इन सभी देशों में भी आम नागरिकों को सेना में भी काम करना पड़ता है। इसके अलावा ब्राजील, सीरिया, जॉर्जिया, लिथुआनिया जैसे देशों में ऐसे ही नियम चले आ रहे हैं।