Ramayan 18th April Episode: राम ने त्रिलोक विजयी रावण की रणभूमि में वध कर पूरी सृष्टि को शोक मुक्त कर दिया है। रावण वध के उपरांत वह तुरंत लंका से अयोध्या लौटने की इच्छा जताते हैं लेकिन दूरी की चिंता सताने लगती है। उन्हें भरत के कहे वाक्य याद आते हैं कि वनवास पूरा होने के एक दिन की देरी से वह जलती चिता में कूद जाएगा। राम की चिंता पर विभीषण रावण के पुष्पक विमान से अयोध्या जाने की सलाह देते हैं जिसे रावण ने कुबेर से छिन लाया था।
राम लक्ष्मण, हनुमान सीता और बाकी लोगों के साथ पुष्पक विमान से अयोध्या को रवाना होते हैं। बीच में राम पुष्पक विमान रोकते हैं और महर्षि भारद्वाज से मिलने की इच्छा जताते हैं। वहीं वह हनुमान को तुरंत अयोध्या जाने और भरत को मेरे आने की सूचना देने के लिए कहते हैं। हनुमान तुरंत अयोध्या लौट जाते हैं और भरत से मिल वह राम के लौटने के बारे में बताते हैं। अपने प्राणों को त्यागने को बैठे भरत को हनुमान जब राम के रावण बध और अयोध्या लौटने की बात बताते हैं तो पूरे अयोध्या में उत्सव मनाया जाने लगता है। पूरी अयोध्यावासी ढोल-नगाड़े बजा अपनी खुशी जाहिर करते हैं।
बता दें रामायण में राम की विजय और रावण के अंत को अधर्म पर धर्म और असत्य पर सत्य की विजय से जोड़ कर देखा जाता है। आज सुबह के एपिसोड में श्री राम और रावण के बीच भीषण युद्ध देखने को मिला था। यानी अधर्म और धर्म की जंग देखने को मिली थी। जहां एक तरफ रावण की सेना के तमाम महाबली रणभूमि में धराशाई हो गए थे, तो वहीं श्री राम की सेना के सभी पराक्रमी योद्धा रावण वध के साक्षी बने हैं। एस एपिसोड को ही शाम में दोबारा प्रसारित किया जा रहा है।
दोनों ही सेनाओं के बीच के इस युद्ध को दर्शक काफी पसंद कर रहे हैं। यही कारण है कि लोगों की मांग पर इस दृश्य को शाम के एपिसोड में दोबारा दिखाया गया था। अब युद्ध अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया था। जहां आपने देखा कि प्रभु श्रीराम से लड़ने के लिए रावण भोलेनाथ को राम का साथ देने के लिए चेतावनी देता हुआ एक बार फिर युद्ध के मैदान में आ गया था। वहीं ब्रह्मा जी की आज्ञा से देवराज इंद्र प्रभु श्री राम को रावण से युद्ध में सहायता के लिए अपना दिव्य रथ भेजा था। जिसे देख कर रावण बौखला गया था। वहीं प्रभु श्री राम ने लंका पर विजय हासिल कर ली है। प्रभु ने रावण का अंत कर दिया है। माता सीता रावण की कैद से मुक्त हो गई।
Highlights
अपने प्राणों को त्यागने को बैठे भरत को हनुमान जब राम के रावण बध और अयोध्या लौटने की बात बताते हैं तो पूरे अयोध्या में उत्सव मनाया जाने लगता है। पूरी अयोध्यावासी ढोल-नगाड़े बजा अपनी खुशी जाहिर करते हैं।
राम पुष्पक विमान से लंका से अयोध्या रवाना होते हैं। बीच में राम पुष्पक विमान रोकते हैं और महर्षि भारद्वाज से मिलने की इच्छा जताते हैं। वहीं वह हनुमान को तुरंत अयोध्या जाने और भरत को मेरे आने की सूचना देने के लिए कहते हैं। हनुमान तुरंत अयोध्या लौट जाते हैं और भरत से मिल वह राम के बारे में बताते हैं..
राम भरत की बातों को याद करते हैं और कहते हैं पुष्य नक्षत्र की पंचमी तिथी हो गई और अयोध्या काफी दूर है। अगर हम समय पर नहीं गए तो भरत जलती चिता में कूद जाएगा। राम की इस चिंता पर विभीषण ने कहा कि कुबेर के पुष्पक विमान हमारे पास है जिसे रावण ने छिन लिया था। इससे हम लोग अयोध्या जाएंगे।
ब्रह्मा राम को उनके नरावतार को याद दिलाते हुए धर्म और कार्य को सिद्ध करने की बात कही। वहीं दशरथ भी अपने पुत्र राम की सच्चाई जान अपने को भाग्यवान बताते हैं। दशरथ राम को वर मांगने को कहते हैं जिसपर राम अपनी माता कैकेयी का श्रॉपमुक्त करने को कहा। वह दशरथ से कहते हैं कि आप माता को अंतिम पलों में त्याग का दिेए हुए श्रॉप को वापस ले लीजिए। दशरथ अपना श्रॉप वापस ले लेते हैं।
प्रभु से मिलने से पहले मां सीता ने दी अग्नि परीक्षा। अग्नि परीक्षा सफल कराने के लिए स्वयं अग्नि देव आए। जिसके बाद लक्ष्मण जी ने मां सीता के चरण स्पर्श किए।
लंका से सम्मान के साथ आने के बाद प्रभु श्री राम के सम्मुख आई मां जानकी लेकिन प्रभु से मिलने से पहले सीता जी दे रही हैं अग्नि परीक्षा
माता सीता को रावण की लंका से छुड़ाने के बाद भगवान ने अग्नि देव से उन्हें वापस मांगने का कहा है, क्योंकि उन्हें पहले से पता था कि रावण माता सीता का हरण करने वाला है। जिस वजह से भगवान ने सीता माता को अग्नि देव की सुरक्षा में भेज दिया था और रावण ने मां सीता के प्रतिबिंब मात्र का हरण किया था।
भगवान राम ने विभीषण से सीता मां को अशोक वाटिका से मुक्त करने का आदेश दिया है। इसके बाद श्री राम ने लक्ष्मण से कहा कि सीता को अग्नि द्वार से होकर गुजरना पड़ेगा। जिसके बाद लक्ष्मण, राम जी पर क्रोधित होते दिख रहे हैं।
भगवान श्री राम ने हनुमान जी को सीता माता को लंका विजय की सूचना देने भेजा है। जिसके बाद हनुमान जी ने जानकी जी को पूरा किस्सा सुनाया है।
रावण के वध के उपरांत भगवान की आज्ञा से विभीषण का लंका में राज तिलक हुआ है। विभीषण ने नये लंकेश का पदभार संभाला है उनके इस राज तिलक कार्यक्रम में सुग्रीव, हनुमान जी और लक्ष्मण जी पहुंचे हैं।
श्री राम के कहे अनुसार विभीषण ने रावण का अंतिम संस्कार विधि विधान से किया है। मरते वक्त रावण ने श्री राम, श्री राम के नारे लगाए थे। जिसके बाद भगवान ने उसकी आत्मा को सदगति प्राप्त करने का वरदान दिया है।
रावण के मृत शरीर पर विलाप करते उसके नाना, पत्नी मंदोदरी और भाई विभीषण से रावण का अच्छी तरह अंतिम संस्कार करने की अनुमति देने के साथ भगवान ने रावण को सदगति प्राप्त होने का वरदान दिया।
रावण के मृत शरीर पर विलाप करने के लिए लंका से उनकी रानी मंदोदरी आई हैं। जिन्हें देख कर भगवान राम ने विभीषण से अपने प्रियजनों को ढांढस बंधाने को कहा है।
रावण की मृत्यु के बाद विभीषण शोक में डूब गया है। जिसके बाद विभीषण को भगवान राम ने ढांढस बंधाया और रावण के अंतिम संस्कार को विधी विधान से करने का आदेश दिया।
भगवान ने रावण का अंत अपने ब्रह्मास्त्र से कर दिया है। जिसके बाद उनका छोटा भाई और राम भक्त विभीषण अपने भाई रावण के शव के सामने रोता बिलखता दिखाई दे रहा है।
प्रभु श्री राम के ब्रह्मास्त्र से रावण का अंत हो गया है। जिसके बाद देव लोक से लेकर वानर सेना में उत्साह की लहर दौड़ गई है और अधर्म पर धर्म की विजय हुई है। तीनों लोकों में हर कोई भगवान का यश गा रहा है।
भगवान ने रावण के कई सर काटे लेकिन ब्रह्मा जी के वरदान से वो मरा नहीं जिसके बाद विभीषण के परामर्श से भगवान ने रावण की नाबी में बांण मार कर उसका अमृत सुखा दिया।
श्री राम के बाणों से कई बार रावण का सर धड़ से अलग किया जा चुका है। लेकिन फिर भी रावण को तनिक भी चोट नहीं पहुंची है। जिससे देवता भी भयभीत हो गए हैं।
भगवान राम और रावण के बीच भीषण युद्ध चल रहा है। इस दौरान भगवान ने रावण का वध करने के लिए उसका सर काट दिया है। लेकिन दशानंद रावण ना ही मरा है और ना ही आहत हुआ है बल्कि वो हंस रहा है। बार-बार प्रभु के तीव्र बांण उसका सर धड़ से अलग कर रहे हैं लेकिन रावण पर इसका कोई असर नहीं हो रहा है।
भगवान से युुद्ध के दौरान रावण अपनी मायावी शक्तियों का प्रयोग करते हुए अपना रथ आसामान में ले गया है। इस दौरान इंद्र के दिव्य रथ को लेकर प्रभु भी आकाश में उससे युद्ध कर रहे हैं।
रामायण में रावण और प्रभु श्री राम का युद्ध हो गया है। इस दौरान श्री राम रावण को दंड देने की बात कह रहे हैं।
रावण अपने विजय रथ पर आता है जिसे देवता देख कहते हैं रावण के पास विजय रथ पर आया है वहीं श्रीराम नंगे पांव आए हैं। ब्रह्मा के कहने पर इंद्रदेव अपना दिव्य रथ श्रीराम को देते हैं ताकि युद्ध बराबरी का हो सके। इंद्र का रथ भूमि पर आता है। श्रीराम सहित लक्ष्मण देखते हैं कि यह रथ किसका है। देवराज इंद्र का सार्थी रथ लेकर श्रीराम के पास आता है। श्रीराम कहते हैं कि हमने इंद्र देव से कोई सहायता नहीं मांगी। तभी सार्थी बताते हैें क ब्रह्मा जी की आज्ञा से रथ आपके पास भेजा गया है। लक्ष्मण कहते है भैया ये मायावी राक्षसों की चाल भी हो सकती है। तब सार्थी प्रमाण देते हैं कि वह देवों का रथ है। विभीषण कहते हैं संकोच त्याग कर प्रवेश करें स्वामी। श्रीराम ब्रह्मा स्मरण कर उन्हें प्रणाम करते हैं औऱ रथ की प्रतक्षणा कर रथ पर विराजमान होते हैं। रथ को रणभूमि के बीचोबीच ले जाया जाता है...
सूर्योदय के बाद शंखनाद के साथ राम और रावण पुनः रणभूमि में आमने सामने होते हैं। रावण कहता है वह मिट जाएगा पर झुकेगा नहीं। रावण भगवान शंकर के सामने कहता है कि जिस राम का तुम साथ दे रहे हो उसे भी देखने दो कि उसका मुकाबला किससे है। युद्ध भूमि में हर हर महादेव और जय लंकेश के नारे लगने लगते हैं। देवी देवते देख कर कहते हैं कि रावण अपने विजय रथ पर आया है। वहीं श्रीराम नंगे पांव आए हैं युद्ध करने। इंद्रदेव अब अपना रथ श्रीराम को देते हैं ताकि युद्ध बराबरी का हो सके।