हंस योग को एक बेहद शुभ योग माना जाता है। जिसका संबंध देवगुरु बृहस्पति से होता है। यदि गुरु अपनी स्वराशि मीन या धनु अथवा उच्च राशि कर्क में स्थित होकर जन्म कुंडली के केन्द्र स्थान में हो तो ऐसे में ‘हंस’ नामक योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति बुद्धिमान और आध्यात्मिक होता है और समाज में काफी प्रसिद्धी हासिल करता है। इसी के साथ इस योग के प्रभाव वाले जातक अपने क्षेत्र में महारथ हासिल कर लेते हैं। किसी धर्म या आध्यात्म से जुड़े काम में विशेष पद प्राप्त कर सकते हैं। लेकचरार या प्रोफेशर बन सकते हैं, शिक्षा से संबंधी कार्यों में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
जिनकी कुंडली में यह योग बनता है उन लोगों का व्यक्तित्व सुंदर होता है। उसका माथा चौड़ा और नाक लंबी होगी। आंखों में एक अलग ही चमक देखने को मिलती है। छाटी चौड़ी होती है। बुद्धि के तेज होने के कारण इन्हें धन की कभी कमी नहीं होती। बृहस्पति की इन पर विशेष कृपा रहती है। ऐसे लोगों के कई मित्र होते हैं। साथ ही इन लोगों की सोच काफी सकारात्मक होती है। इस योग के जातकों का जीवन सुखमय रहता है। समाजिक कार्यों में इनकी ज्यादा रूचि होती है। जिस वजह से इन्हें समाज में काफी सम्मान मिलता है।
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कुंडली में इस योग के बनने पर व्यक्ति की वाणी काफी मधुर होती है। ऐसे लोग अपनी क्षमता और योग्यता के आधार पर भीड़ में भी अपने लिए जगह बना लेते हैं। जिस कारण यह आसानी से प्रसिद्ध हो जाते हैं। अगर किसी जातक की कुंडली में बृहस्पति ग्रह लग्न या चन्द्रमा से पहले, चौथे, सातवें और दशवें घर में कर्क, धनु अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में हंस योग बनता है। इससे व्यक्ति को जीवन में सारी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं। इसी तरह गुरु के किसी कुंडली में चौथे, सातवें या दसवें घर में होने की स्थिति में भी हंस योग बनता है। ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार लगभग हर 12वीं कुंडली में इस योग का निर्माण होता है।
