विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर भारतीय चिकित्सा परिषद (आइसीएमआर) ने ई-सिगरेट के खतरनाक प्रभावों पर श्वेत पत्र जारी किया। परिषद ने इसके घातक रसायनों के बारे में हुए शोध के आधार पर ई-सिगरेट को भारत में पूरी तरह प्रतिबंधित करने की सिफारिश की है। आइसीएमआर के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव ने कहा कि लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर व्यापक हित में निकोटीन देने वाली इलेक्ट्रिक डिवाइस पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए क्योंकि इसमें न केवल निकोटीन है बल्कि इसके साल्वेंट में घातक रसायन भी शामिल हैं, जो इसका इस्तेमाल करने वाले के साथ ही उसके आसपास इसका उपयोग न करने वाले लोगों को भी (पैसिव स्मोकर) नुकसान करता है। इसे नहीं रोका गया तो भारत में इसका उपयोग महामारी का रूप ले लेगा।
आइसीएमआर ने शुक्रवार को यह श्वेत पत्र जारी किया, जिसमें कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम एक ऐसी डिवाइस है जो बैटरी से चलती है और इसमें नशीला पदार्थ निकोटीन होता है। इसका एक रूप ई-सिगरेट है जिसमें निकोटीन एक तरह के रसायन (साल्वेंट) में घुल कर डिवाइस के जरिए व्यक्ति के शरीर में पहुंचता है। इसके अलग-अलग तरह के स्वाद देने के लिए अलग रसायन मिलाया जाता है। इन सभी का इस्तेमाल नुकसानदेह होता है। इसे तंबाकू आधारित पारंपरिक सिगरेट व बीड़ी को छुड़ाने के लिए एक विकल्प के तौर पर लाया गया था। बावजूद इसके कि यह उसके जैसा या अधिक ही नुकसान करता है। फिर भी देश-विदेश में ई-सिगरेट के 460 तरह के ब्रांड मौजूद हैं व धड़ल्ले से बिक भी रहे हैं जो निकोटीन की अलग-अलग मात्रा देने के हिसाब से डिजाइन किए गए हैं। आइसीएमआर ने बताया है कि ई-सिगरेट शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करता है और गर्भ से लेकर मौत तक व्यक्ति के देह पर असर छोड़ता है। यह सांस की नली, दिल की धमनियों, शरीर के नसों, भ्रूण व शिशु के मस्तिष्क के विकास को भी बधित करता है।
इस डिवाइस का जहां उपयोग होता है, वहां के आसपास की बाकी जनता पर भी खासकर गर्भवती महिला व भ्रूण की सेहत को घातक नुकसान पहुंचाता है। इसमें विस्फोट का भी खतरा होता है। गलती से कोई बच्चा सूंघ ले तो उस पर जहर जैसा असर करता है। इसका उपयोग करने वाले सिगरेट पीना छोड़ नहीं पाते। श्वेत पत्र तैयार करने वाले विशेषज्ञों में शामिल डॉ एसके रेड्डी ने कहा कि भारत में जागरुकता बढ़ाने के साथ तंबाकू के उपयोग में थोड़ी कमी आनी शुरू हुई है, लेकिन इस तरह के उत्पाद आने से सिगरेट की लत का शिकार होने वाले युवाओं की संख्या बढ़ रही है। आइसीएमआर के अधीन राष्ट्रीय कैंसर निरोधक शोध संस्थान के निदेशक डॉ रवि मेहरोत्रा ने कहा है कि देश में धूम्रपान में तो कमी देखने को मिल रही है लेकिन खैनी वगैरह का इस्तेमाल अभी भी चुनौती है। इसी तरह नए उत्पाद भी एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहे हैं जिनका लोग बिना जाने समझे इस्तेमाल कर रहे हैं। डॉ भार्गव ने कहा कि ई-सिगरेट कितना गंभीर असर करता है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह डीएनए तक को नुकसान पहुंचाता है। फ्लेवर के लिए मिलाए जाने वाले पदार्थ दोहरा नुकसान पहुंचाते हैं। इसके साथ ही निकोटीन की लत गहराती जाती है जो बाद में दोहरे नशा का खतरा पैदा करती है। इसलिए इसे तुरंत पूरे देश में प्रतिबंधित किया जाए।

