राज कपूर और दिलीप कुमार बचपन के दोस्त थे। दोनों का परिवार पेशावर का रहने वाला था और दोनों परिवारों में घनिष्ठ संबंध थे। राज कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर पहले ही मुंबई आ गए थे। उनके कुछ साल बाद दिलीप कुमार के पिता लाला गुलाम सरवर अपने परिवार को मुंबई (तब बॉम्बे) ले आए। बचपन के बिछड़े दोस्त एक बार फिर मुंबई के खालसा कॉलेज में मिले। राज कपूर और दिलीप कुमार दोनों ही स्कूल की पढ़ाई करने के बाद इस कॉलेज में प्रवेश लिया था। दोनों दोस्तों में एक बार फिर पहले जैसी छनने लगी। आज 11 दिसंबर को दिलीप कुमार के जन्मदिन पर हम दोनों दोस्तों का एक मजेदार किस्सा सुनाते हैं।

दिलीप कुमार को तब दुनिया उनके असली नाम यूसुफ खान के नाम से ही जानती थी। उनके दिलीप कुमार बनने में अभी कई साल बाकी थे। आने वाले सालों में लाखों जवां दिलों की धड़कन बनने वाले दिलीप कॉलेज में काफी शर्मीले थे। वहीं राज कपूर लड़कियों से दोस्ती करने में बहुत तेज थे। उनकी कई लड़कियों से दोस्ती थी। अपने दोस्त की लड़कियों के प्रति झिझक राज कपूर को अच्छी नहीं लगती थी। उन्होने दिलीप कुमार की ये झिझक दूर करने की कोशिश की। राज कपूर अपनी क्लास की लड़कियों से दिलीप का परिचय कराते थे लेकिन दिलीप उनसे बात नहीं करते थे।

दिलीप कुमार अपनी आत्मकथा “द सब्सटैंस एंड द शैडो” में बताया है, “जब वो मुझे कॉलेज की और अपने क्लास की लड़कियों से मिलाता था तो मैं कम बोलता था और उन्हें ज्यादा बोलने देता था। मैं हमेशा इस बात का मुरीद रहा जिस तरह राज उनकी सोहबत में पेश आता था, जबकि मैं उनके बीच ज्यादा देर रहने में झिझकता था।” जो भी राज कपूर इतनी आसानी से हार मानने वाले नहीं थे।

दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में बताया है कि एक बार राज कपूर ने उन्हें बताया कि कॉलेज में पढ़ने वाली एक लड़की उनसे दोस्ती करना चाहती है। राज कपूर ने हाथों के इशारे से दूर खड़ी लड़की को दिखाया भी। राज कपूर ने उनसे लड़की के पास जाकर बात करने के लिए कहा लेकिन उसके आसपास खड़े लड़के-लड़कियों को देखकर दिलीप की हिम्मत नहीं हुई। दिलीप कुमार ने आत्मकथा में लिखा है, “तब उसने कहा ठीक है। चलो कैंटीन चलें। उसने लड़की को इशारा कर दिया। जब हम कैंटीन पहुंचे तो वो उस टेबल पर पहले से मौजूद थी जिस तरफ मुझे राज लेकर जा रहा था। मुझे उससे बात करनी थी और वो लड़की भी थोड़ी देर में समझ गई कि मुझसे दोस्ती करके वो अपना समय खराब कर रही है। वो कुछ देर बाद ही उठी और चली गई।”

(बाएं से दाएं) दिलीप कुमार, जवाहरलाल नेहरू, देव आनंद, राज कपूर। (Express archive photo)

राज कपूर ने शायद जिद ठान ली थी कि वो दिलीप की लड़कियों से झिझक दूर कराकर ही मानेंगे। इसके लिए राज कपूर ने जो तरकीब निकाली उसका पूरा ब्योरा दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में दिया है। दिलीप ने बताया है, “एक शाम वो मेरे घर आया और मुझसे कोलाबा स्थित ताज महल होटल के दूसरी तरफ प्रोमेनेड पर टहलने के लिए चलने की जिद करने लगा। जह हम गेटवे ऑफ इंडिया के पास बस से उतरे तो उसने कहा कि ‘आओ तांगे से चलें।’ मैं मान गया। हमने एक तांगा रोका और उसमें बैठ गए। अभी हमारा तांगा वाला चलने ही वाला था कि राज ने उसे रोक लिया। उसे फुटपाथ पर खड़ी दो पारसी लड़कियां खड़ी दिखीं। उन्होंने शॉर्ट फ्रॉक पहन रखा था और दोनों ही किसी बात पर खिलखिला रही थीं। राज ने अपनी गर्दन बाहर निकालकर उन्हें गुजराती में पुकारा। लड़कियां उसकी तरफ मुड़ गईं।”

(बाएं से दाएं) दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद।(Express archive photo)

राज कपूर ने फिल्मी अंदाज में दोनों लड़कियों से पूछा कि क्या वो उन्हें कहीं छोड़ सकते हैं?  लड़कियां मान गईं। और उसके बाद एक लड़की दिलीप कुमार के बगल में बैठ गई और दूसरी राज कपूर के।  दिलीप कुमार लिखते हैं, “मैंने किनारे सरककर लड़की के लिए काफी जगह दे दी थी लेकिन राज ने ऐसा कुछ नहीं किया। वो लड़की से करीब बैठा था। कुछ ही पलों की बातचीत के बाद ऐसा लग रहा था जैसे वो पुराने दोस्त हों। राज ने अपना एक हाथ लड़की के कंधे पर रख लिया था और उसने भी इसका बुरा नहीं माना। लेकिन मैं झिझक के मारे सिकुड़ा जा रहा था।” दिलीप कुमार और राज कपूर रेडियो क्लब पर तांगे से उतर गए और दिलीप ने राहत की सांस ली। दिलीप कुमार लिखते हैं, “तो ये था राज का मेरी लड़कियों के संग झिझक दूर कराने का तरीका।”