भारतीय मूल के एक 16 वर्षीय ब्रिटिश लड़के ने सबसे घातक स्तन कैंसर का इलाज खोजने का दावा किया है। अपने माता-पिता के साथ ब्रिटेन चले जाने वाले कृतिन नित्यानंदन ने उम्मीद जताई है कि उन्होंने स्तन कैंसर के सबसे घातक प्रकार का उपचार ढूंढ लिया है। ट्रिपल निगेटिव कैंसर के इस प्रकार में मरीज पर दवाओं का असर होना बंद हो जाता है। कैंसर के इस चरण में पहुंच जाने पर केवल सर्जरी, विकिरण और कीमियोथिरेपी द्वारा ही इलाज संभव होता है। हालांकि इन पद्धतियों से मरीज के जीवित रहने की संभावना भी प्रभावित होती है।
नित्यानंदन ने ब्रिटिश अखबार संडे टेलीग्राफ को बताया, “मैं कैंसर के दुसाध्य मामलों को पर शोध कर रहा था ताकि उनका इलाज किया जा सके।” ट्रिपल निगेटिव स्तर पर पहुंच जाने के बाद स्तन कैंसर के मरीजों पर दवाओं का असर बंद हो जाता है। नित्यानंदन ने अखबार को बताया, “मेरा मकसद कैंसर को उस स्तर पर वापस लाना था जहां उसका इलाज किया जा सके। ID4 प्रोटीन की वजह से कैंसर मरीजों के स्टेम सेल कैंसर पर दवा का असर होना बंद हो जाता है। मेरी कोशिश थी कि ID4 प्रोटीन को रोक दिया जाए। मैंने ऐसा तरीका खोज लिया है जो ID4 उत्पन्न करने वाले जीन को शांत कर सकता है। इससे कैंसर पहले से कम घातक स्तर पर वापस आ जाता है।”
नित्यानंदन ने बताया कि ट्रिपल निगेटिव कैंसर के कुछ मामलों में इलाज का अच्छा असर होता है लेकिन कुछ अन्य मामलों में मरीज का स्वस्थय बहुत जल्द खराब हो जाता है। इसके लिए “परिवर्तित” कैंसर कोशिकाएं जिम्मेदार होती हैं। ऐसी कोशिकाएं धीरे धीरे विकसित होती हैं। ये कम आक्रामक होती हैं। लेकिन “अपरिवर्तित” कैंसर कोशिकाएं आदिम रूप में ही बनी रहती हैं और स्तन ऊतकों में उन्हें चिह्नित करना मुश्किल होता है। ऐसी कोशिकाएं तेजी से फैलती हैं और इनसे उच्च स्तर का ट्यूमर बनता है।
नित्यानंदन को अपने शोध में ये भी पता चला कि ट्यूमर को दबाने वाले जीन PTEN की मात्रा बढ़ने से मरीज पर कीमियोथिरैपी का ज्यादा प्रभावी असर होता है। ऐसे में दोनों चिकित्सा तरीकों के एक साथ प्रयोग से स्तन कैंसर के परंपरागत इलाज की तुलना में ज्यादा असरकार उपचार किया जा सकता है। नित्यानंद के शोध के कारण उन्हें ब्रिटेन के द बिग बैंग फेयर नामक युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम के फाइनल में चुना गया है। नित्यानंदन पहली बार तब सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने पिछले साल गूगल साइंस फेयर में अल्ज़ाइमर बीमारी को शुरुआती चरण में चिह्नित कर लेने वाले टेस्ट तैयार किया था। उनके टेस्ट से अल्ज़ाइमर के असर को बढ़ने से रोकने की भी संभावना जताई गई थी।