एक दौरा था जब गांधी और बच्चन परिवार के बीच गहरा रिश्ता होता था। यह रिश्ता जवाहरलाल नेहरू के समय से शुरू हुआ था जब हरिवंश राय बच्चन की पत्नी तेजी बच्चन और इंदिरा गांधी के बीच गहरी दोस्ती हुआ करती थी। बाद में चलकर अमिताभ बच्चन भी राजीव गांधी के अच्छे दोस्त बने और उन्हीं के कहने पर राजनीति में आए। लेकिन बोफोर्स मामले में नाम आने पर उन्होंने राजनीति से किनारा कर लिया और गांधी-बच्चन परिवार के रिश्तों में तल्खियां आ गईं। बाद में राजीव गांधी ने अमिताभ बच्चन को सबक सिखाने के मकसद से राजेश खन्ना को राजनीति में उतारा था।
इस बात का दावा राजेश खन्ना के इलेक्शन इंचार्ज रहे बृजमोहन भामा ने किया था। वरिष्ठ पत्रकार पंकज वोहरा ने एबीपी से बातचीत में बताया था, ‘राजेश खन्ना 1991 में नई दिल्ली क्षेत्र से एलके आडवाणी के खिलाफ इलेक्शन लड़े थे। उस वक्त राजेश खन्ना के जो इलेक्शन इंचार्ज थे, बृजमोहन भामा, उनका कहना ये है कि राजीव गांधी ने राजेश खन्ना को इसलिए चुना था नई दिल्ली से चुनाव लड़ने के लिए क्योंकि वो अमिताभ बच्चन से बहुत नाराज़ थे और अमिताभ बच्चन को सबक सिखाना चाहते थे।’
1991 के लोकसभा चुनाव में नई दिल्ली से चुनाव लड़ने की पहली पसंद राजेश खन्ना नहीं थे बल्कि उनकी जगह अंबिका सोनी को खड़ा किया जाना था। जिस दिन नामांकन दाखिल किया जाना था उस दिन अचानक राजेश खन्ना के नाम की घोषणा हो गई। चुनाव में राजेश खन्ना ने अपनी लोकप्रियता से एलके आडवाणी की कड़ी टक्कर दी लेकिन वो चुनाव हार गए।
एलके आडवाणी ने बाद में नई दिल्ली सीट छोड़ दी और वो गांधीनगर चले गए। नई दिल्ली सीट पर उप चुनावों में राजेश खन्ना को खड़ा करने के पक्ष में कांग्रेस के कुछ नेता नहीं थे। कांग्रेस नेता आर के धवन ने बताया था, ‘नई दिल्ली से उप चुनाव होना था तब मैंने प्राइम मिनिस्टर से आग्रह किया कि इनको टिकट दे दी जाए। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के बहुत से नेतागण उन्हें सीट देने के पक्ष में नहीं थे।’
उन्होंने आगे बताया था, ‘जब एक मीटिंग हो रही थी तब पीएम ने सबके सामने कहा था कि इनको टिकट दी जाए, अब इनके इलेक्शन इंचार्ज तुम्हीं होगे और तुम्हें ये सीट जीतानी होगी।’ उप चुनाव में राजेश खन्ना के सामने शत्रुघ्न सिन्हा थे। राजेश खन्ना ने यह उप चुनाव जीत लिया था।