ओ.पी. नय्यर को दुनिया से गए नौ साल हो गए हैं। 2007 में 28 जनवरी को उन्होंने आखिरी सांस ली थी पर उनके गाने चाहने वालों को आज भी उनसे जोड़े हुए हैं। ओ.पी. नय्यर का जन्म 16 जनवरी, 1926 को लाहौर में हुआ था। उन्होंने कभी संगीत की शिक्षा नहीं ली। शुरुआत में कुछ समय के लिए क्लास गए, पर जल्द ही छोड़ दिया। क्लास जाने के लिए उन्होंने कुछ दिन तक साइकिल का इस्तेमाल किया। पर बाद में वह घोड़े पर सवार होकर क्लास जाने लगे।
म्यूजिक डायरेक्टर, कंपोजर के तौर पर ओंकार प्रसाद नैय्यर ने कॅरिअर की शुरुआत 1949 में की। उस साल उन्होंने ‘कनीज’ फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर कंपोज किया। 1952 में आई ‘आसमान’ बतौर स्वतंत्र संगीत निर्देशक उनकी पहली फिल्म थी।
अपनी शर्तों पर जीवन जीने वाले ओ.पी. नैयर रूमानी गीतों को नया आयाम दिया। उन्होंने गीता दत्त, आशा भोंसले, शमशाद बेगम जैसी गायिकाओं की आवाज का बेहतरीन इस्तेमाल किया। उनके गानों में पंजाबी लोकशैली और घोड़े की टापों वाली धुनों ने लोगों को जैसे बांध ही लिया तथा गानों की लोकप्रियता ने सीमाओं को तोड़ दिया।
गुरूदत्त की फिल्म आर पार उनकी शुरुआती सफल फिल्मों में थी। इसकी कामयाबी ने उन्हें अग्रिम पंक्ति के संगीतकारों की सूची में शामिल कर दिया। इसके फिल्म के कई गीत जैसे बाबू जी धीरे चलना, सुन सुन जालिमा, ये लो मैं हारी पिया, कभी आर कभी पार आदि आज भी शिद्दत से सुने जाते हैं।
गुरूदत्त के लिए उन्होंने आगे मिस्टर एंड मिसेज 55, सीआईडी जैसी फिल्मों में भी संगीत दिया जिनके गाने काफी लोकप्रिय हुए। 1957 में आई तुमसा नहीं देखा हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुयी। इससे एक ओर शम्मी कपूर के करियर को नयी दिशा मिली वहीं हिंदी सिनेमा में गाने की एक नयी शैली विकसित हुयी। यह शैली बाद में कश्मीर की कली, मेरे सनम, फिर वही दिल लाया हूं जैसी फिल्मों में भी दिखी। बी आर चोपड़ा की फिल्म नया दौर में भी ओपी नैयर का संगीत था। उड़े जब जब जुल्फें तेरी, ये देश है वीर जवानों जैसे इसके कई गाने भी काफी लोकप्रिय हुए।
ओ.पी. नय्यर ने अपना गाना लता मंगेशकर से नहीं गवाया। उन्हें लगता था कि लता की आवाज उनकी धुनों के लायक नहीं है। हालांकि, लता की बहन आशा ने ओ.पी. नय्यर के डायरेक्ट किए हुए म्यूजिक पर खूब गाने गाए।
ओ.पी. नय्यर बॉलीवुड में किसी एक फिल्म के लिए एक लाख रुपया चार्ज करने वाले शुरुआती म्यूजिक डायरेक्टर्स में से एक थे।
ओ.पी. नय्यर को 1952 में पहली फिल्म मिली और कुछ ही साल में वह स्टार बन गए थे। 1957-58 में उनका सितारा बुलंदियों पर था। हालांकि, वह जिस तेजी से इंडस्ट्री में उठे, उसी तेजी से नीचे भी आए। 1961 के पूरा साल में उन्हें एक भी फिल्म नहीं मिली।
1962 में एक मुसाफिर एक हसीना से ओ.पी. नय्यर की शानदार वापसी हुई। इसके बाद 1960 के दशक में हर साल कम से कम एक फिल्म उन्हें मिलती चली गई और उसके गाने भी हिट होते रहे।
आशा भोसले के साथ जोड़ी टूट जाने के बाद ओ.पी. नय्यर को काफी मुश्किल आई। नए गायकों के साथ वह पुराना जादू नहीं जगा सके। पर 1990 के दशक में ‘जिद’ और ‘निश्चय’ जैसी फिल्मों के जरिए आश्चर्यजनक तरीके से उनकी वापसी हुई।
ओ.पी. नय्यर के बारे में कहा जाता है कि उनका खान-पान, पहनावा और रहन-सहन एकदम रइसों वाला होता था। इसमें वह कोई समझौता नहीं करते थे। वे अंग्रेजी फिल्में भी खूब देखते थे। गैरेी कपूर और हंफ्रे बोगार्ट जैसे कलाकार उनके फेवरेट थे। इन दोनों का उन पर इतना ज्यादा असर था कि काली हैट को उन्होंने अपना सिग्नेचर स्टाइल बना लिया था।
ओ.पी. नय्यर ने जब बॉलीवुड में काम करना बंद किया तो काफी कम लोगों के संपर्क में ही रहे। इनमें गजेंद्र सिंह और अहम वासी जैसे नाम ही शामिल हैं। गजेंद्र सिंह ने उन्हें अपने टीवी रियलिटी शो सा रे गा मा पा में जज भी बनाया।
मौत से पहले ओ.पी. नय्यर परिवार में अकेले पड़ गए थे। सबकी नजरअंदाजगी से वह इस कदर खफा हो गए थे कि यहां तक कह दिया था कि कोई उनकी अंतिम यात्रा में शरीक न हो। उन्हें घर तक छोड़ना पड़ा था। वह पहले विरार में अपने एक दोस्त के यहां रहे। बाद में ठाणे में किसी और मित्र के यहां ठिकाना बनाया।
तीन भाइयों में ओ.पी. नय्यर अकेले थे, जिन्होंने अलग पेशा चुना। उनके बाकी दो भाई डॉक्टर थे। जी.पी. नय्यर बतौर डेंटिस्ट सेना में काम करते थे। पी.पी. नय्यर भी डॉक्टर थे। पत्नी सरोज मोहिनी नय्यर जरूर गीतकार रहीं, जिन्होंने प्रीतम आन मिलो…जैसे गीत लिखे।