भारत ने मौत की सजा पर रोक संबंधी संयुक्त राष्ट्र के एक प्रस्ताव विरोध करते हुए कहा है कि यह भारतीय वैधानिक कानून तथा अपना कानूनी तंत्र रखने के हर देश के संप्रभु अधिकार के विपरीत है। हालांकि उसने उस संशोधन का समर्थन किया है जिसमें घरेलू विधि व्यवस्था विकसित करने के संप्रभु अधिकार की बात की गई है। भारत के प्रतिनिधि मयंक जोशी ने कहा कि हर देश के पास अपनी खुद की कानूनी व्यवस्था को मान्यता देने का अधिकार है, इसी वजह से उन्होंने संशोधन के लिए मतदान किया है। दूसरी तरफ, भारत के संयुक्त राष्ट्रपति मिशन में काउंसलर ने कहा कि उन्होंने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया है ‘क्योंकि यह भारत के वैधानिक कानून के विपरीत है।’ बहरहाल, इस प्रस्ताव को 38 के मुकाबले 115 मतों से पारित कर दिया गया। ‘गहन चर्चा’ के बाद 31 देश मतदान से अनुपस्थित रहे। संशोधन के पक्ष में 76 मत पड़े, जबकि विरोध में 72 देशों ने मतदान किया। 26 सदस्य अनुपस्थित रहे। इन मुद्दों पर भारत के रुख को स्पष्ट करते हुए जोशी ने कहा, ‘भारत में मौत की सजा ऐसे दुलर्भतम मामलों में दी जाती है, जहां अपराध इतना जघन्य हो कि समाज की अंतरात्मा हिल जाए।’
‘मौत की सजा’ बरकरार रखने का पैरोकार है भारत, संरा प्रस्ताव का किया विरोध
भारत ने कहा 'मौत की सजा' पर रोक भारतीय वैधानिक कानून तथा अपना कानूनी तंत्र रखने के हर देश के संप्रभु अधिकार के विपरीत है।
Written by भाषा
संयुक्त राष्ट्र

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First published on: 19-11-2016 at 19:49 IST