राजकुमार ने निर्देशक मेहुल कुमार के साथ तीन फिल्मों में काम किया और तीनों ही फिल्मों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। साथ काम करते हुए दोनों के बीच में काफी अच्छी बॉन्डिंग हो गई थी। मेहुल कुमार पहली बार राजकुमार से मुंबई के यूएस क्लब में मिले थे जहां उन्होंने अपनी फिल्म ‘मरते दम तक’ की स्क्रिप्ट सुनाई थी। इस मुलाकात के किस्से का ज़िक्र मेहुल कुमार ने हाल ही में किया और बताया कि मिलने से पहले राजकुमार फ़ोन पर उनकी गाड़ी का नंबर मांगने लगे थे।
इंडिया आस्क नामक मीडिया संस्थान से बातचीत में उन्होंने बताया, ‘मरते दम तक की स्क्रिप्ट मैंने राज साहब को दिमाग में रखकर लिखी थी। मैंने निर्माता प्राणलाल मेहता के ऑफिस से नंबर लिया और रात में राज साहब को फ़ोन किया। मुझे बोलते हैं कौन मेहुल कुमार? मैंने कहा राज जी मैंने दो हिंदी फ़िल्में ‘अनोखा बंधन’ और ‘लव मैरिज’ बनाई है और दोनों हिट रहीं हैं। एक और एक फिल्म है जिसकी स्क्रिप्ट मैंने आपको ध्यान में रखकर लिखी है। उन्होंने कहा क्या टाइटल है? मैंने कहा मरते दम तक।’
मेहुल कुमार ने आगे कहा, ‘राज साहब ने कहा कि टाइटल तो दमदार है और स्क्रिप्ट इसकी? मैंने कहा आप खुद सुन लीजिए सर। मुझे बोलते हैं कि एक काम करो, तुमने यूएस क्लब देखा है? मैंने कहा देखा तो नहीं लेकिन पता है कि आप वहां मेम्बर हैं। मुझसे कहते हैं कि रविवार शाम 6 बजे वहीं आ जाओ, मैं कहानी सुनूंगा। फिर मुझसे उन्होंने पूछा कि तुम्हारे पास गाड़ी है? मैंने कहा हां, तो गाड़ी का नंबर पूछने लगे। मैं परेशान हो गया कि कोई गाड़ी का नंबर क्यों पूछ रहा है।’
मेहुल कुमार ने हालांकि राजकुमार को अपनी गाड़ी का नंबर बता दिया और रविवार को तय समय पर यूएस क्लब पहुंचे। मेहुल कुमार ने बताया, ‘यूएस क्लब के पास जैसे ही मेरी गाड़ी रुकी तो वाचमैन मुझसे पूछने लगा कि आप मेहुल कुमार हो? मैंने कहा हां तो कहता है राज साहब ने आपकी गाड़ी का नंबर दिया था…नहीं तो गाड़ी की पार्किंग नहीं है यहां पर। आप अंदर चलकर उनका इंतजार कीजिए, राज साहब गोल्फ खेलकर फ्रेश होने गए हैं, थोड़ी देर में आकर आपसे बात करेंगे।’
मेहुल कुमार को तब समझ आया कि राजकुमार ने उनसे उनकी गाड़ी का नंबर क्यों पूछा था। राजकुमार से मिलकर मेहुल कुमार ने फिल्म की कहानी सुनाई और राजकुमार उनके साथ फिल्म करने के लिए राजी हो गए थे।
राजकुमार के ऐसे किस्से भी खासे प्रचलित हैं जब स्क्रिप्ट पसंद न आने पर उन्होंने निर्देशकों को कड़े शब्दों में मना कर दिया था। एक बार तो उन्होंने खुद को ऑफर की गई फिल्म अपने कुत्ते को ऑफर कर दी थी और वो भी निर्देशक के सामने। 1968 की फिल्म ‘आंखें’ के लिए डायरेक्टर रामानंद सागर राजकुमार को कास्ट करना चाहते थे इसलिए वो फिल्म की कहानी सुनाने उनके घर गए। कहानी सुनकर राजकुमार ने अपने पालतू कुत्ते को पास बुलाया और कहा कि क्या तुम ये रोल करोगे? इसके बाद उन्होंने रामानंद सागर से कहा कि देखो ये रोल तो मेरा कुत्ता भी नहीं करना चाहेगा।