डिटरजेंट पाउडर बनाने वाली चीनी कंपनी ने अपने नस्ली विज्ञापन के लिए माफी मांगी है। विवादित विज्ञापन में एक अश्वेत व्यक्ति को डिटरजेंट पाउडर एक श्वेत रंग के एशियाई व्यक्ति में बदल देता है। विज्ञापन में एक महिला एक अश्वेत व्यक्ति को वाशिंग मशीन में डाल देती है जिसके बाद वह गोरा होकर और चीनी नैन नक्श वाले व्यक्ति के तौर पर बाहर निकलता है। शंघाई लेईशांग कॉस्मेटिक्स लिमिटेड कंपनी ने कहा कि वह नस्ली भेदभाव की कड़ाई से निंदा करता है लेकिन उसने विज्ञापन को बढ़ा चढ़ाकर पेश करने के लिए विदेशी मीडिया को दोष दिया।
विज्ञापन पहली बार मार्च में चीनी सोशल मीडिया पर दिखा था लेकिन मीडिया की खबरों के बाद विरोध होने पर इसे इस हफ्ते रोक दिया गया।कंपनी ने कहा, ‘‘विज्ञापन से विवाद पैदा हुआ जिसे लेकर हमें खेद है। लेकिन हम विवादित सामग्री के लिए जिम्मेदारी लेने से नहीं बचेंगे।’’ शंघाई लेईशांग कॉस्मेटिक्स लिमिटेड ने कहा, ‘‘हम इस विज्ञापन के प्रसार के लिए और मीडिया के इसे बढ़ा चढ़ाकर दिखाने के लिए अफ्रीकी लोगों से माफी मांगते हैं।’’ कंपनी ने कहा, ‘‘हम पूरी ईमानदारी से उम्मीद करते हैं कि लोग और मीडिया इसपर ज्यादा दिमाग नहीं लगाएंगे।’’ विज्ञापन से चीन में नस्ली भेदभाव पर एक सिरे से चर्चाएं शुरू हो गयी हैं।
चीन में कानूनी विशेषज्ञों ने एक डिटर्जेंट के विवादित विज्ञापन के मुद्दे से निपटने के लिए जहां कड़े कानून की वकालत की है वहीं सरकारी समाचार पत्रों ने पश्चिमी मीडिया पर इस मुद्दे के चलते चीन को ‘नस्लीय चश्मे’ से देखने का आरोप लगाया है। एक अश्वेत व्यक्ति को इस डिटर्जेंट से धुल कर गोरी चमड़ी वाला दिखाने वाले इस विज्ञापन को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों ने गहरी नाराजगी जाहिर की है। इसके बाद कानूनी विशेषज्ञों ने नस्लीय संवेदनशीलता के बारे में और ज्यादा जागरूकता फैलाने की बात कही है।
सरकारी समाचार पत्र चाइना डेली ने कहा है कि चीन के विज्ञापन कानून को पिछले साल अद्यतन किया गया था। इस कानून के मुताबिक, राष्ट्रीय, नस्लीय, धार्मिक और लिंग आधारित भेदभाव बताने वाली किसी भी सामग्री के विज्ञापन पर रोक है। इसके लिए जुर्माने का भी प्रावधान है। डिटर्जेंट की कंपनी ने माफी मांगते हुए यह विज्ञापन वापस ले लिया है लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि उसके खिलाफ क्या कोई कार्रवाई की जाएगी। चीन के रेनमिन विश्वविद्यालय में नागरिक और वाणिज्यिक कानून के प्राध्यापक लियु जुन्हई ने बताया कि विज्ञापन चीन में नस्लीय मुद्दों के बारे में आम जनता में जागरूकता के अभाव को दर्शाता है। लियु ने कहा ‘चीनी ब्रांडों को सोशल मीडिया के प्रभाव के चलते सतर्क रहना चाहिए।’
उन्होंने कहा कि आम जनता और विज्ञापनों में नस्लीय मुद्दों के बारे में संवेदनशीलता पश्चिमी देशों जितनी नहीं है। लियु ने कहा ‘प्राधिकारियों को शिक्षा और विज्ञापन उद्योग की निगरानी के माध्यम से जागरूकता फैलाना चाहिए और भेदभाव के मामलों में सजा देनी चाहिए।’ चीन के जिस विज्ञापन को लेकर इतना बवाल मचा उसमें दिखाया गया है कि एक महिला एक श्वेत व्यक्ति को वॉशिंग मशीन में डालती है और डिटर्जेन्ट से धुलाई के बाद वह गोरी चमड़ी वाला चीनी व्यक्ति बन कर बाहर आ जाता है। विज्ञापन की निंदा करते हुए सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा ‘जिसने भी इस निष्ठुर विज्ञापन को तैयार किया है, लगता है वह नस्लीय भेदभाव से और पश्चिमी समाज में इस संबंध में संवेदनशीलता से पूरी तरह अनजान है।’ संपादकीय में अखबार ने यह भी लिखा है कि विज्ञापन जारी होने से पहले इस डिटर्जेन्ट निर्माता कंपनी को ज्यादा लोग नहीं जानते थे।
आगे अखबार ने लिखा है ‘इस बीच, पश्चिमी मीडिया विज्ञापन की अंधाधुंध रिपोर्टिंग करते हुए सीमा पार कर गया और उसने चीन पर नस्लीय भेदभाव का आरोप लगा दिया जबकि चीनी समाज में नस्लवाद कभी नहीं रहा।’ इसमें लिखा है कि अगर कंपनी का इरादा विवाद खड़ा कर अपने ब्रांड का प्रचार करने का नहीं था तो साफ है कि उससे एक भूल हो गई और उसका इरादा लोगों की भावनाएं आहत करने का नहीं था। इस मामले में पश्चिमी मीडिया समझदारी से अपनी नाखुशी जाहिर कर सकता था लेकिन उसने मुद्दे को बढ़ाचढ़ा कर बताने में सीमाएं पार कर डाली। संपादकीय में कहा गया है कि पूरा ठीकरा पश्चिमी मीडिया पर नहीं फोड़ा जा सकता। नस्लवाद पश्चिमी आधुनिक विकास की बड़ी बुराइयों में से एक है।
जब कुछ पश्चिमी लोग डिटर्जेंट के विज्ञापन के कारण चीन को नस्लवाद के चश्मे से देखते हैं तो वह नस्लवाद को लेकर अपनी खुद की छवि के बारे में क्यों नहीं सोचते।