1976 में श्याम बेनेगल की एक फ़िल्म आई थी। इस फ़िल्म के पोस्टर में एक लाइन दिखती है, जो इससे पहले किसी फ़िल्म में नहीं देखी गई थी। इस लाइन में लिखा था ‘गुजरात के पांच लाख किसान पेश करते हैं – मंथन’ श्याम बेनेगल ने वर्ष 1976 में क्राउडसोर्सिंग का एक अद्भुत नमूना पेश करते हुए अपनी फ़िल्म को रिलीज़ किया था। इस फ़िल्म के लिए गुजरात के पांच लाख किसानों ने 2-2 रूपए दिए थे और फ़िल्म के प्रोड्यूसर बने थे। दस लाख के बजट में बनी ये फ़िल्म भारत की पहली फिल्म थी जिसमें किसी भी प्रोडक्शन हाउस का पैसा नहीं लगा था। गुजरात को ऑपरेटिव मिल्क फेडरेशन के हर किसान ने 2-2 रूपए की डोनेशन दी थी।

ये आइडिया दरअसल वर्गीस कुरियन की वजह से आया था। वर्गिस ने उस दौर में ऑपरेशन फ्लड की शुरूआत की थी। उनके इस क्रांतिकारी कदम के बाद भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया था। श्याम बेनेगल देश के इस दूध आंदोलन से बेहद प्रभावित थे और इस मूवमेंट पर फ़िल्म बनाना चाहते थे लेकिन उनके पास फ़िल्म बनाने के लिए पैसे नहीं थे। कुरियन ने ही श्याम को कहा था कि इस फ़िल्म के लिए गुजरात के किसान उनकी मदद कर सकते हैं। खास बात ये है कि जब ये फ़िल्म रिलीज़ हुई थी, उस दौरान कई किसान भारी मात्रा में अपने संघर्ष और अपनी ज़िंदगी को पर्दे पर देखने के लिए पहुंचे थे। कई ट्रकों और गाड़ियों में लदकर कई किसानों ने फ़िल्म को सिनेमाहॉल में देखा था। शायद यही वजह रही कि फ़िल्म अपनी लागत निकालने में वसूल रही और ठीक-ठाक चल भी गई थी।

विजय तेंदुलकर ने इस फ़िल्म का स्क्रीनप्ले लिखा था। मशहूर कवि कैफ़ी आज़मी ने फ़िल्म के डायलॉग लिखे थे। वहीं प्रीति सागर ने फ़िल्म में एक गुजराती फोक सॉन्ग गाया था। ‘मेरो गाम कथा परे’ नाम के इस गाने को नेशनल अवार्ड भी मिला था। मंथन को आधिकारिक तौर पर एकेडमी अवार्ड्स के लिए भेजा गया था और इस फ़िल्म ने बेस्ट फ़िल्म और स्क्रीनप्ले का नेशनल अवार्ड भी जीता था। फ़िल्म में एक सर्जन, डॉ राव एक गांव में पहुंचते हैं। उनका मकसद एक दूध की कोऑपरेटिव सोसाइटी को खोलना है। वे एक लोकल बिजनेसमैन से मिलते और सरपंच से मिलते हैं लेकिन ये दोनों ही नहीं चाहते कि गांव वाले इस मामले में आत्मनिर्भर हो। हालांकि बिंदू(स्मिता पाटिल) और भोला (नसीर शाह) की मदद से वे अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं।


