शहीद नितिन यादव के पिता और माता सिने कलाकार ओमपुरी के निधन से बेहद दुखी हैं। उन्होंने कहा कि हमने अपने बेटे को गंवाने के बाद ओमपुरी के रूप मे भाई को हासिल किया था, लेकिन उनसे भी ज्यादा दिन तक रिश्ता नहीं रह पाया, इसका हमें ताउम्र मलाल रहेगा। दो अक्तूबर को कश्मीर घाटी के बारामूला में शहीद हुए नितिन यादव के परिजनों का कहना है कि ओमपुरी जब उनके गांव आए थे तो ऐसा नहीं लग रहा था कि वे इतनी जल्दी दुनिया से चले जाएंगे। नितिन यादव के चाचा मुकट सिंह ने कहा कि बेशक ओमपुरी के मुंह से शहीदों के बारे में कुछ अपमानजनक शब्द निकल गए हों, पर इसके बाद उनको इतनी ग्लानि हुई कि उन्होंने फिर शहीद नितिन के गांव में पहुंचकर उनके परिजनों से माफी बाकी पेज 8 पर मांगी। हमारा परिवार उनके निधन से बेहद दुखी है। हमारे भतीजे के निधन पर ओमपुरी साहब जिन भी परिस्थतियों में यहां आए और माफी मांगी, उससे हमारा लगाव काफी बढ़ गया।
नितिन के पिता बलवीर सिंह ने कहा कि ओमपुरी जब हमारे बेटे के निधन पर शोक जताने आए थे तो उन्होंने मुझे अपना भाई करार दिया था। आज हमारा भाई ओमपुरी हमारे बीच नहीं रहा, हम बेहद दुखी हैं। उन्होंने कहा कि मुझे अब भी याद है जब उन्होंने कहा कि मैं आपके परिवार का हूं, आगे भी आता रहूंगा लेकिन अब वे इस दुनिया में नहीं है। ऐसा ही कुछ नितिन की मां ऊषा देवी भी कहती है कि जब ओमपुरी हमारे घर आए तो उन्होंने मुझे अपनी बहन कहा था। हमको आज भी यकीन नहीं हो रहा है वे इतनी जल्द हम सबके बीच से चले जाएंगे। उनके साथ बिताए चार घंटे ऐसे लग रहे थे जैसे वो हमारे सगे भाई हों।
इटावा जिले के चौबिया इलाके के नगला बरी गांव के सैनिक नितिन यादव आतंकवादियों से लोहा लेते हुए कश्मीर में मुठभेड़ में शहीद हो गए। इसके बाद एक न्यूज चैनल पर डिबेट में ओमपुरी ने शहीद नितिन यादव को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की जिससे उन्हें देशभर में खासी नाराजगी का सामना करना पड़ा। इसके बाद ओमपुरी अपने 66वें जन्मदिन पर 18 अक्तूबर को उनके गांव नगला बरी पहुंचे और नितिन यादव के परिजनों से मेल मुलाकात करके उनसे ना केवल माफी मांगी बल्कि जमकर आंसू बहाए।
ओम पुरी ने नितिन यादव के पिता और माता से अलग-अलग मुलाकात करके उनसे इस परिवार की हर संभव मदद करने का भरोसा भी दिया। नितिन यादव की शहादत पर अपने जन्मदिन के मौके पर उन्होंने वहां पर शांतिपाठ किया और शहीद की समाधि पर जाकर पुष्पांजलि अर्पित की। उन्होंने शहीद की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ किया और जमकर आंसू बहाए। उन्होंने शहीद के माता-पिता के पैरों पर गिर कर माफी भी मांगी रही। ओमपुरी बिना तामझाम के बड़ी ही सादगी से हल्के चाकलटी रंग के कुर्ते को पहन कर शहीद के गांव आए और पूरे वक्त आंसू बहाए।
यहां के लोगों को ओमपुरी के बोले वे शब्द आज भी याद हैं जब उन्होंने कहा था कि मेरे मुंह से जो निकला वो दिल से नहीं निकला था, मैं यहां पश्चाताप और प्रायश्चित करने आया हूं। मुझे उसी दिन से आत्मग्लानि है। मैं बहुत विचलित हूं, किसी और देश में अगर मैंने ये बोला होता तो शायद जुबान काट दी जाती, लेकिन यहां ऐसा कानून नहीं है। यहां न तो सरकार ने कोई सजा दी न सेना ने, इसलिए वैदिक रीति से प्रायश्चित कर रहा हूं। ओमपुरी के इस प्रायश्चित के बाद इस गांव के लोगों में उनके प्रति कोई कड़वाहट नहीं रही।