सब्जियों और खाने-पीने की अन्य चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी ने भारतीय परिवारों के बजट पर असर डाला है। रोजाना भोजन पर आने वाली लागत भी अब परिवारों को परेशान कर रही है। महंगाई कम न होने की आशंका संकट को और बढ़ा रही हैं। घरों में शाकाहारी थाली बनाना 24.26 प्रतिशत और मांसाहारी थाली तैयार करना 12.54 प्रतिशत महंगा हो गया है।

खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ने से घरों पर क्या असर पड़ा है?

रेटिंग फर्म क्रिसिल की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अगस्त 2022 की तुलना में अगस्त 2023 में शाकाहारी थाली की कीमत 24.26 प्रतिशत बढ़कर 33.8 रुपये हो गई। वहीं मांसाहारी थाली की कीमत 12.54 प्रतिशत बढ़कर 67.3 रुपये हो गई।

इसका मतलब है कि पांच लोगों के परिवार में एक दिन में दोपहर के भोजन या रात के खाने के लिए शाकाहारी थाली तैयार करने के लिए 33 रुपये और मांसाहारी थाली के लिए 37.5 रुपये की ज्यादा खर्च करना पड़ा रहा है। यदि दोपहर और रात दोनों वक्त के लिए खाना तैयार करना हो, तो पांच सदस्यों वाले परिवार को प्रति माह अतिरिक्त 1980 रुपये शाकाहारी थाले के लिए और 2250 रुपये नॉनवेज थाली के लिए खर्च करना होगा।

RBI (Reserve Bank of India) के आंकड़ों के मुताबिक, 2022 में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष खेतिहर मजदूर को औसत रोजाना 323.2 रुपये मिल जाता था। यदि वे महीने में 20 दिन काम करते, तो उनकी मासिक कमाई लगभग 6500 रुपये हो जाती। यदि किसी घर में दो कमाने वाले सदस्य हैं, तो वेतन का 78 प्रतिशत हिस्सा महीने के लिए शाकाहारी थाली (दोपहर का भोजन और रात का खाना दोनों) तैयार करने में खर्च होगा।

इसके बाद कमाई का मात्र 22 प्रतिशत बचेगा, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य, कपड़ा, यात्रा और बिजली का खर्च चलना होगा। ऐसे में परिवारों को अपने रोजाना के भोजन की क्वालिटी और वैरायटी से समझौता करना होगा। परिवार के बजट को कंट्रोल में रखने के लिए भोजन के खर्चों में कटौती करनी होगी।

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(Source: Crisil)

किसी वेज या नॉन-वेज थाली में क्या-क्या होता है?

भारत में थाली, खाने की उस प्लेट को कहते हैं, जिसमें कई व्यंजन शामिल होते हैं और वह सभी एक दूसरे के पूरक होते हैं। एक साधारण शाकाहारी थाली में रोटी, सब्जी (प्याज, टमाटर और आलू), चावल, दाल, दही और सलाद होता है। नॉन-वेज थाली में भी यही सब होता, बस दाल की जगह चिकन ले लेता है।

थाली पर आने वाली लागत को कैसे काउंट करते हैं?

क्रिसिल कहता है कि घर पर थाली तैयार करने में आने वाली औसत लागत की गणना उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम भारत में चल रही इनग्रेडिएंट्स की कीमत के आधार पर की जाती है। हर माह वस्तुओं की कीमत में होने वाले बदलाव का असर आम आदमी के खर्च पर दिखता है। आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि थाली की कीमत में बदलाव लाने वाले प्रमुख आइटम अनाज, दाल, चिकन, सब्जियां, मसाले, खाद्य तेल, रसोई गैस, आदि हैं।

थाली की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण क्या है?

शाकाहारी थाली की कीमत में 24.26 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 21 प्रतिशत बढ़ोतरी के लिए टमाटर की कीमत जिम्मेदार है। जो टमाटर पिछले साल 37 रुपये प्रति किलो थी, वह 176 प्रतिशत बढ़कर अगस्त में 102 रुपये प्रति किलो हो गई। क्रिसिल के मुताबिक, अगस्त 2022 से प्याज की कीमतें 8 फीसदी, मिर्च 20 फीसदी और जीरा 158 फीसदी बढ़ीं, जिससे शाकाहारी थाली की कीमत में एक फीसदी की बढ़ोतरी हुई।

मांसाहारी थाली की लागत में वृद्धि धीमी है। इसका कारण चिकन (Broiler Breed) की कीमत को बताया जा रहा है, जो कुल लागत का 50 प्रतिशत से अधिक है। चिकन की कीमत इस वर्ष में मामूली 1-3 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। क्रिसिल के मुताबिक, वेजिटेबल ऑयल की कीमत में साल-दर-साल 17 फीसदी और आलू की कीमत में 14 फीसदी की गिरावट से दोनों थालियों की कीमत कुछ हद तक कम हो गई।

क्या थाली की कीमतें कम होंगी?

क्रिसिल के अनुसार, सितंबर में लागत में कुछ कमी देखी जा सकती है क्योंकि जुलाई 2023 से टमाटर की खुदरा कीमत आधी होकर 51 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है। इसके अलावा 14.2 किलोग्राम के एलपीजी सिलेंडर की कीमत में भी गिरावट आयी है। अगस्त में एक सिलेंडर की कीमत 1,103 रुपये थी। सितंबर से यह 903 रुपये हो गई है। इससे उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी।

हालांकि, निकट भविष्य में फूड इन्फ्लेशन में भारी कमी आने की संभावना नहीं है। भारत की खुदरा महंगाई अगस्त में लगभग 7 प्रतिशत रहने की उम्मीद है, जो जुलाई में 15 महीने के उच्चतम स्तर 7.44 प्रतिशत पर थी। आलू की कीमतें हर दो साल में बढ़ती हैं और प्याज की कीमतें हर 2.5 साल में बढ़ती हैं। टमाटर की कीमतें लगभग हर जून-जुलाई में बढ़ती हैं। हालांकि भारत के लिए सब्जियों की कीमत में झटका कोई नई बात नहीं है।