दुस्तान की कालजयी फिल्म मुगले आजम के निर्देशक के आसिफ की काबिलियत की चर्चा आज भी उनकी जन्म स्थली में होती है। उत्तर प्रदेश के इटावा में पैदा हुए आसिफ को आज भी यहां के लोग भूले नहीं हैं। मुगले आजम के जनक के आसिफ को दुनिया का अनोखा फिल्मकार माना जाता है। 14 मार्च 1922 को इटावा में पैदा हुए आसिफ का निधन 9 मार्च 1971 को मुंबई में हुआ लेकिन आज भी यहां की संकरी गलियों में आसिफ की चर्चा बदस्तूर जारी है। के आसिफ का पूरा नाम कमरुद्दीन आसिफ था लेकिन सिनेमा में जाने के बाद उनका नाम के आसिफ हो गया। आसिफ को याद करने का मौका भी पिछले दिनों बना। दरअसल, मुगले आजम को लंदन में 13 जुलाई को एक कार्यक्रम में अनोखे अंदाज में याद किया गया। इसमें अभिनेत्री शबाना आजमी, गीतकार जावेद अख्तर और निर्माता-अभिनेता फरहान अख्तर शामिल हुए। यह कार्यक्रम भारतीय सिनेमा कल और आज विषय पर केंद्रित था। इसकी मेजबानी मुगले आजम के निर्देशक के आसिफ की पौत्री हया आसिफ ने की। इस मौके पर के आसिफ और फिल्म को लेकर चर्चा की गई।

आसिफ के इटावा में जन्म की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। आसिफ के मामा असगर यहीं रहते थे। इस बीच असगर की बहन लाहौर से अपने भाई के पास इटावा आईं। भाई असगर के यहां बहन ने एक बेटे को जन्म दिया। इसका नाम रखा गया कमरुद्दीन आसिफ। असगर के पास ही आसिफ की शुरुआती परवरिश हुई। आसिफ ने फूल बेचने से लेकर दर्जी तक का काम किया। उन्होंने बड़े लोगों के कपड़े सीते-सीते, बड़े-बड़े ख्वाब बुनना भी सीख लिया।कटरा पुर्दल खां के बुजुर्ग महफूज अली के घर में ही आसिफ का जन्म हुआ। उनके घर के एक हिस्से में आसिफ के मामा किराए पर रहते थे। उनका कहना है कि उनके बाबा और पिता आसिफ के बारे मे उनको अमूमन बताते रहे हैंैं। मुगले आजम के दौर में कोई भी सिनेमा हाल इटावा शहर में नहीं था। सिर्फ टूरिंग टॉकीज के तौर पर दो मामूली से हाल लालपुरा और नौरंगाबाद में होते थे। इनमें ही फिल्में चला करती थीं।

आसिफ की प्रारंभिक शिक्षा इटावा के इस्लामिया इंटर कॉलेज के मदरसे में हुई। इस कॉलेज के शिक्षक फजल युसूफ कहा कि उनके बाबा ने आसिफ के बचपन के बारे में उनको काफी कुछ बता रखा है। उनका कहना है कि आसिफ उनके घर के पास ही खेलने के लिए आते थे। जब मुगले आजम आई तो उनके बड़े भाई समेत कई दोस्त इटावा से कानपुर फिल्म देखने के लिए गए। जहां पर कई दिनों के इंतजार के बाद फिल्म को देख पाने में कामयाबी मिली। फजल बताते हैं कि फिल्म देखने के बाद उनके भाई एजाज अली इटावा लौट कर आए और बोले अगर आज आसिफ के साथ रहते तो उनका भी नाम मुगले आजम में निश्चित ही होता । अपने 30 साल के लंबे फिल्म करियर में के आसिफ ने सिर्फ तीन मुकम्मल फिल्में बनार्इं- फूल (1945), हलचल (1951) और मुगल-ए-आजम (1960)। ये तीनों ही बड़ी फिल्में थीं और तीनों में सितारे भी बड़े थे।