विश्व के कई देशों में महिलाओं को कमतर आंका जाता है। कारण लिंग के आधार पर पक्षपात होना है। यह भी एक वजह है कि उन्हें पुरुषों के मुकाबले उन्हें कम सैलरी मिलती है। मगर दुनिया के एक देश ने इस मामले में इतिहास रचा है। आइसलैंड पहला देश बन गया है, जहां पर अब से महिलाओं को पुरुषों के बराबर सैलरी मिलेगी। यानी लिंग के आधार पर उनकी सैलरी को लेकर भेदभाव नहीं किया जाएगा। फिर भी अगर कंपनियां उन्हें पुरुषों के बराबर सैलरी नहीं देती हैं तो उन्हें प्रतिदिन के हिसाब से 500 डॉलर्स (31,703 रुपए) का जुर्माना चुकाना पड़ेगा। बता दें कि वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के शोध के अनुसार विश्व के अधिकतर देशों में महिलाओं को पुरुषों से कम सैलरी मिलती है। ऐसे में आइसलैंड की ओर से इस ओर उठाया गया यह कदम बेहद क्रांतिकारी मालूम पड़ता है।

यूरोपीय देश में अब से कंपनियों को साबित करना पड़ेगा कि वे पुरुषों और महिलाओं को बराबर सैलरी देती हैं। ऐसा करने में अगर वे नाकामयाब साबित हुईं तो उनकी मुश्किलें बढ़ जाएंगी। सरकार उनसे इसी बात पर भारी जुर्माना वसूलेगी, जिसकी रकम 500 डॉलर्स प्रतिदिन के हिसाब से बताई जा रही है।

महिलाओं और पुरुषों की सैलरी से जुड़ा यह कानून सोमवार (1 जनवरी 2018) को प्रभाव में आया। यहां यह सभी कंपनियों और संगठनों पर लागू होगा, जिसमें न्यूनतम 25 कर्मचारी होंगे। वहीं, 250 से अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों को इस साल के अंत तक इस बाबत एक सर्टिफिकेट हासिल करना पड़ेगा। जबकि छोटी और मझोली कंपनियों को आने वाले सालों तक इसे जमा करने के लिए वक्त दिया जाएगा। आपको बता दें कि उत्तरी एटलांटिक महासागर में स्थित आइसलैंड एक देश है। यहां तकरीबन 3 लाख 34 हजार 252 लोग (2016 की जनगणना के अनुसार) रहते हैं। टूरिज्म और फिशरीज के जरिए यहां की अर्थव्यवस्था चलती है। बीते नौ सालों से यह देश वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के अनुसार लैंगिक समानता के मामले में विश्व का नौंवा देश है।