अपने पहले इंटरनेशल प्रोजेक्ट में राधिका आप्टे एक हॉलीवुड फिल्म में नज़र आने वाली हैं। ये फिल्म ब्रिटिश प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल की सीक्रेट आर्मी पर आधारित है। इस आर्मी में कई रियल लाइफ जासूस भी होंगे और राधिका इस फिल्म में नूर इनायत खान का रोल करती नज़र आएंगी। नूर इनायत खान भारत की राजकुमारी थी और वे मैसोर के टीपू सुल्तान की वंशज थी। नूर एक सीक्रेट एजेंट थी जिन्हें सीक्रेट कम्युनिकेशन में महारत हासिल थी। उनकी जासूसी का स्तर ऐसा था कि घबराए नाजियों ने जब तक उन्हें मार नहीं गिराया तब तक वे उस क्षेत्र में चैन की सांस नहीं ले पाए थे।

नूर का जन्म रूस के मॉस्को में हुआ था। उनके पिता हजरत इनायत खान एक सूफी संगीतकार थे और उनकी मां ओरा रे एक अमेरिकन महिला थी। प्रथम विश्व युद्ध के चलते नूर के परिवार को रूस छोड़ कर जाना पड़ा और ये परिवार इसके बाद फ्रांस में शिफ्ट हो गया था। नूर बचपन में बेहद चुपचाप रहती थी। उन्हें पढ़ना पसंद था और वे घंटों बच्चों की किताबों की दुनिया में खोई रहती थी। उन्हें म्यूज़िक से भी खास लगाव था। 25 साल की उम्र तक उन्होंने अपनी पहली किताब पब्लिश की थी जो बच्चों की कहानियों पर ही आधारित थी। उन्होंने चाइल्ड साइकोलॉजी में डिग्री भी हासिल की थी और वे अक्सर फ्रेंच रेडियो पर अपनी कविताएं भी सुनाती थी।

हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध की आहट के बाद उनकी ज़िंदगी में एक बार फिर उथल पुथल शुरू हो चुकी थी। इस युद्ध के दौरान उन्हें अपना घर गंवाना पड़ा और वे लंदन में जाकर शिफ्ट हो गई। फासिस्ट विचारधारा की विरोधी नूर ने विमेन ऑक्सिलरी एयर फोर्स को जॉइन कर लिया। नाज़ियों के खात्मे को प्रतिबद्ध नूर के दिल में हमेशा भारत को लेकर प्रेम बना रहा। WAAF में एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि युद्ध खत्म होने के बाद वे अपनी ज़िंदगी भारत की आज़ादी की लड़ाई में लगा देंगी। वे जानती थी कि इसके बेहद बुरे अंजाम होंगे लेकिन वे अपने फैसले को लेकर अडिग थी।

नूर इनायत खान भारत से बेहद प्रेम करती थीं।

1942 में नूर ने चर्चिल की सीक्रेट स्पेशल ऑपरेशन एक्जक्यूटिव (SOE) को जॉइन किया। इस ग्रुप का मकसद था स्थानीय कॉमरेड को सपोर्ट करना, दुश्मनों पर निगाह बनाए रखना और दुश्मन देशों के इलाकों में सेंध लगाना। उनके शर्मीले व्यवहार और औसत कद काठी के चलते नूर पर कोई शक भी नहीं करता था कि वे एक सीक्रेट एजेंट हो सकती है। उनका कोड नाम मैडलीइन था जो उन्होंने अपनी एक कविता से उठाया था।

जून 1943 में पेरिस में 29 साल की नूर SOE की अंडरकवर रेडियोऑपरेटर थी। वे फ्रांस में पहली ऐसी महिला थी जिन्हें अंडरकवर रेडियोऑपरेटर का काम सौंपा गया था। लेकिन नूर के पेरिस में घुसने के एक हफ्ते के अंदर ही सभी SOE ऑपरेटर्स को जर्मनी की नाजी सीक्रेट पुलिस ने पकड़ लिया था। नूर हालांकि किसी तरह वहां से बच निकलने में कामयाब रहीं, वो सिर्फ अकेली ऐसी अंडरकवर रेडियो ऑपरेटर थी जो पेरिस में बची हुई थी। ब्रिटिश प्रशासन ने उन्हें वहां से निकलने का ऑफर भी दिया लेकिन नूर जानती थी कि उनका काम कितना गंभीर है, इसलिए उन्होंने ब्रिटेन के इस ऑफर को ठुकरा दिया।

अगले तीन महीनों तक वे नाजी की सीक्रेट पुलिस से बचती रही और उन्हें छकाती रही। इसके अलावा वे अपनी जान जोखिम में डालकर लंदन में मैसेज और महत्वपूर्ण जानकारियां पहुंचाने का काम करने लगी थी। हालांकि नूर आखिरकार नाजी सीक्रेट पुलिस के हत्थे चढ़ गईं। दरअसल नूर को एक डबल एजेंट ने धोखा दिया और आखिरकार वे नाजियों के हाथ आ गई। लेकिन नूर आसानी से हार मानने वाली नहीं थी, उन्होंने कई पंच मारे, किक मारी और यहां तक की काटकर भी भागने की कोशिश की। नाजी सीक्रेट पुलिस को अपने 6 आदमियों का इस्तेमाल करना पड़ा, तब जाकर नूर काबू में आ पाई थी। उस दौर में किसी भी औसत रेडियो ऑपरेटर के लिए नाजी आर्मी से बचने का औसत समय लगभग 6 हफ्ते होता था लेकिन नूर ने इससे तीन गुना ज़्यादा समय तक नाजियों को छकाए रखा था।

राधिका का ये पहला इंटरनेशनल प्रोजेक्ट है।

जेल में रहकर भी उन्होंने वहां से भागने की कोशिश की थी लेकिन उनका ये प्रयास सफल नहीं हो पाया। इसके बाद प्रशासन हरकत में आ गया और उन्हें चेन से बांध दिया गया और उनके साथ हिंसा भी की गई। उन्हें टॉर्चर किया जाता लेकिन नूर ने कभी कोई जानकारी नाजी पुलिस को मुहैया नहीं कराई। एक साल जेल में बिताने के बाद उन्हें डकाऊ के कंनस्ट्रेशन कैंप में शिफ्ट कर दिया गया। जहां नूर के साथियों को इस कैंप में पहुंचने पर फौरन मार दिया जाता था वहीं नूर को यहां भी भयानक टॉर्चर किया गया और उन्हें 13 सितंबर 1944 को गोली मार दी गई।

नूर को फ्रांस के बेस्ट मिलिट्री डेकोरेशन अवार्ड से नवाजा गया था। उन्हें 1949 में ब्रिटेन के शीर्ष सिविलयन अवार्ड, जॉर्ज क्रॉस से नवाजा गया। उन्हें ये अवार्ड अपनी अद्भुत बहादुरी के लिए दिया गया था। 2006 में श्राबनी बासु ने एक बायोग्राफी ‘स्पाई प्रिसेंस’ के सहारे नूर की कहानी को दुनिया के सामने लाने की कोशिश की थी। उन्होंने नूर मेमोरियल ट्रस्ट की भी स्थापना की थी और नूर को लेकर एक लंबा कैंपेन भी चलाया था, यही कारण था कि 2012 में नूर के स्टैचू को लंदन में स्थापित किया गया था। वो पहली ऐसी एशियाई महिला थी जिनका मेमोरियल यूके में लगा था।

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