Ramayan 12 April Evening Episode: जिस पर कृपा राम करे वो पत्थर भी तर जाते हैं… समुद्र पर सेतु निर्माण कार्य पूरे जोर-शोर से चलता है। हनुमान जी हर पत्थर पर प्रभु श्री राम का नाम लिखते हैं, श्रीराम लिखे पत्थर समुद्र की सतह पर ही अटक जाते हैं। इस तरह तैरते पत्थरों के जरिए समुद्र के ऊपर 100 योजन के सेतु निर्माण का कार्य 5 दिनों में ही पूरा हो जाता है। जैसे ही सेतु निर्माण का कार्य पूरा होता है हनुमान तुरंत आकर इसकी राम को सूचना देते हैं। राम इसका श्रेय सबको देते हुए भगवान शिव से हाथ जोड़ प्रार्थना करते हैं और कहते हैं कि हे भोलेनाथ मेरे समस्त अनुयायियों को अपनी भक्ति प्रदान करें। वो आगे कहते हैं कि आपके तो अनंत नाम हैं, एक नाम अपने भक्त से भी स्वीकार कर लीजिए- आज से आपको यहां श्री रामेश्वर के नाम से जानेंगे।
हनुमान जी जब प्रभु राम से रामेश्वर का तात्पर्य पूछते हैं तो श्री राम कहते हैं कि जो राम का ईश्वर है, वो रामेश्वर है। शिव जी मेरे स्वामी हैं और मैं उनका सेवक हूं, इसलिए ये रामेश्वर है। इस पर, भगवान शिव मां पार्वती से कहते हैं कि कैसे भगवान राम ने रामेश्वर का अर्थ ही बदल दिया। वो बताते हैं कि राम जिसके ईश्वर हैं, वही रामेश्वर है। इसके बाद हर-हर महादेव के जयकारे के साथ पूरी वानर सेना लंका की ओर कूच कर जाती है। जैसे ही इस बात की जानकारी रावण को मिलती है, वो क्रोधित और चिंतित दोनों हो जाते हैं। वो कहते हैं कि राम लंका पहुंच गया है, ये खबर सीता तक पहुंचे इससे पहले सीता हमारी हो जानी चाहिए।
मायावी रावण एक चाल चलने की कोशिश करता है और अपने मायावी शक्तियों से वह राम का कटा हुआ सिर सीता के सामने थाल में पेश करता है। सीता पति का कटा सिर देख रोने लगती हैं और रावण को उसके विनाश का श्राप देती हैं। सीता राम के कटे सिर को देखकर कहती हैं कि स्वामी मुझसे अवश्य कोई भूल हो गई होगी तभी इस संसार को छोड़ते हुए आप मुझे अपने साथ नहीं ले गए। लेकिन जल्द ही सीता को पता चल जाता है कि ये रावण की मायावी चाल है और राम जी लंका पहुंच चुके हैं। राम ने सैन्य शिविर की सरंचना की सराहना की। इसके उपरांत, राम अपने बाण से रावण को आगाह करते हैं। राम का बाण रावण के मुकुट पर लगता है और जमीन पर गिर पड़ता है। मंदोदरी ये देख काफी भयभीत हो जाती है। वह तुरंत महादेव से अपने पति की रक्षा की गुहार लगाने लगती है।
अगले दिन, रावण अपने गुप्तचर शूक और सारण को वानर के भेष में शत्रु की शक्तियों का पता लगाने के लिए भेजता है लेकिन विभीषण उन्हें पहचान जाते हैं और राम जी के समक्ष ले जाते हैं। वहां मौजूद सभी लोग प्रभु राम से कहते हैं कि इन्हें मृत्यु दंड दिया जाए पर श्री राम उन्हें आजाद कर देते हैं और रावण तक ये संदेशा भिजवाते हैं कि वो केवल अपनी पत्नी के लिए नहीं बल्कि अखिल विश्व की नारी सम्मान को स्थापत्य करने के लिए ये युद्ध लड़ रहे हैं। रावण को जैसे ही इस बात का पता चलता है तो वो कुपित हो उठते हैं, इधर दोनों ही गुप्तचर कृपासिंधु, क्षमामूर्त श्रीराम की उदारता का बखान करते हैं और रावण को प्रभु राम की सेना को विस्तार से बताते हैं।
Highlights
सुग्रीव और लंका के सेनानायक रावण के वज्र का रणभूमि में हुआ आमना सामना..:सुग्रीव ने रावण के वज्र औऱ लंकेश की मूर्खता को स्मरण कराया और कहा कि अब तुम्हारा अंत है। सुग्रीव अपनी गदा से सभी राक्षसों को अच्छा सबक सिखाते हैं। रावण को अब संदेश पहुंचता है कि अब लंका के सेनानायक नहीं रहे।
लंका में हुआ आक्रमण: श्रीराम की सेना ने लंका पर आक्रमण कर दिया वहीं रावण ने भी आदेश दे दिए कि वह संग्राम का बिगुल बजा दें औऱ जवाब दें। ऐसे में वानर और राक्षसों में भयानक युद्ध छिड़ गया।
लो शुभ घड़ी आगई- बोले देवता, अब होगा धर्मयुद्ध- जब पाप का घड़ा भर जाता है तब भगवन को आना पड़ता है।
त्रिजटा अशोकवाटिका में बैठी सीता को लंका में चल रही सारी बातों की खबर देती है। वह कहती हैं कि सीता लगता है कि युद्ध के बिना शायद तुम्हारी मुक्ती नहीं हो सकती। इधर श्रीराम कहते हैं, मुझे पता है कि रावण के संबंधी उसे समझाने की कोशिश करेंगे। अंगद कहते हैं कि लेकिन वह अहंकारी माने तब न। श्रीराम कहते हैं हम तुमसे बहुत खुश हैं अंगद ।
मंदोदरी रावण से कहती है कि स्वामी काल कभी लाठी नहीं मारता, वह बुद्धि हर लेता है विचार खराब करता है और जैसी स्थिति में आप हैं उसे वैसी स्थिति मे पहंचा देता है। स्वामी आपके मायावी राक्षस और बेटे मर गए लेकिन आप तब भी नहीं समझ पा रहे। अभी भी वक्त है स्वामी संभल जाएं। अहंकारी रावण गुस्से में मंदोदरी के कक्ष से चला जाता है।
रावण की मां और मंदोदरी के पिता दानवराज भी आते हैं रावण को समझाने लेकिन रावण किसी की भी सुनने को तैयार नहीं है। रावण कहता है आपको हमारी चिंता करने की कोई आवश्यक्ता नहीं। तभी मंदोदरी आती है औऱ वह कहती हैं कि नाथ आपको सभी एक ही बात कह रहे हैं लेकिन आप मान नहीं रहे। रावण फिर अपना अहंकार दिखाता है औऱ कहता है कि सीता को वह अपनी पटरानी बनाएगा। मंदोदरी कहती है कि सीता मानेगी तब ना।
रावण के नानाजी कहते हैं कि ये सही नहीं है। नानाजी रावण को आगाह करते हैं कि अभी भी समय है सुधर जाओ रावण। नाना कहते हैं- कि सीता को सम्मावन के साथ वापस कर दो। लेकिन रावण गुस्से और अहंकार में कहता है कि देवों के मन में हमारे लिए एख भय है मैं कैसे कर सकता हूं ये । रावण के नाना कहते हैं कि तुम दिगविजय हो लेकिन कोई तुम्हारे हित में नहीं है। अंत में विजय धर्म की ही होती है। अब वही अधर्म हमें सर्प बन कर डसने का कोशिश कर रहा है। रावण अहंकार में कहता है- वह वानर सेना हमपर राज करेगी? नानाजी कहते हैं कि वानर सेना को तुम कमजोर समझ रहे हो वह सभी गुप्त रूप से देवों के अंश हैं। क्या नर नील, क्या अंगद क्या जामवंत क्या हनुमान सभी देवों के अंश हैं।
रावण गुस्से में आजाता है औऱ अंगद को कैद करने के आदेश देता है। लेकिन तभी अंगद वहां से रफू चक्कर हो जाते हैं।
अब आई बारी लंकेश की...अंगद का पैर न हिलाने पर सभी राक्षस हैरान है कि इतनीशक्ति अंगद में कहां से आई। इसके बाद रावण आता है और फिरै वह अंगद के पैर पकड़ता है। लेकिन तभी अंगद अपने पैर पीछे खींच लेते हैं और कहते हैं मूर्ख मेरे पैर न पकड़ श्रीराम के पैर पकड़।
अंगद की ललकार से सभी राक्षस हैरान रह जाते हैं, एक एक कर सभी रावण राक्षस आते हैं औऱ अंगद का पैर हिलाने की कोशिश करते हैं लेकिन उनके पसीने छूट जाते हैं। इसके बाद इंद्रजीत आता है। वह अंगद के पांव पकड़ता है औऱ हिलाने की कोशिश करता है। यह देख सारी सभा अचंभित हो जाती है कि ऐसा बलवान नहीं देखा।
रावण अपने अहंकार में है ऐसे में वह श्रीराम के लिए कहता है कि राम ने वानर सेनपा की मदद से समंदर में सेतु बना दिया तो कौन सा बड़ा काम कर दिया। अंगद श्रीराम का संदेश पहुंचाते हैं कि श्रीराम की अंतिम चेतावनी तुम्हें सुनाता हूं- मैं तुम्हारे द्वार आचुका हूं, अब तुम्हारे पापों का अंत है। अगर तुम सीता को मुझे वापस नहीं करते तो दुनिया से सारे राक्षसों का अंत कर दूंगा। इस रावण रूपी जहाज का मैं अंत कर दूंगा। तभी रावण चिल्लाता है- वानर...........। रावण आदेश देता है कि अंगद का सिर कलम कर दिया जाए। तभी अंगद कहते हैं कि ये क्या मुझे अपनी शक्ति दिखाएंगे. मैं दिखाता हूं। इसके बाद अंगद अपनी पूंछ का कमाल दिखाते हैं औऱ सारे राक्षसों के छक्के छुड़ा देते हैं। अब अंगद चुनौती देते हैं कि अगर उनके पैर को ये सभी राक्षस अपनी जगह से उठा देते हैं तो वह समस्त वानर सेना के साथ वापस चले जाएंगे।
अंगद पहुंचे रावण की लंका: रावण अंगद को कुबुद्धि देता है कि वह उनके साथ मिल जाए। रावण कहता हैं किौ तुम हमारे साथ आजाओ राम ने तुम्हारे पिता बाली को मारा था। ऐसे में हम राम को मार कर तुम्हें तुम्हारा हक दिलवाएंगे। इस पर अंगद जवाब देते हुए कहते हैं कि उनके पिता बाली ने अंतिम समय में श्रीराम के चरण पकड़े थे। श्रीराम सर्वश्रेष्ठ हैं । तभी रावण गुस्से में कहता है बस करो ये प्रलाप।
इससे पहले शो में दिखाया गया था कि श्रीराम की सेना जोश में दिखाई देती है। वहीं रावण की लंका में भी राक्षसों का खून खौल रहा है। लेकिन वह अभी श्री की शक्तियों से अपरिचित हैं।दोनों ही तरफ की सेनाएं अपने-अपने राजा से आदेश प्राप्त करके युद्ध की तैयारी में जुट जाते हैं। इधर, रावण की सेना ने अपने चारों द्वार पर कड़ा पहरा लगा दिया है। वहीं, हर-हर महादेव का जयकारा लगाते हुए प्रभु राम जी की वानर सेना अपने-अपने निश्चित स्थानों पर पहुंच चुकी है। सुग्रीव राम से पूछते हैं कि अब आप बताएं कि धावा किधर से बोलना है। इस पर राम उनसे कहते हैं कि रावण को एक अंतिम मौका दिया जाना चाहिए। अगर रावण सीता को लौटा देते हैं तो वो उसे क्षमा कर देंगे। पर लक्षमण इस बात से कुपित हो उठते हैं तब राम उन्हें राजनीति और धर्म का ज्ञान देते हैं। सबसे चर्चा करने के बाद राम जी अंगद को दूत बनाकर रावण के पास भेजने का फैसला करते हैं।
श्रीराम का आज्ञा लेकर समस्त वानर सेना अब विशाल समुद्र को एक छोर से दूसरे छोर तक राम सेतु के जरिए जोड़ने की कोशिश में जुटी है। बड़े बड़े पत्थर को पानी में फेंक कर सेतु तैयार किया जा रहा है। आश्चर्य की बात है कि श्रीराम का नाम लिख पत्थर भव सागर में तैर भी रहे हैं।
इस पर रावण कहते हैं कि अगर वो अपने कुटुम्ब समेत सीता जी को लौटाने राम के पास गया और राम ने उन्हें बंदी बना लिया तो। अंगद कहते हैं कि राम युद्ध नहीं चाहते हैं और बेकसूरों का नाश भी नहीं चाहते। रावण अंगद से कहते हैं कि ये राम की करुणा नहीं बल्कि रावण का भय है। सीता कोई भिक्षा में मांगने वाली चीज नहीं है बल्कि उसे तो वीरता से पाया जा सकता है। अंगद ने रावण से जुड़ी कुछ बातें सबके समक्ष बताईं कि कैसे सीता से परिणय के लिए तोड़े जाने वाला धनुष को रावण उठा तक नहीं पाए। वहीं, बाली पुत्र अंगद का परिचय जानकर रावण उन्हें अपनी और बाली की दोस्ती की दुहाई भी दी।
अपने लिए सम्मानपूर्वक आसन बनाने के बाद ही वो राम जी का संदेश लंकानरेश को बताएंगे, ऐसा कहकर अंगद ने जय श्री राम का नाम लेकर अपनी पूंछ को बड़ा करके उससे एक आसन तैयार किया। वहां मौजूद सभी मंत्रीगण ये देखकर चकित रह गए। अंगद रावण से कहते हैं कि मैं आपकी उन्नति और भलाई के लिए राम जी का संदेश लेकर आया हूं और आपको सन्मति देने आया हूं। वो कहते हैं कि रावण का पाप उन्हें विनाश की ओर ले आया है। अंगद रावण को परामर्श देते हुए कहते हैं कि अब भी समय है वो श्री राम की शरण में चले जाएं और माता जानकी को प्रभु राम को लौटा दें।
शांति दूत अंगद ने राम का लेकर शांति संदेश, असत्य और अनीति के गढ़ में किया प्रवेश। रावण की सेना ने उनसे कहा कि दूत को शस्त्र की क्या जरूरत है इसलिए तुम अपना गदा फेंक दो। राम जी की सेना में हैं बड़े-बड़े योद्धा पर अंगद सा एक न विवेक, बुद्धि, बल में। शांति का प्रस्ताव लेकर दूत आया है, इस बात का रावण ने बड़ा उपहास बनाया। अंगद जब रावण के सामने पहुंचे तो कहते हैं कि सभ्य देशों में ये प्रथा है कि पहले राजदूत को स्थान दिया जाता है और फिर आतिथ्य कर आने का कारण पूछते हैं।
अंगद से राम कहते हैं कि तुम क्या उद्देश्य लेकर जा रहे हो इस बात को भली-भांति समझ लो। वो कहते हैं कि तुम हमारी तरफ से शांतिदूत बनकर जा रहे हो। अंगद को समझाते हुए राम आगे कहते हैं कि दूत का एक काम यह भी होता है कि वो शत्रु के सामने अपनी सेना के बारे में अच्छे से बताएं ताकि उसे भय हो जाए।
दोनों ही तरफ की सेनाएं अपने-अपने राजा से आदेश प्राप्त करके युद्ध की तैयारी में जुट जाते हैं। इधर, रावण की सेना ने अपने चारों द्वार पर कड़ा पहरा लगा दिया है। वहीं, हर-हर महादेव का जयकारा लगाते हुए प्रभु राम जी की वानर सेना अपने-अपने निश्चित स्थानों पर पहुंच चुकी है। सुग्रीव राम से पूछते हैं कि अब आप बताएं कि धावा किधर से बोलना है। इस पर राम उनसे कहते हैं कि रावण को एक अंतिम मौका दिया जाना चाहिए। अगर रावण सीता को लौटा देते हैं तो वो उसे क्षमा कर देंगे। पर लक्षमण इस बात से कुपित हो उठते हैं तब राम उन्हें राजनीति और धर्म का ज्ञान देते हैं। सबसे चर्चा करने के बाद राम जी अंगद को दूत बनाकर रावण के पास भेजने का फैसला करते हैं।
विभीषण प्रभु राम से कहते हैं कि उन्हें अपने गुप्तचरों से प्राप्त जानकारी के हिसाब से बताया कि रावण ने लंका की दुर्बंदी कर दी है। राम विभीषण से पूछते हैं कि रावण क्या सोचता है कि हमला पहले कौन करेगा। इसके अलावा, उन्होंने विभीषण से रावण की व्यूह रचना के बारे में पूछा। विभीषण कहते हैं कि रावण सोचता है कि कमजोर दक्षिणी मोर्चा पर हमला कर देंगे ताकि उन्हें राम जी के सैन्य संचालन का पता चलेगा। विभीषण ने ये भी बताया कि अगर दक्षिणी मोर्चे पर हम कमजोर हो जाएंगे तो इंद्रजीत पीछे से हमला कर सकता है। इधर, राम जी अपनी सेना से कहते हैं कि अलग-अलग द्वारों पर हनुमान, अंगद, नल-नील और लक्षमण मौजूद रहेंगे। वो जामवंत, विभीषण और सुग्रीव से कहते हैं कि ये तीनों ही रावण की व्यूह रचना पर नजर रखेंगे।
शूक रावण से कहते हैं उनके दूतों ने बताया है कि राम की सेना ने अचूक गर्भ व्यूह की रचना की है जो कि अभेद है। इस पर रावण कहता है कि तुम तो राम से प्रभावित होकर आए हो। रावण सर्वोच्च सेना अध्यक्ष का पद और युद्ध के संचालन की जिम्मेदारी इंद्रजीत को देते हैं। रावण अपने पुत्र से कहता है कि मेघनाद तुम्ही रावण के उन्नत ललाट पर मुकुट बनकर शोभित हो। रावण और इंद्रजीत सैन्य योजनाएं बनाते हैं।
मंदोदरी अपने पिता से कहती है कि जब से पिता आई है तब से क्या कोई चैन से रह पाया है। वो अपने पिता से कहती हैं कि लंका में जितने भी भूचाल आए हैं वो सब उन वनवासी के कारण ही आए हैं। इधर, रावण अपने मंत्रियों से कहते हैं कि अब युद्ध अनिवार्य है। वो कहते हैं कि प्रजा को आतंकित नहीं किया जाएगा, हमें खुद ही सावधान रहना पड़ेगा। वो कहते हैं कि आगामी युद्ध को देखते हुए अब केवल मंत्रीगण, सेना के प्रधान अधिकारी और गुप्तचर ही महल में आएं। वहीं, वरिष्ठ मंत्री रावण से कहते हैं कि क्यों न जानकी को वापस भेज दिया जाए, इससे युद्ध को टाला जा सकता है। तब ही इंद्रजीत कहता है कि हमें तारण नहीं निवारण के बारे में सोचना है। रावण कहते हैं कि युद्ध जरूरी है लेकिन पहले हमला हम नहीं करेंगे। हम सावधानी से सैन्य संचालन करते हुए उनकी गतिविधियों पर नजर रखेंगे।
सुग्रीव के वापस आने पर राम उनसे पूछते हैं कि ये कैसी नादानी है इस पर सुग्रीव कहते हैं कि माता सीता को हरने वाले रावण को देखकर मैं अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाया। राम उनसे कहते हैं कि आगे से वो इस बात का ध्यान रखें क्योंकि सुग्रीव उनके राजा हैं और उनकी पराजय से अधर्म की जीत हो जाती। इधर, मंदोदरी को जब इस बात की जानकारी मिली तो वो चिंतित हो गईं और सोचने लगी कि रावण को हित और अनहित का पाठ कैसे पढ़ाया जाए। इस पर उनकी सेविकाएं उनसे कहती हैं कि वो अपने पिताजी का आश्रय लें। वो अपने पिताजी से कहती हैं कि क्या वो रावण को अनीति की राह पर चलने से रोक नहीं सकते। उनके पिताजी कहते हैं कि वो ऐसी संताप क्यों कर रही है, मंदोदरी उनसे कहती हैं कि सीता उनकी सौत नहीं उनके पति की मौत बनकर आई है।
राम लक्षमण, विभीषण और सुग्रीव समेत विश्वकर्मा द्वारा रचित, कुबेर द्वारा सुसज्जित सोने से सजी लंका को देखा। विभीषण उन्हें लंका से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां देते हैं और रावण की सैन्य शक्तियों के बारे में भी बताते हैं। वो सबको अलग-अलग दिशाओं से संबंधित बातें बताते हैं। इस बीच उनकी नजरें रावण से मिलती हैं। क्रोधित सुग्रीव रावण से लड़ने उनके महल में चले जाते हैं और उसे उठाकर पटक देते हैं। दोनों के बीच घमासान हाथापाई शुरू हो जाती है। जब सुग्रीव रावण पर भारी पड़ने लगते हैं तो रावण अपनी मायावी शक्तियों का इस्तेमाल कर सुग्रीव को भ्रमित करने की कोशिश करते हैं।
जैसे ही सीता को राम जी के लंका की धरती पर पहुंचने की जानकारी मिलती है वो बेहद प्रसन्न हो जाती हैं। पर इस बात का उन्हें दुख भी होता है कि मां सीता अपने प्रभु राम के चरण स्पर्श भी नहीं कर सकतीं। जानकी धरती मां से गुहार करती हैं कि वो वहीं बैठकर अपने प्रभु श्री राम के चरण स्पर्श कर रही हैं, ये बात कृप्या रघुनंदन तक पहुंचा दी जाए। जैसे ही श्री राम को ये महसूस होता है वो मन ही मन सीते से कहते हैं कि सीते अब मैं आ गया हूं, दुख के दिन समाप्त हो गए समझो। मैं जल्द ही उस पापी को मारकर तुम्हें मुक्त कराऊंगा।