रूस के रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में ऐलान किया था कि उसने यूक्रेन के साथ चल रही लड़ाई में हाइपरसॉनिक मिसाइल का इस्तेमाल किया था। डिफेंस मिनिस्ट्री के प्रवक्ता का दावा था कि उनके Kinzhal एविएशन मिसाइल सिस्टम की एक हाइपरसॉनिक एयरोबैलिस्टिक मिसाइल ने यूक्रेन में एक ऐसे ठिकाने को तबाह किया जहां भारी मात्रा में गोला-बारूद व मिसाइलें रखी हुई थीं। ये हमला Deliatyn में हुआ था।

हाइपरसॉनिक मिसाइल एक ऐसा हथियार है जो ध्वनि की रफ्तार से पांच गुना ज्यादा तेज गति से चलता है। इसे टारगेट के हिसाब से गाइड किया जा सकता है। इसकी यही खूबी इसे बैलिस्टिक मिसाइल से अलग करती है। बैलिस्टिक मिसाइल एक तय रास्ते (ballistic trajectory) पर चलती है। लेकिन हाइपरसॉनिक मिसाइल का रास्ता टारगेट के हिसाब से तब्दील किया जा सकता है। फिलहाल इसकी दो किस्में मौजूद हैं। हाइपरसॉनिक ग्लाइड वहीकल (HGV) के साथ हाइपरसॉनिक क्रूज मिसाइल इसकी किस्में हैं।

अमेरिकी कांग्रेस की एक रिसर्च सर्विस रिपोर्ट कहती है कि हाइपरसॉनिक मिसाइल को डिटेक्ट करने में डिफेंस सिस्टम नाकाम ही रहता है। अपनी स्पीड की वजह से ये बेहद घातक साबित होती है। रडार इनका पता नहीं लगा पातीं क्योंकि ये तेजी से अपने निशाने की तरफ जाती हैं और इनकी उड़ान ज्यादा ऊंची नहीं होती। रडार को कई बार इनका पता आखिरी समय में ही लग पाता है जिससे मिसाइल को रोकने या नष्ट करने का मौका सेना को मिल ही नहीं पाता। रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका का भी मौजूदा डिफेंस सिस्टम इनसे पार पाने में उतना सक्षम नहीं है। उसके पास भी हाइपरसॉनिक मिसाइल का पता लगाकर जवाबी कार्रवाई करने की महारथ नहीं है।

रूस के अलावा हाइपरसॉनिक मिसाइलों के मामले में चीन भी तेजी से अपने कदम आगे बढ़ा रहा है। जिनपिंग की सेना ने अगस्त 2021 में इसका इस्तेमाल करके दुनिया को भौचक कर दिया था। रूस, चीन व अमेरिका इस मामले में बहुत तेजी से कदम आगे बढ़ा रहे हैं। तीनों देश हाइपरसॉनिक मिसाइल प्रोग्राम की एडवांस स्टेज में पहुंच चुके हैं। इनके अलावा भारत, फ्रांस, जर्मनी, जापान और आस्ट्रेलिया भी इस घातक मिसाइल को तैयार करने की दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं। अमेरिकी कांग्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक भारत जून 2019 और सितंबर 2020 में हाइपरसॉनिक क्रूज मिसाइल का परीक्षण कर चुका है।