इरफान खान पिछले कुछ समय से एक बेहद गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर से ग्रस्त इरफान लंदन में अपना इलाज करा रहे हैं और पिछले कुछ महीने उनके लिए कई उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। अपने इन्हीं अनुभवों को उन्होंने एक लेख के सहारे कागज़ों पर उतारने की कोशिश की है। उन्होंने लिखा कि पिछले कुछ समय से मैं एक हाई ग्रेड न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर का इलाज करा रहा हूं। ये शब्द मेरे लिए काफी नया है और मुझे पता चला कि ये काफी दुर्लभ भी है और चूंकि इस पर कम रिसर्च हुई है, तो कहीं न कहीं इस ट्रीटमेंट की अनिश्चितता को लेकर कुछ नहीं कहा जा सकता।
मैं एकदम अलग ही दुनिया में था, मानो मैं एक तेज़ दौड़ती रेलगाड़ी में सवार था, मेरे सपने थे, गोल्स थे, योज़नाएं थी और मैं पूरी तरह से उनके साथ मसरूफ था। लेकिन अचानक ही किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मैंने पीछे मुड़कर देखा तो एक टीसी खड़ा था। टीसी ने मुझसे कहा – आपकी मंजिल आने वाली है। अब आप उतर जाइए। लेकिन मैं उतरना नहीं चाहता था, मुझे पता है मेरी मंजिल नहीं आई है। लेकिन वहां से आवाज़ आती है – ‘नहीं बस इतना ही। यही आपकी मंजिल है।’ तब आपको एहसास होता है कि शायद ज़िंदगी में यूं ही पलक झपकते ही कुछ भी हो सकता है। आप समुद्र में उस छोटे से कॉर्क की तरह फील करते हो, जो नदी के बहाव को बदलना चाहता है, लेकिन वो कुछ नहीं कर पाता।

आप इस चीज़ से गुज़र रहे होते हो और फिर आपको दर्द अपना एहसास कराता है। ऐसा लगता है कि इस पूरे समय के दौरान आप सिर्फ दर्द को जानते थे, लेकिन अब दर्द अपनी तीव्रता दिखा रहा है। जब दर्द होता है, तो कुछ काम नहीं करता। दर्द की तीव्रता ऐसी होती है कि उससे बड़ा कुछ नहीं दिखता। मुझे एहसास नहीं था कि मेरे अस्पताल के बगल में ही लॉर्ड्स का मैदान था। मेरे बचपन के सपनों का मक्का। अपने दर्द के बीच मैंने विवियन रिचर्ड्स की मुस्कुराते हुए तस्वीर देखी थी। मुझे कुछ नहीं हुआ, मानो वो दुनिया मेरे लिए थी ही नहीं।
‘As if I was tasting life for the first time, the magical side of it.’ https://t.co/GX0CqfjSVX
— Irrfan (@irrfank) June 19, 2018
इस अस्पताल के ऊपरी हिस्से में कोमा का वार्ड भी है। एक बार जब मैं अपने रूम की बालकनी में ख़ड़ा था तो मुझे एहसास हुआ कि ज़िंदगी और मौत के खेल के बीच बस एक रोड ही तो मौजूद था। मेरे एक तरफ, एक अस्पताल था तो दूसरी तरफ एक स्टेडियम था। न तो स्टेडियम और न ही अस्पताल किसी भी तरह की निश्चितता की गारंटी दे सकता था। वो लम्हा बेहद खास था, अस्पताल की उस बालकनी में मुझे एहसास हुआ कि मेरे बस में बस इतना ही है कि मैं पूरी ताकत के साथ इस बीमारी से लड़ूं और अपने गेम को शानदार तरीके से खेलूं। इस एहसास ने मुझे शांत किया, मेरे जितने सवाल और बैचेनी मन में कौंध रही थी वो सभी धीरे धीरे खत्म होने लगी।
ज़िंदगी में पहली बार मैंने जाना कि आज़ादी के असल मायने क्या होते हैं। ये मुझे एक अचीवमेंट की तरह लग रहा था। ऐसा लग रहा था मानो मैं पहली बार ज़िंदगी के जादुई हिस्से को देख पा रहा हूं। मैं कॉस्मोस में विश्वास करता हूं ये समय ही बताएगा कि ये फीलिंग कब तक मेरे साथ रह पाती है लेकिन फिलहाल तो मैं कुछ ऐसा ही फील कर रहा हूं। इस पूरी यात्रा के दौरान कई लोग हैं जो मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं। वो लोग, जिन्हें मैं जानता हूं, वो भी जिन्हें मैं नहीं जानता हूं। कई जगहों से, कई टाइम जोन्स से लोग मेरे लिए प्रार्थनाएं कर रहे हैं और मुझे लगता है कि ये सभी प्रार्थनाएं एक हो चुकी हैं। ये प्रार्थनाएं मुझे खुशी, उत्सुकता से भर दे रही हैं। एक ऐसा एहसास जिसमें मैं अब ये जानता हूं कि उस छोटे से कॉर्क को नदी का बहाव रोकने की कोई जरूरत नहीं है।