‘नृत्य साम्राज्ञी’ के नाम से मशहूर कथक नृत्यांगना सितारा देवी का लंबी बीमारी के बाद आज यहां निधन हो गया। सितारा देवी ने शास्त्रीय नृत्य विधा को बॉलीवुड में लाने में अग्रणी भूमिका निभायी थी। शहर के जसलोक अस्पताल के सूत्रों ने 94 वर्षीय नृत्यांगना के निधन की जानकारी दी। उन्हें इसी अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
वर्ष 1920 में तत्कालीन कलकत्ता में जन्मी सितारा ने अपने पिता के संग्रहित विषयों, कविताओं और नृत्यशैली को अपने नृत्य में उकेरा था। चाहे कोई शहर हो या गांव, वह अपने आसपास के माहौल से प्रेरित थीं। सितारा के निधन पर चारों ओर से शोक संदेश आने शुरू हो गए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके निधन पर शोक जताते हुए कथक से जुड़े ‘उनके वृहद योगदान’ को याद किया।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने ट्विटर पर लिखा, ‘‘प्रधानमंत्री ने प्रख्यात कथक नृत्यांगना सितारा देवी के निधन पर शोक जताया है। प्रधानमंत्री ने साथ ही कथक से जुड़े उनके वृहद योगदान को भी याद किया।’’
सितारा देवी के आसपास के चरित्र उनके नृत्य में जीवंत हो उठते थे। वह अक्सर कहा करती थीं, ‘‘मैं बस रियाज से कृष्ण-लीला की एक कथाकार हूं।’’
कथक का अर्थ ही होता है ‘कथा’। यह कृष्ण मंदिरों में विकसित हुआ और मुस्लिम राजाओं के दरबार में अपनी बुलंदियों पर पहुंचा। सितारा देवी की जड़ें इन्हीं ‘कथाकारों’ या आरंभिक कथक नर्तकों तक जाती है। वह एक ब्राह्मण कथाकार सुखदेव महाराज के परिवार में धन्नोलक्ष्मी के रूप में पैदा हुई थीं और उन्होंने कम उम्र में शादी की जगह नृत्य को ही अपने जीवन के लक्ष्य के रूप में चुना। उस वक्त कम उम्र में ही लड़कियों की शादी कर दी जाती थी।
उनके पिता एक वैष्णव ब्राह्मण विद्वान और कथक कलाकार थे। उन्होंने सितारा को एक स्थानीय विद्यालय में भेजा। जहां उन्होंने ‘सावित्री सत्यवान’ की प्रस्तुति देकर अपने अध्यापकों और स्थानीय मीडिया का ध्यान खींचा। जब उनके पिता ने उनकी प्रतिभा देखी तो उन्होंने उनका नाम सितारा रख दिया। सितारा ने अपनी बड़ी बहन की देखरेख में कथक का प्रशिक्षण पाया। जब सितारा देवी 11 साल की थीं तब उनका परिवार मुंबई आ गया। वहां उन्होंने एक बार तीन घंटे की एक एकल प्रस्तुति देकर नोबेल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर को प्रभावित किया था।
टैगोर ने उन्हें 50 रुपये और एक शॉल भेंट की लेकिन सितारा ने उसे लेने से मना कर दिया और उनसे केवल आशीर्वाद मांगा। टैगोर ने सितारा का नृत्य देखने के बाद उन्हें ‘नृत्य साम्राज्ञी’ की संज्ञा दी थी। इसके बाद यह विशेषण उनके नाम से जुड़ गया और उन्हें अब भी कथक साम्राज्ञी कहा जाता है।
अगले छह दशकों में वह कथक की बड़ी हस्ती बन गयीं और शास्त्रीय नृत्य विधा को बॉलीवुड में लाने में अग्रणी भूमिका निभायी।
उन्होंने मुगल-ए-आजम के निर्देशक के. आसिफ से विवाह किया। बाद में उनका विवाह प्रताप बारोट से हुआ। शास्त्रीय नृत्य विधा से जुड़े योगदान के लिए वर्ष 2011 में सितारा को लीजेंड्स ऑफ इंडिया लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाजा गया।