शरीर को कोई चोट लगने पर, जिस सहजता के साथ लोग डाक्टरों के पास पहुंच जाते हैं, उसी सहजता के साथ यदि मन की चोट का इलाज करवाने भी वे मनोविज्ञानियों के पास पहुंचने लगें तो मानसिक समस्याओं पर समय रहते काबू पाया जा सकता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर सर गंगाराम अस्पताल की वरिष्ठ कंसलटेंट डा. रोमा कुमार ने समाज में मनोविज्ञानियों से मदद लेने की स्वीकार्यता बढ़ाने के साथ-साथ परिवार और दोस्तों के बीच खुली बातचीत पर भी जोर दिया। आए दिन अखबारों में छपने वाली रोड रेज, छोटी सी बात पर हत्याओं आदि की खबरों का हवाला देते हुए डा कुमार ने कहा, ‘आजकल लोगों में सहनशक्ति बेहद कम और गुस्सा बहुत ज्यादा हो गया है। ये दोनों ही चीजें मानसिक स्तर पर असंतुलन पैदा कर देती हैं। ऐसे में बड़ा नुकसान किसी अन्य व्यक्ति को उठाना पड़ जाता है। नुकसान करने वाला व्यक्ति जब तक सामान्य हो पाता है, तब तक बात हाथ से निकल चुकी होती है।’

उन्होंने कहा, ‘बच्चों और युवाओं के अंदर सहनशक्ति कम होने की इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए जरूरी है कि परिवार में बच्चों को धैर्य बरतना सिखाया जाए। उन पर सिर्फ जीतते रहने का दबाव न बनाया जाए, बल्कि उन्हें हार को स्वीकार करके फिर से खड़ा होना सिखाया जाए।’ डा. कुमार ने कहा, ‘यह बात सिर्फ बच्चों पर ही नहीं, घर के व्यस्कों पर भी लागू होती है। कछुए और खरगोश की कहानी हम सभी ने पढ़ी है। एकाएक सफल हो जाने की होड़ न करें। अपनी गति से चलें, वरना फायदे से ज्यादा अपनी सेहत का नुकसान कर बैठेंगे।’
लंबे समय से मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहीं डॉ कुमार ने इंटरनेट के सदुपयोगों के साथ-साथ दुरूपयोगों पर भी गौर करने के लिए कहा। उन्होंने कहा, ‘पढ़ाई-लिखाई और मनोरंजन के लिए इंटरनेट जरूरी है लेकिन इंटरनेट पर परोसी जा रही हिंसा को देखते हुए माता-पिता को इसके इस्तेमाल की भी एक सीमा तय करनी होगी। साथ ही उन्हें परिवार के बीच स्वस्थ संवाद कायम करना होगा ताकि यह पता चल सके कि परिवार का कोई व्यक्ति किस मानसिक स्थिति से गुजर रहा है।’

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हर साल दस अक्तूबर को मनाए जाने वाले विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की इस साल थीम ‘मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा’ है।इस पर डॉ कुमार ने कहा, ‘मानसिक तौर पर किसी भी समस्या का सामना करने वाले व्यक्ति को जब कोई समझने वाला मिल जाता है तो उसके स्वस्थ होने की राह आसान हो जाती है। यह प्राथमिक मदद उसे अपने परिवार के भीतर भी मिल सकती है और अच्छे मनोविज्ञानी से भी।’डा कुमार ने कहा, ‘परिवार के भीतर वे अपनी मानसिक समस्या पर तभी खुल कर बात कर पाते हैं, जब घर का माहौल स्वस्थ संवाद को बढ़ावा देता हो। यह जरूरी नहीं है कि यदि वे आपसे परेशानी साझा कर रहे हैं तो आपको उनकी समस्या का हल करना ही है। आप अक्सर अपनी भावनाओं के चलते निष्पक्ष सलाह नहीं दे पाते। ऐसे में आप मनोविज्ञानी के साथ उनकी मुलाकात करवा सकते हैं।’

मनोरोगों के प्रति समाज में आज भी व्याप्त भ्रांतियों के बारे में डॉ कुमार ने कहा कि बड़े शहरों में स्थिति पहले से थोड़ी बेहतर हुई है। स्कूलों, बड़ी कंपनियों में मनोविज्ञानियों की सेवाएं ली जाने लगी हैं। लोग खुद भी मनोविज्ञानियों के पास पहुंचने लगे हैं, लेकिन ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि तस्वीर एकदम बदल गई है। उन्होंने कहा, ‘छोटे शहरों की स्थिति तो बेहद खराब है। मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता लाने की दिशा में बहुत काम किया जाना बाकी है। लोगों को समझाना होगा कि किसी बात को मन में दबा कर रखने से वे अपने मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ शारीरिक सेहत को भी खराब करते जाते हैं। इससे बचने के लिए उन्हें एक तो अपने किसी विश्वस्त के साथ खुल कर बात करनी चाहिए और दूसरा मनोविज्ञानी से मदद लेने में हिचकिचाना नहीं चाहिए।’उन्होंने कहा, ‘सीने में जकड़न, सिर दर्द और उच्च रक्तचाप जैसी कितनी ही बीमारियों के मूल में अक्सर मानसिक या भावनात्मक परेशानियां होती हैं। ऐसे में सिर्फ मानसिक ही नहीं बल्कि शारीरिक रूप से स्वस्थ समाज के निर्माण में भी मनोविज्ञानियों की भूमिका बहुत अहम हो गई है।’