जीवन में कई बार ऐसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है, जब इंसान उन मुश्किलों के समाधान के बजाय गलत चीजों का दामन थाम लेता है। इस बात पर सद्गुरु जग्गी वा्सुदेव कहते हैं कि ऐसी परिस्थिति में इंसान के पास दो विकल्प होते हैं या तो वो चोटिल हो जाए या फिर समझदार बन जाए। इस बात को उदहारण के साथ समझे तो बात सन् 1941 की है। उस समय नाज़ी आंदोलन जर्मनी और यूरोप के कुछ हिस्सों में बढ़ रहा था। एक दिन ऑस्ट्रिया में जर्मन सैनिकों का समूह अमीर यहूदी परिवार के घर में जबरन घुस गया और परिवार के सभी बड़ों को अपने साथ ले गया। इनमें दो बच्चे थे एक 12 साल की लड़की और 8 साल का लड़का जिन्हें रेलवे स्टेशन ले जाया गया। उन्हें तीन दिन तक रेलवे स्टेशन में रखा गया क्योंकि ट्रेन नहीं आई थी।

जब ट्रैन आई जो कि एक मालगाड़ी थी तब सिपाहियों ने उन्हें उस ट्रेन में ठूंस दिया। लेकिन जल्दबाजी में छोटा लड़का जूता पहनना भूल गया। जिसे देख उसकी बहन गुस्से में आग बबूला हो गई और उसने अपने भाई के कान मरोड़े और चाटा मार दिया। क्योंकि मौसम बहुत ठंडा था और अगर जर्मनी की सर्दियों में जूते ना पहने हो तो पैर गवाने पड़ सकते हैं। अगले स्टेशन पर लड़को और लड़कियों को अलग कर दिया गया। और 4 साल बाद जब लड़ाई खत्म हुई और वह लड़की बंदिश शिविर से बाहर आई। उसे पता चला की उसके परिवार के सारे सदस्य गायब हो चुके हैं।

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उस समय उसे बस एक ही बात सता रही थी, उसके भाई को कहे गए उसके आखिरी कड़वे शब्द। तब उसने अपने जीवन में शपथ ली कि वह अपने जीवन में किसी से भी ऐसी बात करेगी कि अगर वो उसके उस व्यक्ति से आखिरी शब्द हों तो उसे कभी पछताना ना पड़े। उसकी इस एक चीज ने उसका जीवन बदल दिया। वह अमेरिका चली गई और वहां उसने काफी अच्छे काम किए। उसने एक सार्थक जीवन जिया। इसलिए जीवन में भयानक समस्या के आ जाने पर या तो हम उस अनुभव का इस्तेमाल एक बेहतर इंसान बनने के लिए कर सकते हैं या फिर अपने जीवन को अस्त-व्यस्त करने के लिए।