Uttar Ramayan 1st May 2020 Episode 12 online Updates: अयोध्या में अश्वेध यज्ञ की तैयारी होती है। इधर नन्हे लव कुश अश्वमेध के घोड़े को पकड़ लेते हैं। वे चुनौती पढ़ते हैं और राम से युद्ध करने की बात कहते हैं। लव कुश सेनापति को घायल कर देते हैं जिसके बाद शत्रुघ्न लव कुश के पास पहुंचते हैं। लव कुश शत्रुघ्न को युद्ध के लिए ललकारते हैं या फिर राम को बुलाने की बात करते हैं। इसके बाद लव कुश का शत्रुघ्न से युद्ध होता है। इस युद्ध में शत्रुघ्न को लव कुश का बाण लग जाता है। जिसमें शत्रुघ्न वीर बालकों के बाण से मूर्छित हो जाते हैं। इसकी सूचना राजमहल पहुंचाई जाती है। लक्ष्मण और भरत काफी घबरा जाते हैं और राम को निद्रा से जगा इसकी सूचना देते हैं। राम क्रोधित हो जाते हैं कि ऐसा साहस किस राजा ने किया।
इससे पहले दिखाया गया था कि अयोध्या में श्रीराम का जन्मोत्सव हवन यज्ञ और ब्राह्मणों को दान दे कर मनाया जाता है। वहीं लक्ष्मण की सलाह पर राम गुरु वशिष्ठ की आज्ञा पर अश्वमेध यज्ञ का संकल्प करते हैं। राम कहते हैं कि यह सुंदर प्रस्ताव है। और हमें इस बात का आभास है कि रावण का वध करने से हम ब्रह्म हत्या के दोषी हैं। इसलिए गुरुदेव वशिष्ठ की आज्ञा से अश्वमेध यज्ञ का संकल्प करते हैं। इधर राम ने तो संकल्प ले लिया है लेकिन कोई भी धार्मिक कार्य पत्नी के बिना पूरा नहीं होता।
ऐसे में यह महायज्ञ भी नहीं किया जा सकता था। दूसरी विवाह का प्रस्ताव राम को किसी भी तरह से स्वीकार नहीं था। इस धर्मसंकट में श्रीराम कहते हैं कि हमारे दूसरे विवाह करने से हमारे पत्नीव्रत धर्म का खंडन होता है। शास्त्रों में ढूंढे, इस धर्मसंकट का कोई तो उपाय होगा। तब गुरु वशिष्ठ उपाय सुझाते हुए कहते हैं कि ऐसी परिस्थिति में पत्नी की मूर्ति बनाकर पत्नी के स्थान पर रख धर्म कार्य पूरा किया जा सकता है।
राम जी सीता जी की सोने की मूर्ति बनवाते हैं। और अश्वमेध यज्ञ करने का निर्णय ले लिया। वह ऋषियों-मुनि, बुद्धिजीवियों, प्रांतों को राजाओं को सादर आमंत्रित करते हैं। इधर अश्वमेध के यज्ञ की बात सीता को पता चलती है, वहीं सीता को ये भी बताया जाता है कि अब श्रीराम का विवाह किया जा सकता है। यह सुन कर सीता को धक्का लगता है।
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लक्ष्मण वीर बालकों के पास पहुंचते हैं, वह उन्हें देख बोलते हैं कि तुम तो बहुत छोटे हैं। लक्ष्मण को पता चलता है कि सेना और शत्रुघ्न को इन बालकों ने ही मारा है। लक्ष्मण अब गुस्सा हो जाते हैं। तभी लव कुश पूछते हैं कि आपकी अयोध्या में तो निर्दोषों को भी दंड दिया जाता है। लक्ष्मण कहते हैं अयोध्या मे ऐसा नहीं होता। तभी लव कुश सीता का जिक्र करते हैं।
श्रीराम इधर सो रहे होते हैं। लक्ष्मण औऱ भरत शत्रुघ्न की खबर लेकर श्रीराम के पास पहुंचते हैं। श्रीराम कहते हैं कौनसे राजा ने ये साहस किया है। उन्हें बताया जाता है कि दो तेजस्वी बालकों ने घोड़े को पकड़ लिया है औऱ कहा कि वहव श्रीराम से युद्ध करना चाहते हैं। लक्ष्मण कहते हैं कि भैया मैं जाता हूं। श्री राम कहते हैं कि तुम सेना साथ लेकर जाओ। लक्ष्मण मना कर देते हैं। लक्ष्मण प्रस्थान करते हैं।
लव से लड़ने के लिए सेनापति आता है। तभी लव अच्छे से सेनापति को मजा चखाता है। तभी शत्रुघ्न वहीं पहुंचते हैं। लव और कुश से शत्रुघ्न युद्ध करते हैं। काफी देर युद्ध के बाद आखिर शत्रुघ्न वीर बालकों के बाण से मूर्छित हो जाते हैं। इसकी सूचना राजमहल पहुंचाई जाती है। लक्ष्मण और भरत काफी घबरा जाते हैं और राम को निद्रा से जगा इसकी सूचना देते हैं। राम क्रोधित हो जाते हैं कि ऐसा साहस किस राजा ने किया।
इधर लव कुश को अश्वमेध का घोड़ा दिखता है।शत्रुघ्न की सेना आश्रम के आगे विश्राम कर रही होती है। तभी लव कुश घोड़े पर टंगी तख्ती पर लिखी सूचना को पढ़ते हैं। दोनों राम से युद्ध करने की बात करते हैं। कहते हैं क्षत्रिय युद्ध से पीछे नहीं हटते हैं। लव अब श्रीराम के अश्वमेध घोड़े को पकड़लेते हैं और युद्ध की चुनौती स्वीकार करते हैं। लव अब घोड़े को आश्रम ले जाते हैं और बांध देते हैं। सेनी बच्चों को घोड़ा ले जाते देख लेती है। सेना और लव का आमना सामना होता है। जिसमें लव जीतता है औऱ घोड़े को आश्रम ले आता है।
अब यज्ञ के अश्व को बुलाया जाता है। यज्ञ के बीच अश्व की पूजा होती है। इधर, राम आदेश देते हैं कि शत्रुघ्न अश्व को लेकर जाओ जहां जाना चाहे जाने दो, इस बीच कोई अश्व को छीन लेजाना चाहे तो उनसे युद्ध कर उन्हें परास्त करना। राजवंश का मान रखना विजय होकर आना। शत्रुघ्न को अश्व के साथ भेजते हैं। कहते हैं- तुम अपनी सेना के साथ इस अश्व की रक्षा के लिए पीछे पीछे जाओ। ये जिस दिशा में जाना चाहें जाने देना। अगर किसी ने चेतावनी संदेश पढ़ने के बाद भी इसे रोका तो उससे युद्ध करना। रघुकुल में हारने की प्रथा नहीं है। इसलिए मेरे सामने विजयी होकर ही आना। तुम्हारे आने के बाद ही ये यज्ञ संपन्न होगा।
अश्वमेध यज्ञ शुरू हो चुका है। इस धार्मिक कार्य का आरंभ राम के नदी से जल भरकर लाने से होता है। राम के साथ पूरी प्रजा सिर पर मटके में जल के साथ अनुष्ठान स्थान पर पहुंचती हैं। इस दौरान मंत्रोच्चारण का दौर जारी रहता है। उधर, वाल्मीकि भी सीता का संगम नदी पर अनुष्ठान कराने को निकल चुके हैं। इस अनुष्ठान के बाद ही सीता और राम का मिलन होगा।
इधर, श्रीराम सीता की बनी सोने की मूर्ती देखते हैं। वह बहुत भावुक हो जाते हैं। सोने की सीता आसन पर विराजमान होती हैं जो हाथ जोड़े बैठी होती हैं। यज्ञ में भाग लेने के सीता की स्वर्ण मूर्ति का निर्माण किया गया है। लक्ष्मण इधर सारे काम पूरा करवाते हैं, अगले दिन अश्वमेध का यज्ञ जो है। गुरुदेव कहते हैं कि लक्ष्मण अश्वमेध के घोड़े के लिए अच्छे से पहरा रखना, कोई विघ्न न आए। यहां लव कुश अपने नए नए अस्त्रों को देख कर खुश हैं और उन्हें धार चढ़ा रहे हैं।
अब लव कुश को कहा जाता है कि वह कमल के फूल लेकर आएं, मां सीता ने एक अनुष्ठान रखा है। जिसे रखने से लव कुश को उनके पिता के दर्शन होंगे। लव कुश भावुक हो जाते हैं। कि माता जी आपने पहली बार पिता जी के बारे में बात की है, हम बहुत पहले से पूछना चाहते थे। सब बच्चे हमसे पूछते थे, औऱ हम कोई जवाब नहीं जानते थे औऱ चुप रहते थे। सीता से बच्चे पूछते हैं कि कौन हैं हमारे पिताजी, उनसे हम आज तक क्यों नहीं मिले। सीता कहती हैं कि मैं जानती हूं तुम्हारे मन में सवाल उठ रहे होंगे। लेकिन गुरुदेव ही तुम्हें इसका उत्तर देंगे।
यहां मा सीता विष्णु अराधना कर रही होती हैं। गुरुदेव आते हैं औऱ कहते हैं कि पुत्री मेरे पास जोकुछ था आज मैंने तुम्हारे पुत्रों को दे दिया है। क्योंकि अब वह समय आ गया है जब अपने मां के साथ हुए अत्याचार का उन्हें अयोध्या वालों से सवाल करना है। तभी लव कुश आते हैं। बच्चे बताते हैं कि माता जी आज हमारे गुरूजी ने हमें अस्त्र प्रदान किये जिससे हमें कोई नहीं हरा पाएगा। सीता दोनों बच्चों को आशीर्वाद देती हैं।
इधर, महार्षि वाल्मीकि लव कुश को सुबह शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। गुरुदेव कहते हैं कि अब मैं तुम्हें दिव्य अस्त्र देने वाला हूं। जो देव नर राक्षस सभी पर विजय पाएंगे। लेकिन इससे पहले तुम्हें प्रतिज्ञा करनी होगी कि तुम अपने बल का प्रदर्शन करने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करोगे, मित्रों पर नहीं चलाओगे। अपने समूह से बिछड़करक अकेला असहाय हो, जिसका पिता न हो न पुत्र हो, वीर पुरुष ऐसे प्राणियों का वध नहीं करते, प्रतिज्ञा लो। दोनों गुरूदेव के आगे प्रतिज्ञा करते हैं।
अश्वमेध के यज्ञ के मौके पर पूरा परिवार साथ है। भरत भी अपने राज्य से अयोध्या लौटे हैं। साथ में बच्चे और पत्नी भी लाए हैं। श्रीराम कहते हैं कि आज 12 वर्षों बाद हम साथ ऐसे मिल रहे हैं। तभी कौशल्या कहती हैं कि और अच्छा हो सकता था अगर सीता भी साथ होती। मेरे चारों पुत्रों के साथ मेरी चारों बहू होतीं तो कितना अच्छा होता। ऐसे नें भरत मां को समझाते हैं कि आप ऐसे बोल कर भैया के दिल को चोट पहुंचा रही हैं। माता विष्णु भगवान को दोष देती हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया ये अपराध कैसे होने दिया ?
लव और कुश से शत्रुघ्न युद्ध करते हैं। काफी देर युद्ध के बाद आखिर शत्रुघ्न वीर बालकों के बाण से मूर्छित हो जाते हैं। इसकी सूचना राजमहल पहुंचाई जाती है। लक्ष्मण और भरत काफी घबरा जाते हैं और राम को निद्रा से जगा इसकी सूचना देते हैं। राम क्रोधित हो जाते हैं कि ऐसा साहस किस राजा ने किया।
अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा लव कुश पकड़ लेते हैं। वे चुनौती पढ़ते हैं और राम से युद्ध करने की बात कहते हैं। लव कुश सेनापति को घायल कर देते हैं जिसके बाद शत्रुघ्न लव कुश के पास पहुंचते हैं। लव कुश शत्रुघ्न को युद्ध करने या फिर राम को बुलाने की बात करते हैं। लव कुश के साथ शत्रुघ्न का युद्ध होता है।
राम को सूचना मिलती है कि अश्वमेध का घोड़ा चारों दिशाओं में विचरण कर कौशल राज की सीमा में प्रवेश कर गया है। जल्द ही शत्रुघ्न आपकी चरणों में होंगे। राम ये बात सुन काफी प्रसन्न होते हैं। उधर, घो़ड़ा विचरण करते हुए वन में घूमता है कि लव कुश उसे देख लेते हैं। लव कुश घोड़े पर टंगी तख्ती पर लिखी सूचना को पढ़ते हैं। दोनों राम से युद्ध करने की बात करते हैं। कहते हैं क्षत्रिय युद्ध से पीछे नहीं हटते हैं।
महायज्ञ में मंत्रोच्चारण और पूजा विधि के बाद यज्ञ के अश्व को बुला जाता है। अश्व को राम प्रणाम करते हैं और कहते हैं- तुम चारो दिशाओं में रघुकुल का यश फैलाओ। वहीं शत्रुघ्न को अश्व के साथ भेजते हैं। कहते हैं- तुम अपनी सेना के साथ इस अश्व की रक्षा के लिए पीछे पीछे जाओ। ये जिस दिशा में जाना चाहें जाने देना। अगर किसी ने चेतावनी संदेश पढ़ने के बाद भी इनको रोके उससे युद्ध करने स्वतंत्र कराना। रघुकुल में हारने की प्रथा नहीं है। इसलिए मेरे सामने विजयी होकर ही आना। तुम्हारे आने के बाद ही ये यज्ञ संपन्न होगा।
अश्वमेध यज्ञ शुरू हो चुका है। इस धार्मिक कार्य का आरंभ राम के नदी से जल भरकर लाने से होता है। राम के साथ पूरी प्रजा सिर पर मटके में जल के साथ अनुष्ठान स्थान पर पहुंचती हैं। इस दौरान मंत्रोच्चारण का दौर जारी रहता है। उधर, वाल्मीकि भी सीता का संगम नदी पर अनुष्ठान कराने को निकल चुके हैं। इस अनुष्ठान के बाद ही सीता और राम का मिलन होगा।
यज्ञ में भाग लेने के लिए माता सीता की प्रतिमा बना दी जाती है। सीता की प्रतिमा को पहली नजर में देख मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। कुछ पलों तक वह उसी में खो जाते हैं। राम कहते हैं अति सुंदर। शिल्पकार को राम पुरस्कार प्रदान करते है।
माता जी बताइए न कि हमारे पिता कौन हैं। हमने अब तक इसलिए नहीं पूछा क्योंकि यदि दुखदाई बात हो तो आपका दिल दुखेगा। फिर क्या बात है। आज जब आपने ही बात छेड़ी हैं तो बता दीजिए न कि वो कौन हैं? आपको उनसे मिलने के लिए पूजा क्यों करनी पड़ेगी? इसका सारा उत्तर गुरुदेव देंगे।
उधर, वाल्मीकि लव कुश को दिव्य अस्त्र प्रदान करते हैं। वह कहते हैं, दिव्य अस्त्र प्रदान करूंगा जो इस संसार में किसी के पास नहीं हैं। ये सभी अस्त्र इच्छानुसार रूप धारण करने वाले हैं। इनका अह्वान करने पर शत्रु पर हमला करते हैं। इनके आह्वान पर शत्रु, नाग, राक्षस सब पर विजय पा सकते हो। ऋषि कहते हैं कि इन अस्त्रों का प्रयोग अहंकार वश नहीं करोगो। इन सबकी वह प्रतिज्ञा दिलाते हैं।
शत्रुघ्न सपत्नी और बच्चों संग अयोध्या 12 साल बाद लौटे हैं। कहते हैं-आज कितने समय के पश्चात हम सब एक हुए हैं। कहते हैं आज 12 साल बाद आपके साथ सभी बेटे साथ बैठे हैं कितना अच्छा लग रहा होगा। कौशल्या कहती हैं कि हां अच्छा लगता जब सभी बहुएं भी होतीं। उसके बिना अयोध्या,अयोध्या नहीं लगता।
12 वर्ष बाद पूरा राज परिवार एकत्र हुआ। तीनों माताएं, चारो पुत्र इस धर्मकार्य को लेकर उत्साहित होते हैं लेकिन सबको सीता की कमी खलती है। इस धर्म कार्य में लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के साथ तीनों बहुएं होती हैं लेकिन बड़ी बहू सीता की गैरमौजूदगी से सभी दुखी होते हैं।
राम जी को जब ये बात पता चलती है कि अयोध्या में उनकी शादी को लेकर बातचीत चल रही है तो वो काफी भड़क जाते हैं। राम जी कहते हैं कि सीता की पवित्रता को जानने के बाद भी लोगों ने ये कैसे सोचा कि वो दूसरा विवाह करेंगे। राजा राम ऋषियों से कहते हैं कि हमने प्रजा के लिए अपना सबकुछ त्याग दिया लेकिन मैं दूसरा विवाह नही करुंगा चाहे जो हो। ऋषि उनसे कहते हैं कि बिना पत्नी के यज्ञ करना संभव नही है।