Shri Krishna 8th May 2020 Episode 6 Online Update: क्षीर सागर छोड़कर शेषनाग विष्णु से गुहार लगाते हैं कि इस बार आप मुझे अपना बड़ा भाई बनाकर सेवा का अवसर प्रदान करें प्रभु। शेषनाग कहते हैं कि रामावतार में आपने मुझे छोटा भाई बनाया। अगर मैं बड़ा भाई होता तो कभी भी आपको वन जाने की आज्ञा नहीं देता है। हे प्रभु इस बार जब अवतार धारण करने जाएं तो मुझे बड़ा भाई बनाकर सेवा का अवसर प्रदान करें। देवकी के सप्तम गर्भ में जाने की आज्ञा दें। विष्णु शेषनाग को तथास्तु कह अंतर्ध्यान हो जाते हैं।
शेषनाग देवकी के आठवें गर्भ के रूप में प्रवेश करते हैं। शेषनाग के गर्भ में जाने से पूरे कारागार में प्रकाशपुंज फैल जाता है। ऐसे प्रकाश को देख देवकी और वासुदेव भी चकित रह जाते हैं। वहीं कारागार में मौजूद सिपाही इसकी तुरंत सूचना कंस को देते हैं। कंस कहता है कि ये अवश्य ही विष्णु होगा। वह बहुत ही मायावी है। लेकिन इस बार मेरे हाथों से नहीं बचेगा। कंस इसके बाद देवकी-वासुदेव के पास पहुंचता है।
जैसे ही कंस के पास ये सूचना पहुंचती है कि देवकी ने सातवां गर्भ धारण किया है और पूरे कारागार में प्रकाशपुंज फैल गया है,वह तुरंत देवकी के पास पहुंचता है। सातवें पुत्र को विष्णु समझ कंस देवकी को ही खत्म करने की चेष्टा करता है लेकिन उसके सामने अंधकार छा जाता है। उसे सांप दिखाई देने लगता है जो उसकी आंखों में विष डालने की कोशिश करता है। कंस भयभीत हो वहां से भाग निकलता है। सपने में भी कंस को वहीं सांप नजर आता है।
इससे पहले आने देखा कि उग्रसेन को बंदी बनाने के बाद मथुरा मगध के सैनिकों के कब्जे में आ जाता है। देवकी और वासुदेव की चिंता में अक्रूर मित्रसेन से देवकी और वासुदेव के पास उनको भगाने की योजना का संदेश भिजवाते हैं। इससे पहले अक्रूर वासुदेव की पहली पत्नी रोहिणी को लेकर ब्रजराज नंद के यहाँ गुप्त तरीक से पहुंचा आते हैंं। नन्द उन्हें आश्रय देते हैं। नंद कहते हैं कि भाभी रोहिणी पर कोई संकट नहीं आएगा। पूरे ब्रजवासी अपना प्राण न्यौछावर कर देंगे।
उधर, मित्रसेन रसोईया बनकर वासुदेव के पास पहुंच जाते हैं और मथुरा की दुर्दशा की पत्री सौंपते हैं। लेकिन वासुदेव भागने से इंकार कर देते हैं। कुछ समय पश्चात देवकी दूसरे बालक को जन्म देती है जिसे कंस मार डालता है। अपने मौत के भय से कंस देवकी के एक एक कर 6 संतानों को मौत के घाट उतार देता है। जब जब देवकी बालकों को जन्म देती है कंस उसे छीन शिलाखण्ड पर पटक देता है। देवकी और वासुदेव अपनी विवशता को अपनी आंखों से देखते रहते हैं।
वहीं 7 मई के एपिसोड में आपने देखा कि उग्रसेन को बंदी बनाए जाने के बाद बाणासुर कंस को राज्याभिषेक करने की सलाह देता है। कहता है कि अब तुम्हें राज्याभिषेक कर लेना चाहिए। हालांकि कंस को विद्रोह की चिंता सता रही होती है। वह कहता है यदुवंशी, माधववंशी और अक्रूर कहीं विद्रोह ना कर दें। लेकिन बाणासुर कहता है कि विद्रोह करना होता तो अब तक कर दिए होते। कंस उनकी बात मान जाता है और अपने राज्याभिषेक की तैयारी करता है। प्रजा से कंस झूठ बोलता है कि महाराज उग्रसेन संन्यास धारण कर कुटिया में चले गए हैं। कंस अपनी नाटकीयता से प्रजा को भरमाने में कामयाब होता है और मथुरा के सिंहासन पर राज्याभिषेक करा विराजमान हो जाता है।
Highlights
विष्णु ने योगमाया से देवकी के सातवें गर्भ को रोहिणी के गर्भ में स्थापित करने को कहते हैं। रोहिणी के गर्भ से ही बलराम जन्म लेंगे। वहीं योगमाया यशोदा के गर्भ से जन्म लेती हैं।
जैसे ही कंस के पास ये सूचना पहुंचती है कि देवकी ने सातवां गर्भ धारण किया है और पूरे कारागार में प्रकाशपुंज फैल गया है,वह तुरंत देवकी के पास पहुंचता है। सातवें पुत्र को विष्णु समझ कंस देवकी को ही खत्म करने की चेष्टा करता है लेकिन उसके सामने अंधकार छा जाता है। उसे सांप दिखाई देने लगता है जो उसकी आंखों में विष डालने की कोशिश करता है। कंस भयभीत हो वहां से भाग निकलता है। सपने में भी कंस को वहीं सांप नजर आता है।
शेषनाग देवकी के आठवें गर्भ के रूप में प्रवेश करते हैं। शेषनाग के गर्भ में जाने से पूरे कारागार में प्रकाशपुंज फैल जाता है। ऐसे प्रकाश को देख देवकी और वासुदेव भी चकित रह जाते हैं। वहीं कारागार में मौजूद सिपाही इसकी तुरंत सूचना कंस को देते हैं। कंस कहता है कि ये अवश्य ही विष्णु होगा। वह बहुत ही मायावी है। लेकिन इस बार मेरे हाथों से नहीं बचेगा। कंस इसके बाद देवकी-वासुदेव के पास पहुंचता है।
क्षीर सागर छोड़कर शेषनाग विष्णु से गुहार लगाते हैं कि इस बार आप मुझे अपना बड़ा भाई बनाकर सेवा का अवसर प्रदान करें प्रभु। शेषनाग कहते हैं कि रामावतार में आपने मुझे छोटा भाई बनाया। अगर मैं बड़ा भाई होता तो कभी भी आपको बन जाने की आज्ञा नहीं देता है। हे प्रभु इस बार जब अवतार धारण करने जाएं तो मुझे बड़ा भाई बनाकर सेवा का अवसर प्रदान करें। देवकी के सप्तम गर्भ में जाने की आज्ञा दें। विष्णु शेषनाग को तथास्तु कह अंतर्ध्यान हो जाते हैं।
अपने मौत के भय से कंस देवकी के एक एक कर 6 संतानों को मौत के घाट उतार देता है। जब जब देवकी बालकों को जन्म देती है कंस उसे छीन शिलाखण्ड पर पटक देता है। देवकी और वासुदेव अपनी विवशता को अपनी आंखों से देखते रहते हैं।
अक्रूर सब जानते हुए भी कंस के राज्याभिषेक के दौरान चुप रहते हैं। जब कंस मथुरा क प्रजा से उग्रसेन को लेकर झूठ बोल रहा होता है तब भी वह कुछ ना कर पाने को विवश होते हैं। हालांकि अक्रूर कुछ वफादार सिपाहियों को लेकर अपनी एक सेना की टुकड़ी तैयार कर ली है और देवकी और वासुदेव को कंस के कारागार से मुक्त कराने की रणनीति तैयार करते हैं। मित्रसेन से देवकी और वासुदेव के पास उनको भगाने की योजना का संदेश भिजवाते हैं। मित्रसेन रसोईया बनकर वासुदेव के पास पहुंच जाते हैं और मथुरा की दुर्दशा की पत्री सौंपते हैं। लेकिन वासुदेव भागने से इंकार कर देते हैं।
प्रजा से कंस झूठ बोलता है कि महाराज उग्रसेन संन्यास धारण कर कुटिया में चले गए हैं। कंस अपनी नाटकीयता से प्रजा को भरमाने में कामयाब होता है और मथुरा के सिंहासन पर राज्याभिषेक करा विराजमान हो जाता है।