दुनिया भर में करोड़ों लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। एक अध्ययन के अनुसार 2030 तक दुनिया में सातवीं सबसे ज्यादा मौतें मधुमेह के कारण होंगी। मधुमेह के प्रभाव को देखते हुए इसके रोगियों को खान-पान का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। भारत की बात करें तो यहां के खाने में प्याज एक अहम तत्व है। ऐसे में सवाल उठता है कि ब्लड शुगर के मरीजों को प्याज का सेवन करना चाहिए या नहीं? तो आइए जानते हैं विशेषज्ञ इसके बारे में क्या कहते हैं।

अध्ययनों में पाया गया है कि प्याज में कई तरह के फ्लेवोनोइड्स (एक प्रकार का एंटीऑक्सीडेंट) पाए जाते हैं, जो हमारे शरीर में ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इसके साथ ही प्याज अच्छे स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। दरअसल नाइजीरिया के डेल्टा स्टेट यूनिवर्सिटी में हुए अध्ययन में पाया गया कि प्याज ब्लड शुगर के बढ़े हुए स्तर को कंट्रोल करने में मदद कर सकता है।

चूहों पर हुआ शोध

नाइजीरिया के डेल्टा स्टेट यूनिवर्सिटी में हुए अध्ययन में पाया गया कि डायबिटिक चूहों को उनके शरीर के प्रति किलोग्राम वजन के हिसाब से 400 मिलीग्राम और 600 मिलीग्राम प्याज का अर्क दिया गया। इस दौरान शोधकार्ताओं ने पाया कि उनके रक्त शर्करा के स्तर में बेसलाइन स्तर की तुलना में क्रमशः 50 प्रतिशत और 35 प्रतिशत की कमी आई। प्याज के अर्क ने मधुमेह के चूहों में कुल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी कम किया, जिसमें 400 मिलीग्राम और 600 मिलीग्राम का सबसे बड़ा प्रभाव देखने को मिला।

इस गुण की वजह से प्याज कम करता है ब्लड शुगर का स्तर

मैक्स हॉस्पिटल के एंडोक्रिनोलॉजी और मधुमेह विभाग के प्रमुख डॉ अम्बरीष मिथल ने इंडियन एक्सप्रेस से बताया, “हम केवल यह मान सकते हैं कि रक्त शर्करा स्तर के कमी में प्याज के कारण जो कमी हुई है इसके पीछे क्वेरसेटिन, एक फ्लेवोनोइड के कारण हुई है। सूजन को कम करने, रक्तचाप को कम करने और रक्त शर्करा को बनाए रखने में एक चिकित्सीय क्षमता प्रदान करने के लिए यह प्याज में पाया जाता है। क्वीरसेटिन शर्करा को कम करता है क्योंकि यह कोशिकाओं द्वारा ग्लूकोज को बढ़ाता है और इंसुलिन स्राव में सुधार करता है।”

डॉक्टर ने बताया, “इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, लेकिन शोध में वास्तव में क्वीरसेटिन की पहचान की गई है, तो मनुष्यों को आवश्यक मात्रा को केवल एक गोली में अर्क के रूप में दिया जा सकता है। यह काम करेगा या नहीं यह तो समय ही बताएगा। फिलहाल इसके लिए हमें मानव-परीक्षण पर किए गए शोध की आवश्यकता है।”