जब बच्चे छोटे होते हैं तो वह अपने माता-पिता से हर बात शेयर करते हैं। लेकिन यही बच्चे जब बड़े होते हैं तो अपने मां-बाप के लाख बार पूछने के बाद भी उनसे अपनी कोई बात शेयर नहीं करते। ऐसा क्यों होता है, इस बारे में ब्रह्मकुमारी शिवानी कहती हैं कि हर आत्मा को स्वीकार्यता की जरूरत होती है। जैसे जब बच्चे छोटे होते थे तो आपको उनकी हर सही गलत बातों को सुनना पसंद होता था लेकिन जब वह बड़े हो गए तो उन्हें आपसे वो स्वीकार्यता नहीं मिलती जो उन्हें पहले मिला करती थी। सिस्टर शिवानी इस बात को उदाहरण के साथ समझाते हुए कहती हैं कि जैसे आपके बच्चे ने आपको बताया कि उसने स्कूल बंक किया था। उसने पहले की तरह ही अपनी बात आपको ईमानदारी से बतायी लेकिन आज उसे आपसे वो स्वीकार्यता नहीं मिली। ऐसा उसके साथ-साथ बार-बार होता रहा। तो ऐसे में उस बच्चे ने आपसे धीरे-धीरे अपनी बातें बताना ही बंद कर दिया और आपने सोच लिया कि उसने ऐसा करना ही बंद कर दिया।
लेकिन अगर हम उन्हें डांटने की बजाय ऐसे समझायें कि आप ऐसा कर रहे हैं ये सही है, लेकिन वो चीज आपके लिए सही नहीं है। तो शायद इस बात का आपके बच्चे पर प्रभाव पड़ता। और वह अपनी बात आपसे शेयर करना बंद नहीं करता। इसलिए आज के समय में अगर अपने बच्चों को प्रोटेक्ट करना है तो उनसे ऐसा रिलेशन बनाना होगा जिससे की वह बच्चा आपसे अपनी सारी बाते शेयर करे।
[bc_video video_id=”5999550097001″ account_id=”5798671092001″ player_id=”JZkm7IO4g3″ embed=”in-page” padding_top=”56%” autoplay=”” min_width=”0px” max_width=”640px” width=”100%” height=”100%”]
इसी चीज के लिए आज स्कूल्स में काउंसलर होते हैं। जो बच्चों की परेशानियों को सुनते हैं। क्यों एक बच्चा दूसरे इंसान से अपने दिल की बात कह देता है लेकिन अपने माता-पिता से नहीं कहता। क्योंकि काउंसलर से उसे वही स्वीकार्यता और सम्मान मिलता है जो वो चाहता है। जिससे वह अपनी बात उससे करने में कंफर्टेबल महसूस करता है। लेकिन अगर वही बात बच्चा अपने माता-पिता से कहे तो उसे आपसे ऐसी प्रतिक्रिया मिलेगी जिससे वह कुछ भी आपको बताने से हिचकिचाने लगेगा। ध्यान रखें, काउंसलर बात सुन सकता है लेकिन माता-पिता जैसा प्यार नहीं दे सकता।