Ramayan 14th April Episode: श्रीराम की शरण में जो जाता है वह भव सागर तर जाता है। लंकेश की ओऱ से युद्ध भूमि में पहुंचे कुंभकरण को विभीषण ने चेताया था कि भैया आप श्रीराम की शरण में आ जाइए। श्रीराम साक्षात विष्णु का अवतार हैं, वह त्रिलोकी जगत के स्वामी हैं। लेकिन कुंभकरण गुस्से में विभीषण पर बरस पड़ता है। वह विभीषण से कहता है कि तुमने धर्म का पालन नहीं किया। इसका अंजाम बुरा होगा। किंतु बाद में कुंभकरण भ्राता मोह में उसे अपने हाथ में पकड़ लेता है। इस बीच विभीषण बताता है कि उसने अपने धर्म का सही से पालन किया है। लंकापति रावण को विभीषण ने समझाने की कोशिश की थी। लेकिन रावण कामवासना में डूबे थे और वह किसी की नहीं सुन रहे थे।
तब कुंभकरण को आभास होता है कि विभीषण सही कह रहा है लेकिन कुंभकरण कहता है कि रावण की तरफ से लड़ना उसका कर्तव्य है औऱ वह इसे निभाएगा। कुंभकरण विभीषण से कहता है कि लंका में कोई नहीं बचेगा, सिवाय विभीषण के, ऐसे में उन सभी का अंतिम संस्कार विधि विधान से हो। विभीषण वचन देते हैं। अब युद्ध छिड़ता है। कुंभकरण राम को ललकारता है। तभी लक्ष्मण वहां आते हैं, अंगद हनुमान औऱ सुग्रीव सभी एक एक कर रावण से लड़ते हैं। इसके बाद राम आते हैं औऱ कुंभकरण की भुजा उसके शरीर से अलग कर देते हैं। जानिए आगे क्या होता है:-


अगर मेघनाद की जयघोष की गर्जना दसों दिशाओं में नहीं हुई तो इंद्रजीत अपने शस्त्र उठाना छोड़ देगा। वो रावण को विश्वास दिलाता है कि युद्धभूमि से राम और लक्षमण का वध करके ही लौटेगा और अगर वो इसमें सफल नहीं हुआ तो वहीं जल समाधि ले लेगा। इस पर रावण उसे आशीर्वाद देकर युद्ध में जाने की आज्ञा दे देता है।
राम लंका की हालत देखकर कहते हैं कि युद्ध की विभीषिका का यही दारुण परिणाम होता है। इधर, रावण मेघनाद से कहता है कि क्यों न सहायता के लिए भाई अहिरावण को बुला लिया जाए। ऐसे में मेगनाद भड़क कर कहता है कि क्या आपको मेरे रण कौशल पर संदेह है या आप पुत्र मोह के चलते आप मुझे कूच करने का आदेश देने में इतने असमंजस में क्यों चले जाते हैं। आपको अपनी जीत पर कोई आशंका लग रही है महाराज। आपको ये शोभा नहीं देता। आप मुझे रणभूमि में जाने की आज्ञा दीजिए। रावण मेघनाद को राम लक्ष्मण को खत्म करने के लिए भेजता है।
मां का हृदय- मां का हृदय ही होता है, भले ही फिर उसका बेटा कोई शूरवीर ही क्यों न हो। इंद्रजीत उनसे कहता है कि राजमहल की रानियों को रोने का अधिकार नहीं है। आपके आंखों से टपकते आंसू पूरे राज्य में हाहाकार मचा देगी। राजा कभी दुखी नहीं हो सकता क्योंकि इससे प्रजा विचलित हो सकती है। ये समय रोने-धोने का नहीं है, इस समय पूरी प्रजा और सभी का यही कर्तव्य है कि राजा के मनोबल को बढ़ाया जाए। सर्वदा विजय ही सच्चा कहलाता है। वो उन्हें वचन देते हैं कि अपने एक-एक भाई के बदले उनके हजारों योद्धाओं को मारेगा। आंसू पोछ लो मां और इंद्रजीत को विजयी होने का आशीर्वाद दो।
रानी धान्य मालिनी रावण से कहती है कि मेरे जीने का एकमात्र सहारा था अतिकाय। मेरी ममता का मोती मुझे लौटा दो लंकेश्वर। इस पर रावण कहता है कि अतिकाय उनका भी पुत्र था, तभी रानी कहती है कि आपने अपनी कामवासना के लिए अपने पुत्रों की बलि चढ़ा दी जाए। अब अगर आपको सीता मिल भी जाए तो क्या, आपके पुत्रों के लाश से पग लाकर जब वो महल में कदम रखेगी तो उसकी इज्जत कौन करेगा। रावण अपने भाई-बेटों के लिए घातक साबित हुआ।
कितने आंखों के तारे गए, कितने प्राण के प्यारे गए। व्यक्तिगत शत्रुता के लिए कितने निर्दोष मारे गए। राक्षसों का संहार हो रहा है। युद्ध भूमि में लाशे बिछ गई हैं। बच्चे अनाथ हो गए हैं, महिलाएं विधवा हो गई हैं। लंका के हालात बहुत खराब हो गए हैं। लंकेश इस स्थिति को देख कर परेशान हो जाता है
श्रीराम अपने अनुज को देख बहुत प्रसन्न होते हैं और उन्हें कहते हैं दीर्घजीवी हो, यशस्वी हो। वह विभीषण जी से कहते हैं कि देखा मेरे भैया का शौर्य प्रताप। लक्षमण कहते हैं भैया ये आप इसलिए कह रहे हैं ताकि मेरा मनोबल बने। विभीषण कहते हैं नहीं भैया अतिकाय. जैसे मायावी वीर को मारना आसान नहीं था आप जैसे वीर ही ये कर सकते थे। वहीं, विभीषण लंका की बुरी स्थिति को सोचकर परेशान हो जाते हैं।
अतिकाय अपनी मायावी शक्तियों से लक्षमण जी को परेशान करते हैं, तभी भगवान इंद्र के कहने पर वहां वायु देवता प्रकट होते हैं और उन्हें बताते हैं कि ये ब्रह्मा जी के वरदान की वजह से सुरक्षित है। अब आप शीघ्र ही अतिकाय पर ब्रह्मास्त्र चलाइए। ,तब, लक्षमण ब्रह्मास्त्र निकालते हैं औऱ अतिकाय को धराशयी कर देते हैं। अतिकाय का ब्रह्म कवच टूट जाता है औऱ वह अपने प्राण त्याग देता है।
युवराज अंगद ने एक ओर निकुंभ का वध कर दिया जबकि महाराज सुग्रीव ने महाबली कुंभ को धराशयी कर दिया। इधर, लक्षमण और अतिकाय दोनों के बीच बाणों की वर्षा लगातार जारी थी। तभी हनुमान जी ने कहा कि शत्रु रथ पर हैं और आप पैदल, ये बराबरी का युद्ध नहीं है। कृप्या आप मेरे ऊपर चढ़कर युद्ध करें, लेकिन लक्षमण ने मना कर दिया। उसी समय, मायावी अतिकाय अपने रथ समेत आकाश से बाण चलाने लगे। तब हनुमान जी ने लक्षमण से विनती की कि अब वो उनके कंधे पर आ जाएं, वो उन्हें गगन में ले जाएंगे।
दूत ने प्रभु राम को बताया कि पवन पुत्र हनुमान ने देवांतक का अंत कर दिया है, इस पर श्री राम कहते हैं कि अंगद और हनुमान की शौर्य की गाथाएं हम सुन चुके हैं, हमें अतिकाय और लक्षमण के य़ुद्ध के परिणाम जानने की उत्सुकता है। जामवंत आकर उन्हें बताते हैं कि बजरंगबली ने रावण के पुत्र त्रिश्रा का उसी की तलवार से वध कर दिया है। वहीं, लक्षमण और अतिकाय के बीच भी घोर युद्ध चल रहा है। इधर, सुग्रीव ने भी लंका के सेनापति अंकपन को गदा के एक ही प्रहार से ही हमेशा के लिए सुला दिया।
लक्षमण से दारुक कहता है कि दूध के दांत तो टूटे नहीं और लोहे के चने चबाना चाहते हो। क्रुद्ध लक्षमण ने क्षण भर में ही दारुक का अंत किया। दारुक का सिर धड़ से अलग हो जाता है जिससे अतिकाय गुस्से में आ जाता है। अब अतिकाय और लक्ष्मण के बीत सीधा आमना सामना होता है। अतिकाय लक्षमण को कहता है कि जब तुम यमलोक पहुंच जाओ तो मेरे काका को नतमस्तक जरूर करना। इस पर लक्षमण कहते हैं कि मेरे भाई को अनुज की क्षति होगी या रावण को पुत्र शोक, इसका फैसला अभी ही हो जाएगा। इसके बाद शुरू होता है भयानक युद्ध। इधर, राम जी के दूत उनसे कहते हैं कि अंगद ने भी नरांंकत का वध कर दिया है।
श्रीराम कहते हैं कि आप लक्ष्मण की शक्तियों के बारे में नहीं जानते। धनुर्धारी लक्ष्मण तीनों लोगों की शक्तियों से भी अधिक शक्तिशाली हैं। विभीषण कहते हैं कि वो केवल शत्रु की ताकत की जानकारी उन्हें देना चाहते थे, वो राम जी से प्रार्थना करते हैं कि अतिकाय अपनी पूरी सेना के साथ आया है ऐसे में वीर कुमार को बस अकेले न भेजें। लक्ष्मण गुस्से में कहते हैं कि मैं जाऊंगा भैया मुझे आज्ञा दीजिए। श्रीराम लक्ष्मण को विजय होने का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
इधर, सीता को त्रिजटा खबर देती है कि एक-एक कर सभी राक्षसों को श्रीराम ने मार डाला है। रावण को बहुत आघात हुआ है। सीता उनसे पूछती हैं कि क्या इससे रावण का हृदय परिवर्तन हुआ? इस पर वह बताती है कि नहीं, रावण ने अपने बाकी चारों पुत्रों को युद्ध भूमि में भेजा है। अतिकाय कहता है कि जैसे राम ने कुंभकरण को मारा है औऱ रावण को बहुत दुख पहुंचाया है वैसे ही वह भी अनुज लक्ष्मण को मार कर राम को दुख पहुंचाएगा। लक्ष्मण गुस्से में आकर कहते हैं कि भैया मुझे जाने की आज्ञा दें। श्रीराम उन्हें जाने के लिए कहते हैं। तभी विभीषण चेतावनी देते हैं कि प्रभु अतिकाय कुंभकरण से कम नहीं। उसने शिवजी से सारे शस्त्रों के गुण सीखे हैं।
कुंभकर्ण की मौत से विभीषण बेहद दुखी हैं। वह माथे पर हाथ रखकर कहते हैं कि कुंभकरण जैसा भाई मिलना बहुत किस्मत की बात है। आज मुझे लग रहा है कि मैं संसार में अकेला ही रह गया हूं। मैं अपने ही भाई की मृत्यु का कारण बन गया। तभी श्रीराम वहां आते हैं और कहते हैं कि कोई किसी की मृत्यु का कारण नहीं होता, सब काल चक्र है। कौन सा फूल है जो डाली में खिला और वहां से गिरा नहीं? विभीषण बताते हैं कि बाल काल से ही कुंभकर्ण भ्राता मुझे बहुत प्यार करते थे। राम कहते हैं कि कुभंकर्ण से पहले न कोई ऐसा पैदा हुआ था न होगा। कुंभकर्ण की आत्मा हमेशा अविनाशी रहेगी।
कुंभकरण जब राम से युद्ध करता है तो पराजित होता है और खबर रावण के पास पहुंचती है। रावण बौखला जाता है और कहता है- यह असंभव है। वह कहता है कि कुंभकरण का मरना सत्य नहीं हो सकता। इतने शक्तिशाली कुंभकरण की मृत्यु कैसे संभव है। इस पर उनका दूत कहता है कि राम के बाणों ने इस अनहोनी को संभव कर दिया है महाराज। रावण कहता है कि भाई की मौत से ज्यादा बड़ी क्षति कुछ और नहीं हो सकती। आज उनका दाहिना हाथ कट गया।
दर्शकों के अनुरोध से आज रात के एपिसोड की जगह सुबह के एपिसोड का ही पुनः प्रसारण किया जा रहा है।
भाई कुंभकर्ण और अपने चारों वीर पुत्रों की मौत के बाद रावण युवराज इंद्रजीत को युद्ध में भेजने से घबरा जाते हैं और पाताल लोक से अपने भाई अहिरावण को बुलाने का फैसला करते हैं। इस पर मेघनाद उनसे कहता है कि उसके रहते हुए उन्हें दूसरे लोक से किसी को और को बुलाने की क्या जरूरत है। वो रावण को विश्वास दिलाता है कि युद्धभूमि से राम और लक्षमण का वध करके ही लौटेगा और अगर वो इसमें सफल नहीं हुआ तो वहीं जल समाधि ले लेगा। इस पर रावण उसे आशीर्वाद देकर युद्ध में जाने की आज्ञा दे देता है।
अब युद्ध भूमि में जाने के लिए तैयार हुआ मेघनाद इंद्रजीत: रावण मेघनाद से कहता है कि क्यों न सहायता के लिए किसी अन्य राक्षस को बुला लिया जाए। ऐसे में मेगनाद भड़कता है औऱ कहता है कि आपको अपनी जीत पर कोई आशंका लग रही है महाराज। आपको ये शोभा नहीं देता। आप मुझे रणभूमि में जाने की आज्ञा दीजिए। रावण मेघनाद को राम लक्ष्मण को खत्म करने के लिए भेजता है।
इंद्रजीत का अभिमान अभी बाकी है..: लंकापति की रानियां इंद्रजीक को समझाती हैं कि वह अब विद्रोह न करे। इससे किसी को कुछ नहीं मिलेगा। लेकिन मेघनाद इंद्रजीत कहता है मुझे मेरे कर्तव्य से न रोको। मुझे आशीर्वाद दो कि मैं रघुकुल के चिरागों को खत्म कर सकूं।
रावण की जनता अब रावण के दरबार आ पहुंचते हैं। रावण की दूसरी पत्नी रोते हुए लंकेश के सामने आती है वह कहती है कि मुझे मेरा पुत्र लौटादो। मेरा एक ही सहारा था। महिलाओं के आंसू देख रावण चुप रहते हैं. रावण की दूसरी पत्नी गुस्से में कहती है कि आपने एक महिला के लिए पूरे कुल का नाश कर दिया सहरानियों के पुत्रों की बली चढ़ा दी। आपका नाम तो सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। रावण की पत्नी कहती है कि अब अगर सीता लंका में प्रवेश करती है तो कौन करेगा उसका आदर सम्मान कुल में तो कोई बचा ही नहीं।
राक्षसों का संहार हो रहा है। युद्ध भूमि में लाशे बिछ गई हैं। बच्चे अनाथ हो गए हैं, महिलाएं विधवा हो गई हैं। श्रीराम चारों तरफ देखते हैं। लंका की स्त्रियां रो रही हैं। बच्चे रुल रहे हैं। लंका के हालात बहुत खराब हो गए हैं। लंकेश इस स्थिति को देख कर परेशान हो जाता है.
श्रीराम अपने अनुज को देख बहुत प्रसन्न होते हैं। वह कहते हैं कि देखा मेरे भैया का शौर्य प्रताप। लक्ष्मण कहते हैं भैया ये आप ऐसे ही कह रहे हैं ताकि मेरा मनोबल बने। विभीषण कहते हैं नहीं भैया अतिकाय. जैसे मायावी वीर को मारना आसान नहीं था आप जैसे वीर ही ये कर सकते थे।
अतिकाय अपनी मायावी शक्ति से ऊपर आसमान से तीर बरसाने लगता है। तभी हनुमान आकर लक्ष्मण से आग्रह करते हैं कि वह उनके कंधे पर बैठें वह उन्हे आकाश में ले जाएंगे। पहले लक्ष्मण मना करते हैं लेकिन बाद में वह हनुमान के कांधे पर बैठ आकाश पर पहुंचते हैं। तभी इंद्र साक्षात आकर बताते हैं कि ब्रह्मास्त्र से ही अतिकाय का वध हो सकता है। ऐसे में लक्ष्मण ब्रह्मास्त्र निकालते हैं औऱ अतिकाय को धराशाही कर देते हैं। अतिकाय का ब्रह्म कवच टूट जाता है औऱ वह अपने प्राण त्याग देता है। श
अतिकाय लक्ष्मण तो चिढ़ाता है कि दूध के दांत टूटे नहीं और आगए। ऐसे में लक्ष्मण कहते हैं कि दूध के दातों में कितनी शक्ति है अभी दिखाता हूं। इसके बाद शुरू होता है भयानक युद्ध। लक्ष्मण नपे देवांतक का अंत किया। देवांतक का सिर धड़ से अलग होजाता है औऱ अतिकाय गुस्से में आ जाता है। अब अतिकाय और लक्ष्मण के बीत सीधा आमना सामना होता है। इधर अंगद ने भी नरांंकत का वध कर दिया है। अब बीच में हनुमान आ जाते हैं। वह कहते हैं कि इतने सारे राक्षस एक अकेले अंगद को घेरे हो, यही है तुम्हारी युद्धरणनीति।
श्रीराम कहते हैं कि आप लक्ष्मण की शक्तियों के बारे में नहीं जानते। धनुर्धारी लक्ष्मण तीनों लोगों की शक्तियों से भी अधिक शक्तिशाली हैं। विभीष्ण कहते हैं कि वीर कुमार को बस अकेले मत भेजें। लक्ष्मण गुस्से में कहते हैं कि मैं जाऊंगा भैया मुझे आज्ञा दीजिए। श्रीराम लक्ष्मण को विजय होने का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
अतिकाय ने लक्ष्मण को ललकारा: अतिकाय कहता है कि जैसे राम ने कुंभकरण को मारा है औऱ रावण को बहुत दुख पहुंचाया है वैसे ही वह भी अनुज लक्ष्मण को मार कर राम को दुख पहुंचाएगा। लक्ष्मण गुस्से में आकर कहते हैं कि भैया मुझे जाने की आज्ञा दें। श्रीराम उन्हें जाने के लिए कहते हैं। तभी विभीषण चेतावनी देते हैं कि प्रभु अतिकाय कुंभकरण से कम नहीं। उसने शिवजी से सारे शस्त्रों के गुण सीखे। इंद्र का वज्र भी उन्हें विचलित नहीं कर सका। उन्होंने एक बार विष्णु लोक जाकर भी परेशान किया।
इधर सीता को त्रिजटा खबर देती है कि एक एक कर सभी राक्षसों को श्रीराम ने मार डाला है। रावण को बहुत आघात हुआ है। सीता कहती हैं कि क्या इससे रावण का हृदय परिवर्तन हुआ? त्रिजटा बताती हैं कि नहीं। वह बताती है कि रावण ने अपने बाकी चारों पुत्रों को युद्ध भूमि में भेजा है। वहीं मां सीता श्रीराम की कुशलता की प्रार्थना करती हैं। अब इधर राक्षस सेना युद्धभूमि में कूद पड़ती है। ये मरने मारने को आतुर होते हैं। त्राही त्राही मच जाती है।
इधर महाराज विभीषण बेहद दुखी हैं। वह माथे पर हाथ धरे कहते हैं कि कुंभकरण जैसा भाई मिलना बहुत किस्मत की बात है। आज मुझे लग रहा है कि मैं संसार में अकेला ही रह गया हूं। मैं अपने ही भाई की मृत्यु का कारण बन गया। तभी श्रीराम वहां आते हैं वह कहते हैं कि कोई किसी की मृत्यु का कारण नहीं होता, सब काल चक्र है। कौन सा फूल है जो डाली में खिला और वहां से गिरा नहीं? विभीषण बताते हैं कि बाल काल से ही कुंभकरण भ्राता मुझे बहुत प्यार करते थे। राम कहते हैं कि मरणोपरांत एक आत्मा शरीर को त्याग कर दूसरे शरीर को प्राप्त करती है। राम कहते हैं कि कुभंकरण से पहले न कोई ऐसा पैदा हुआ था न होगा। कुंभकर की आत्मा हमेशा अविनाशी रहेगी। कुंभकरण ने अधर्म का साथ दिया यह वह दोष है। आपकी इसमें कोई गलती नहीं विभीषण।
आज रावण की दाहिनी भुजा कट कर गिर गई। कुंभकरण मेरे भाई हमने तुम्हारे लिए ब्रह्मा से एक दिन जगने का इसलिए वर नहीं मांगा था कि तुम उठ कर हमारे लिए अपने प्राणों का त्याग कर दो। अब इंद्रजीत गुस्से में आ जाता है। वह अपने अभिमान में कहता है कि मैं जाऊंगा अब युद्ध में। रावण इस बीच कहता है कि राक्षस जाति का विनाश? तभी इंद्रजीत कहताहै कि विष्णु का चक्र राक्षसों का कुछ नहीं कर सका तो राम का धनुष क्या करेगा। इंद्रजीत कहता है कि मुझे जाने दिया जाए युद्ध भूमि में। लेकिन इंद्रजीत के छोटा भाई कहता है कि वह युद्ध भूमि में जाएगा। रावण अपने चार बेटे त्रिशिरा, देवान्तक, नरान्तक और अतिकाय युद्ध भूमि में इकट्ठा भेजता है संपूर्ण सेना के साथ
कुंभकरण जब राम से युद्ध करता है तो पराजित होता है और खबर रावण के पास पहुंचती है। रावण बौखला जाता है और कहता है- यह असंभव है। वह कहता है कि कुंभकरण का मरना सत्य नहीं हो सकता। इंद्रजीत बताता है कि हमारे बलशाली कुंभकरण हमेशा के लिए सो गए नाथ ये सत्य है।
इससे पहले के एपिसोड में दिखाया गया था कि कुंभकरण गहरी नींद में सो रखा होता है। रावण कुंभकरण को उठाने के आदेश जारी करता है। तब लंकेश्वर की सेना कुंभकरण के कक्ष में हाथी नगाड़े गाजे बाजे लेकर जाती है।कुंभकरण को जगाने में सेना के पसीने छूट जाते हैं। काफी कोशिशों के बाद कुभकर्ण जागता है। नींद से जागते ही कुंभकर्ण सेनापति पर क्रोधित होते हुए कहता है कि मुझे नींद से जगाने की कोशिश किसने की है। सेनापति सारी बात बताता है। सेनापति बताता है कि महाराज रावण ने सीता का हरण कर लाए हैं। ऐसी बात सुन कुंभकर्ण भी रावण पर आश्चर्य और नाराजगी जताते हुए कहता है कि स्वयं जगदंबा को हर लाए। ऐसी दुर्भावना उनके मन में कैसे आई। किसी ने उन्हें समझाया नहीं। सेनापति बताता है कि विभीषण ने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन उन्होंंने विभीषण को महल से बाहर निकाल दिया।