अमिताभ बच्चन धर्मेंद्र अभिनीत फिल्म शोले हिंदी फिल्म जगत की आइकॉनिक फिल्म मानी जाती है। इस फ़िल्म के डायलॉग्स और गाने आज भी लोगों की जुबान पर हैं। अकसर फिल्मों के साथ ऐसा होता है कि लोग उसके निगेटिव किरदार को भूल जाते हैं लेकिन इस फ़िल्म के साथ ऐसा नहीं हुआ। फिल्म का विलेन ‘गब्बर सिंह’ लोगों के बीच इतना लोकप्रिय हुआ कि हीरो से ज्यादा उसके डायलॉग्स चलन में आ गए। ‘सो जा वरना गब्बर आ जाएगा’, ‘कितने आदमी थे सांबा’ जैसे कितने ही डायलॉग्स आज भी लोग भूले नहीं है। लेकिन इस फिल्म के लिए गब्बर का किरदार अमजद खान नहीं बल्कि डैनी डेन्जोंगपा निभाने वाले थे।
डैनी उन दिनों हिंदी फिल्म के सबसे बेहतरीन विलेन में गिने जाते थे। ऐसे में जब रमेश सिप्पी ने अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र और हेमा मालिनी को लेकर शोले बनाने की सोची तो विलेन के किरदार के लिए डैनी को लेना चाहा। वो गब्बर के रोल में डैनी के अलावा किसी को इमेजिन नहीं कर पाए थे और इसी वजह से वो फिल्म का ऑफर लेकर डैनी के पास गए।
डैनी के पास उन दिनों डेट्स की कमी थी और इसलिए उन्होंने फिल्म करने से इनकार कर दिया। एक इंटरव्यू में डैनी ने बताया था कि जब उन्हें शोले के निर्देशक रमेश सिप्पी ने फिल्म का ऑफर दिया तब वो फिल्म धर्मात्मा के लिए फिरोज़ खान को अपनी डेट्स दे चुके थे। फिल्म की शूटिंग अफगानिस्तान के इलाके में चल रही थी और निर्देशक ने बयाकदा अफगानिस्तान की सरकार से उसकी परमिशन भी ले रखी थी।
ऐसे में शूट को टालना नामुमकिन था जिसके बाद डैनी ने फिल्म से इनकार कर दिया था। डैनी ने यह भी बताया था कि उन्हें इस बात का कोई पछतावा नहीं कि उन्होंने गब्बर का रोल नहीं किया।
इस फिल्म में गब्बर सिंह के रोल को और अधिक नेगेटिव लुक देने के लिए डायरेक्टर ने बहुत प्रयास किए थे। गब्बर ने जो कपड़ा पहना था उसे चोर बाजार से खरीदा गया था। पूरी शूटिंग के दौरान गब्बर की वर्दी को एक बार भी नहीं धोया गया था।
फ़िल्म में गब्बर का किरदार एक वास्तविक डाकू से प्रेरित था। गब्बर नाम का एक डाकू चंबल घाटी में हुआ करता था। जया भादुड़ी के पिता ने उसके जीवन पर ‘अभिशप्त चंबल’ नाम की किताब भी लिखी थी। किताब के मुताबिक, वो पुलिस वालों को पकड़कर उनके नाक कान काट देता था।