हिंदू धर्म में किसी ईश्वर की पूजा में मंत्रों का खास महत्व होता है। कोई भी पूजा बिना मंत्रों के अधूरी मानी जाती है। इसलिए हर देवी देवता के अपने खास मंत्र भी होते हैं जिनका जाप कर के भगवान को प्रसन्न किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शास्त्रों में अन्य मंत्रों की तरह ही क्षमा याचना के मंत्रों का भी वर्णन किया गया है। जिसका उच्चारण करके व्यक्ति भगवान से जाने-अनजाने में पूजा के समय या अपने जीवन में की गई भूल की क्षमा मांगता है। क्षमायाचना इसी भूल को सुधारती है। बिना क्षमायाचना के पूजा पूरी नहीं मानी जाती है। हालांकि ज्यादातर लोग पूजा के समय भगवान से अपनी गलतियों की क्षमा मांगते हैं लेकिन इस क्षमायाचना के लिए कुछ मंत्र भी बताए गये हैं। किसी से अपनी गलती की क्षमा मांगना सबसे बड़ा प्रायशचित होता है इससे इंसान के अंदर का अहंकार मिट जाता है। इसलिए हर व्यक्ति को अपने जीवन में की गई गलतियों की मांफी मांगने से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।
पूजा में भगवान से क्षमा मांगने के लिए इस मंत्र को बोला जाता है
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन।
यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे॥
इस मंत्र का अर्थ इस प्रकार है कि हे प्रभु। ना ही मैं आपको बुलाना जानता हूं और ना ही विदा करना। और पूजा करना भी मैं नहीं जानता। कृपा करके मुझे मेरे द्वारा की दई गलतियों के लिए क्षमा करें। मुझे ना तो मंत्र याद है और ना ही क्रिया। और ना ही मैं भक्ति करना जानता हूं। यथा संभव पूजा कर रहा हूं, कृपया भूल को क्षमा कर इस पूजा को पूर्णता प्रदान करें।
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क्षमा मंत्र बोलने की इस परंपरा का भाव यही होता है कि भगवान तो हर जगह है। उन्हें न तो आमंत्रित करना होता है और न विदा। यह जरूरी नहीं कि पूजा पूरी तरह से शास्त्रों में बताए गए नियमों के अनुसार हो, मंत्र और क्रिया किसी में भी चूक हो सकती है। इसके बावजूद चूंकि मैं भक्त हूं और पूजा करना चाहता हूं, इसलिए मुझसे चूक हो सकती है, लेकिन भगवान मुझे क्षमा करें। मेरा अहंकार दूर करें, क्योंकि मैं आपकी शरण में हूं।