इन दिनों भारत इजरायलमय हो रहा है, इसमें कोई संदेह नहीं। खैर! यह हमारी आदत में शुमार है कि जब भी कोई आता है, हम उसकी मेजबानी में इतना डूब जाते हैं कि उसके रंग में सराबोर होने लगते हैं। शायद यही भारत की मेहमाननवाजी की अपनी खासियत है और होना भी चाहिए क्योंकि भारत सदियों से मेहमानों की अच्छी तरह खातिर किए जाने के लिए जाना जाता रहा है। इजरायल और भारत की ऐतिहासिक प्रारब्धीय समानताएं भी खासी चर्चा का विषय बनी हुई हैं। भारत और इजरायल के इतिहासविद भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि दोनों ने अपनी अस्मिताओं के लिए जो संघर्ष किए हैं, उनमें मेल दिखता है। दोनों देशों के वर्तमान स्वतंत्र स्वरुप का अवतरण एक साल आगे पीछे 1947-48 में ही हुआ है। अतः शायद गृहयोग कुछ बदल गए होंगे, जो भारत इजरायल से सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषाई और राजनीतिक मिलानों के बावजूद भी एक बड़े क्षेत्रफल, सांस्कृतिक व सामाजिक विविधताओं वाला राष्ट्र होकर भी वे जलवे नहीं बिखेर पाया जो एक छोटे से इजरायल ने विश्व के समक्ष दिखा दिए।

पचास के दशक से विकास के पथ पर अपने अपने प्रारब्धों को लेते हुए दोनों देश साथ चले थे, और निःसंदेह हम भी आगे बढ़े और वो भी आगे बढ़े। पर कहीं हम उतना न बढ़ सके, जितना इजरायल ने कर दिखाया। सच है तो स्वीकारने में शर्म कैसी? कारण और तर्क, पक्ष और विपक्ष हर पहलू का होता है, वही इजरायल और भारत के विकास के अंतर के लिए भी बहुत मिल जाएंगे, यहां तक कि विश्लेषक करते भी रहते हैं। लेकिन इन सबकी जड़ें हर विकसित देश की वैज्ञानिक सोच के अधिकाधिक दोहन पर जाकर टिकती हैं। इजरायल के विकास के मूल में भी उसकी अपनी मौलिक वैज्ञानिक सोच है, जिसने सबसे पहले उसे दुनिया का ऐसा अकेला यहूदी राष्ट्र बनाया, जो सिर्फ और सिर्फ अपने देश की सीमाओं, अपनी हिब्रू भाषा और विश्वभर में फैले अपने यहूदी लोगों को प्राथमिकता देने की अहमियत को समझता था।

इजरायल के वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने उसे हर क्षेत्र में विश्व का अव्वल दर्जे का स्थान रखने वाला देश बनाया है, जहां पुरुषों को ही नहीं बल्कि महिलाओं को भी अनिवार्य रूप से अपने देश के लिए सैन्य सेवाएं करनी होती हैं। अमेरिका, रूस और चीन के बाद पूरे विश्व में इजरायल की वायुसेना को स्थान मिला हुआ है। इजरायल अपने एंटी बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम के साथ-साथ अपने उत्कृष्ट अंतरिक्ष अनुसंधानों के लिए भी विख्यात है। ब्रेल लिपि वाली करेंसी से लेकर कम्प्यूटर और वॉइस मेल तकनीक तक और लगभग 93 प्रतिशत की खाद्यान्न आत्मनिर्भरता से लेकर अधिकाधिक सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाले इजरायल ने प्रायः जीवन के हर छोटे बड़े क्षेत्र में स्वयं को विज्ञान और तकनीक से सुसज्जित कर रखा है।

ऐसे विज्ञान से शोभायमान लगभग हमारे ही साथ जन्मे सत्तर वर्षीय इजरायल ने अपने देश की अस्मिता के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण में उत्तरोतर वृद्धि करते हुए सैन्यक्षमता और कृषि को शिखर पर पहुंचाया। इसके लिए इजरायल की वह सोच भी है, जो बेहतर तरीके से यह निर्धारित करना जानती है कि किस क्षेत्र में कितना खर्च करना सही मायनों में देश के विकास के लिए पर्याप्त होगा। यही कारण है कि आज वहां विज्ञान और प्रौद्योगिकी देश के सबसे विकसित क्षेत्रों में से एक है। इजरायल अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.2% जन अनुसंधान और विकास पर खर्च करता है। विश्व के नई-नई वैज्ञानिक खोजें करने वाले देशों में इजरायल पूरे विश्व में पांचवे स्थान पर आता है। विश्व के वैज्ञानिक प्रकाशनों में इजरायल का लगभग एक प्रतिशत योगदान के साथ पूरे विश्व में तेरहवां स्थान है।

इजरायल में प्रति 10,000 कर्मचारियों में 140 वैज्ञानिक और तकनीशियन हैं, जो विश्व के विकसित देशों जैसे अमेरिका में 85 और जापान 83 की तुलना में कहीं बहुत अधिक है। इसी तरह से इजरायल में पूर्णकालिक वैज्ञानिक पेशे को अपनाने वाले सोधार्थियों का प्रतिशत सर्वाधिक है। यहां प्रति दस लाख लोगों में 8500 पूर्णकालिक शोधार्थी मिलेंगे, जबकि अमेरिका में यह लगभग 4000, जापान में लगभग 5200 तथा दक्षिण कोरिया में लगभग 6500 हैं। स्थिति यह है कि भारत इन आंकड़ों में तो कहीं स्थान ही नहीं रखता है। वहां के वैज्ञानिकों और तकनीशियनों की संख्या हो या फिर वैज्ञानिक प्रकाशनों की विश्वस्तरीय दर हो उसके उत्कृष्ट वैज्ञानिक सोच के जीवंत हस्ताक्षर सिद्ध हुए हैं। इजरायल की उच्चशिक्षा नीतियों और चल रहीं सफल अनुसंधान परियोजनाओं की पृष्ठभूमि में वहां के सात शोध विश्वविद्यालय क्रमशः बार-इलान यूनिवर्सिटी, बेन-गुरियन यूनिवर्सिटी ऑफ नेगेव, यूनिवर्सिटी ऑफ हाइफा, हिब्रू यूनिवर्सिटी ऑफ जेरुसलम, द टेक्नियन-इज़रायल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, तेल अवीव यूनिवर्सिटी और वीजमान इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस, रेहोवोट तथा अन्य वैज्ञानिक संस्थानों का अथक परिश्रम है।

इजरायल के वैज्ञानिकों के पास नोबल पुरस्कारों की झड़ी लगी हुई है, यहां तक कि वहां के तो स्कूली बच्चे भी भौतिक और रसायनशास्त्र के नोबल पुरस्कोरों के प्राथमिक चरणों की प्रतियोगिताओं के विजेताओं में शुमार हैं। हममें से तो बहुतों को शायद पहली बार पता चलेगा कि नोबल पुरस्कारों के स्कूली स्तर भी होते हैं। और भी जाने कितनी वैज्ञानिक उपलब्धियां हैं, जिसकी गणनाओं से कम से कम हम यह प्रेरणा ही ले सकें कि भारत के वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए प्राथमिक शिक्षाओं से लेकर विश्वविद्यालयों तक की पूरी शिक्षा प्रणाली में सही मायनों में विज्ञान की आवश्यकता है।

भारत की बौद्धिक, सामाजिक और भाषागत विविधता के बहाने कहीं हमें और अकर्मण्य न बना दें। इजराइल के साथ पिछले वर्षों से हो रहे कागजी समझोतों को यदि हकीकतों का थोड़ा बहुत प्रतिशत भी इजरायली वैज्ञानिक सोच के साथ अपना लिया जाए, तो शायद भारत अपने समानांतर इजरायली प्रारब्ध को इजरायल का शीर्षस्थ स्वरूप दे सकता है। यह सुनिश्चित है कि पहले भारत अपनी शौच की सोच से तो उबरे, हर क्षेत्र में फैले पड़े विरोधाभासों को तो तोड़े, और सबसे बढ़कर पूरे देश में फैली राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, सामीजिक, आर्थिक, आदि आदि विडम्बनाओं से उबरे, तब तो ला पाएंगे वो इजरायली वैज्ञानिक सोच, जो उसे बनाती है विश्व का अव्वल देश। हां फिलहाल हमें उसका मित्र कहने पर ही संतोष करना होगा।

(ये विचार लेखिका ने निजी हैं।)