ब्रिटेन में 23 जून को इस बात पर वोटिंग होगी कि देश को यूरोपियन यूनियन में बने रहना चाहिए या नहीं। ब्रिटेन के फैसले का व्यापक असर सिर्फ ब्रिटिश अर्थव्यवस्था तक ही नहीं, बल्कि यूरो जोन से लेकर ग्लोबल मार्केट्स पर भी दिखाई देगा। ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रिटेन के बाहर जाने पर विभिन्न मुद्राओं के बीच समीकरण प्रभावित होने की आशंका है। इसके अलावा EU से अलग होने पर ब्रिटेन से बाहर ऑपरेट होने वाले सभी बिजनेस प्लान्स पर असर होगा, खासतौर से उनपर जिन्होंने बाकी यूरोप को अपना बेस बना रखा है।
इतिहास देखें तो ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन में बेमन से शामिल हुआ, बाकी देशों से बहुत बाद। और ब्रिटेन कभी भी EU के कॉमन करेंसी एग्रीमेंट का हिस्सा नहीं बना। अभी भी ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन के बीच समानताएं कम हैं। ब्रिटेन अपनी मुद्रा और स्वतंत्री मौद्रिक नीति चलाता है, यह अपनी नीतियां खुद तय करता है। यही इस वोटिंग के पीछे की मुख्य वजह है। यूरोपियन यूनियन के साथ समझौते से सभी सदस्य देशों को निर्यात के लिए बाजार मिलता है और आयात सस्ता होता है। हालांकि मजदूरी का मुक्त प्रवाह ऐसा क्षेत्र है जिसने चिंता बढ़ाई है। ब्रिटिशर्स के बीच यह भावना तेजी से फैल रही है कि यूरोपियन यूनियन से बाहर होने पर स्थानीय नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
इस वोटिंग के पीछे सिर्फ राजनीति ही नहीं, आर्थिक चिंताएंं भी हैं। अगर ब्रिटेन EU से बाहर नहीं निकलता है, तो ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर रक्षात्मक भावना की दिशा में नई नीतियां बनाई जाएंगे। रेफरेंडम में नतीजा चाहे जो भी हो, इसके बाद आर्थिक अनश्चितता आनी तय है।
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ब्रिटेन के EU से बाहर होने की सूरत में, मुद्राओं का परिवहन केन्द्र में रहेगा। यह साफ नहीं है कि ब्रिटेन को इस फैसले से फायदा होगा या नुकसान। यह मानकर कि वह जो भी सोच कर चल रहे हैं, मार्केट के खिलाड़ी ब्रिटिश करेंसी को खरीदना या बेचना शुरू कर देंगे। रुपए पर भी इसका असर पड़ेगा, हालांकि मुख्यत: यह अमेरिकी डॉलर से जोड़कर देखा जाता है।
लेकिन जैसे ही चीजें साफ होंगी और यह सामने आएगा कि ब्रिटेन और EU के बाकी देशों की सरकारें Brexit को किस तरह देखती हैं, नीतियों में और पारदर्शिता आएगी। उस वक्त, कंपनियां यह तय कर पाने की स्थिति में होंगी कि ब्रिटेन और EU के बीच नए समीकरण उन पर कितना प्रभाव डालेंगे।
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Brexit फैसले का सबसे बड़ा असर दो मुद्दाें पर दीर्घकालीन होगा। पहला, आप्रवासन और यूरोप व बाकी दुनिया में श्रम का मुक्त प्रवाह। दूसरा, EU टाइप स्थानीय समझौतों का औचित्य। ब्रिटेन के EU से बाहर होने के बाद उसकी प्रतिक्रिया का असर इन दोनों मुद्दों पर लम्बे समय तक रहेगा।