राज कपूर का हिंदी सिनेमा में योगदान अतुलनीय है। वो अपनी फिल्मों में अपनी ज़िंदगी से जुड़े किस्सों, घटनाओं को दिखाने के लिए जाने जाते थे। उनकी फिल्मों के गीत संगीत भी काफी लोकप्रिय हुए। इसी तरह की एक फ़िल्म थी 1985 में आई ‘राम तेरी गंगा मैली’, जिसके गीत आज भी बड़े लोकप्रिय हैं। इस फिल्म के गीतों के बारे में खास बात यह है कि इसके एक गाने पर किन्नरों को आपत्ति थी जिसके बाद वो गाना ही बदल दिया गया था।

दरअसल राज कपूर अपनी फिल्म में गानों का चुनाव किन्नरों की मंजूरी लेने के बाद ही करते थे। वो पहले उन्हें गाने सुनाते, अगर पसंद आता तब ही गाना फिल्म में होता अथवा निकाल दिया जाता था। फिल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में इस बात का खुलासा किया था। उन्होंने कहा था कि हर होली के दिन राज कपूर से मिलने शाम 4 बजे किन्नर आया करते थे।

चौकसे ने बताया था, ‘शाम 4 बजे राज कपूर से मिलने किन्नर आया करते थे। आरके स्टूडियो में वो लोग उनके सामने रंग उड़ते, रंग लगाते और उन्हें भी अपने साथ नचवाते। राज कपूर अपनी नई फिल्मों के गीत उन्हें सुनाते और मंजूरी मिलने के बाद ही उसे फिल्म में रखते।’ इसी तरह एक होली पर किन्नरों ने राम तेरी गंगा मैली के एक गाने को नापसंद कर उसे फिल्म से निकाल देने के लिए कहा था और राज कपूर ने ऐसा ही किया।

 

जयप्रकाश चौकसे ने किस्सा सुनाया था, ‘राम तेरी गंगा.. के गानों में से एक गाना किन्नरों को अच्छा नहीं लगा तो राज कपूर ने उसी वक्त कवि रविंद्र जैन की बुलाया और उन्हें एक नया गीत बनाने को कहा। तब ‘सुन साहिबा सुन’ बनकर तैयार हुआ और किन्नरों को बहुत पसंद आया। उन्होंने राज कपूर से कहा कि देखना ये गीत सालों चलेगा और ऐसा ही हुआ।’

 

राज कपूर अपनी फिल्मों के लिए पूरी तरह समर्पित थे। मेरा नाम जोकर उनकी बेहतरीन फिल्मों में से एक मानी जाती है लेकिन जब ये रिलीज हुई तो बुरी तरह फ्लॉप रही थी। कहा गया कि अपने समय से बहुत पहले की फिल्म है ये। इस फिल्म को बनाने में राज कपूर को 6 साल लगे थे और फिल्म के बनते बनते वो बुरी तरह कर्ज में डूब गए थे। इस फिल्म के लिए उन्होंने अपना घर तक गिरवी रख दिया था।