साल 1973 में जब फिल्म जंजीर रिलीज हुई तब अमिताभ बच्चन का जलवा हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सिर चढ़कर बोलने लगा था। उन्हीं दिनों राजेश खन्ना की लगभग हर फिल्म फ्लॉप होने लगीं। कहा जाता है कि जैसे- जैसे अमिताभ बच्चन आगे बढ़ रहे थे राजेश खन्ना का करियर उसी हिसाब से पिछड़ने लगा था। अमिताभ जंजीर के बाद अभिमान, नमक हराम, शोले, दीवार आदि फिल्मों की सफलता से नंबर वन स्टार बनते जा रहे थे और राजेश खन्ना की महबूबा, आशिक हूं बहारों का, बंडल बाज जैसी तमाम फिल्में बुरी तरह फ्लॉप हो रही थी।

राजेश खन्ना अपनी नाकामयाबी से बेहद परेशान रहने लगे थे और शराब भी पीने लगे थे। वरिष्ठ फिल्म पत्रकार प्रदीप सरदाना के मुताबिक, उन  दिनों राजेश खन्ना ने कई बड़ी फिल्मों को भी करने से इनकार कर दिया था और वो अपनी पुरानी सफलता में ही डूबे रहते थे। वो अमिताभ से जलने लगे थे और अक्सर अपने दोस्तों के बीच बैठकर उनका मज़ाक उड़ाया करते थे।

राजेश खन्ना अपने उन दोस्तों से भी नाराज़ हो जाया करते थे जो अमिताभ बच्चन का नाम उनके सामने लेते थे। उन्होंने एक बार अमिताभ का मजाक उड़ाते हुए अपने दोस्तों से कहा था, ‘ऐसे अटन, बटन आते-जाते रहेंगे लेकिन राजेश खन्ना को कोई छू भी नहीं सकता। मैं क्या ऐसे ऐरे-गेरे लोगों से डर जाऊंगा..आप लोग अगर ऐसा सोचते भी हैं तो आपको हमारा दरबार छोड़ना पड़ेगा।’

 

राजेश खन्ना ने अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म आनंद और नमक हराम में काम भी किया। आनंद में जहां राजेश खन्ना लोगों की तारीफ के हकदार बनें वहीं नमक हराम के आते-आते अमिताभ लोगों के दिलों में बस चुके थे। इस फिल्म के दौरान राजेश खन्ना ने ऋषिकेश मुखर्जी पर दबाव बनाकर फिल्म के क्लाइमेक्स में बदलाव कर दिया था।

 

उन्होंने फिल्म के क्लाइमेक्स में अमिताभ की जगह अपनी मौत का सीन रखवाया। दरअसल उन्हें पता था कि अगर फ़िल्म के आखिर में वो मरते हैं तो दर्शकों की सहानुभूति उन्हें मिलेगी। लेकिन अमिताभ ने थोड़ा फेरबदल करके बाजी पलट दी। उन्होंने क्लाइमैक्स में राजेश खन्ना की मौत का बदला लिया और दर्शकों की नजर में फिल्म के स्टार वो ही बने।