संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में किए एक अध्ययन में यह पाया गया है कि भारत उन नौ सबसे अधिक आबादी वाले देशों में शामिल है जहां ग्लोबल वार्मिंग के चलते शीतलन की कमी के कारण स्वास्थ्य तथा जलवायु को खतरा बना हुआ है। अध्ययन में पाया गया कि रणनीतिकारों को अपने देशों में तत्काल शीतलन तक पहुंच बढ़ाने के लिए कदम उठाना चाहिए , क्योंकि अधिक सक्रिय एवं एकीकृत नीति बनाने के लिए एक साक्ष्य आधार मौजूद है। ‘ सस्टेनेबल एनर्जी फॉर आॅल ‘ (एसई फॉर एएलएल) की कल जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि उद्योगपतियों, सरकारों और वित्तपोषकों को सभी के लिए टिकाऊ शीतलन समाधान प्रदान करने से मिलने वाली उत्पादकता , रोजगार और वृद्धि लाभ सहित विशाल वाणिज्यिक तथा आर्थिक अवसरों का आकलन करने एवं उस पर कार्य करने में सहयोग करना चाहिए। ‘‘ चिलिंग प्रोस्पेक्ट : सस्टेनेबल कूलिंग फॉर आॅल ’’ वैश्विक शीतलन की बढ़ती चुनौतियों एवं अवसरों का आकलन करने वाला यह पहला अध्ययन है।

आपको बता दें कि देश में ग्लोबल वार्मिंग का असर पॉलीथिन के प्रयोग के चलते भी ज्यादा बढ़ रहा है। देश के कई राज्यों में प्लास्टिक पर बैन को लेकर खबरें आती हैं। कुछ दिनों के लिए सरकार के आदेशानुसार ब्लास्टिक बैन भी हो जाता है लेकिन फिर बाद में पॉलीथिन मिलने लगती हैं। पॉलीथिन के ज्यादा बढ़ने से जानवर भी मौत का शिकार होते हैं। क्योंकि पॉलीथिन एक ऐसे रसायन से बनाई जाती है जिससे कैंसर जैसी बीमारी का भी खतरा बढ़ जाता है। वहीं दूसरी ओर मॉनसून के कारण भी यह समस्या बढ़ जाती है। बारिश के कम होने से तपिश बढ़ जाती है जिसके चलते ग्लोबल वार्मिंग बढ़ जाती है।