गाय को हिंदू संस्कृति में सबसे पवित्र माना जाता है और इसे माता का दर्जा दिया गया है। ग्रामीण इलाकों में पहली रोटी गाय की बनाई जाती है। गाय को प्राचीन काल से ही अधिक महत्व दिया जाता है। इसे देवी-देवताओं का स्वरुप माना गया है। शास्त्रों के मुताबिक प्रात: स्नान करके गौ स्पर्श करने से सभी पाप खत्म हो जाते हैं। वेदों में गाय को बहुत अधिक महत्व दिया गया है। वेदों के मुताबिक गाय में देवताओं का निवास होता है। आइए आज जानते हैं कि गाय के किस अंग में कौन से देवता का निवास होता है।
पुराणों के मुताबिक गाय के मुख में चारों वेदों का निवास होता है। गाय के सींगों में भगवान शिव जी का वास माना जाता है। गाय के उदर में भगवान शिव जी के बड़े बेटे कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट में रुद्र, सीगों के आगे वाले भाग में भगवान इन्द्र, कानों में अश्विनीकुमार, आंखों में सूर्य और चंद्र, दांतों में गरुड़, जिह्वा में सरस्वती निवास करती है। गाय के अपान में सारे तीर्थ और मूत्र स्थान में गंगा जी, दक्षिण पार्श्व में वरुण एवं कुबेर, वाम पार्श्व में महाबली यक्ष,रोमकूपों में ऋषि गण, पृष्ठभाग में यमराज, खुरों के पिछले भाग में अप्सराएं मुख के भीतर गंधर्व, नासिका के अग्रभाग में सर्प का वास होता है। गाय के गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में भवानी और थनों में समुद्र विराजमान होता है। इसके अलावा गाय के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक लगाने से तीर्थ-स्नान का पुण्य मिलता है।
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ब्रह्माण्ड पुराण, महाभारत, भविष्य पुराण, स्कंद पुराण में गाय का विस्तृत वर्णन किया गया है, जिसमें गाय के शरीर में देवी-देवताओं के निवास स्थान के बारे में बताया गया है। मान्यता है जहां गाय बैठकर आपराम से सांस लेती है, उस स्थान पर सुख-समृद्धि का वास होता है। जो मनुष्य गौ की श्रद्धापूर्वक पूजा-सेवा करते हैं, देवता उस पर सदैव प्रसन्न रहते हैं।