70 के शुरुआती दशक में जब राजेश खन्ना का सूरज चढ़ना शुरू हुआ तब उनके सामने फिल्मों की लाइन लग गई थी। हर एक्ट्रेस उनके साथ काम करना चाहती थीं। इससे तीन चार सालों पहले की ही बात थी कि स्थापित अभिनेत्रियां उनके साथ काम करने से हिचकिचाती थीं। आशा पारेख भी उन्हीं अभिनेत्रियों में थीं। आशा पारेख ने काका के साथ काम करने से इनकार कर दिया था और उन्हें बदसूरत कह दिया था।

राजेश खन्ना अभी इंडस्ट्री में नए ही थे। 1966 की फिल्म आखिरी खत से उन्होंने करियर की शुरुआत की थी और वो राज, औरत जैसी फिल्मों के बाद बहारों के सपने फिल्म में कास्ट किए गए थे। इस फिल्म को नासिर हुसैन निर्देशित कर रहे थे और फिल्म की हीरोइन थीं, आशा पारेख जो इंडस्ट्री का मशहूर नाम थीं।

जब उन्होंने सुना कि उनके अपोजिट राजेश खन्ना को कास्ट किया गया है तो उन्होंने फिल्म करने से साफ इनकार कर दिया। राजेश खन्ना की शुरुआती फिल्में पहले ही फ्लॉप हो चुकी थीं और आशा पारेख को इससे भी बड़ी परेशानी उनके मुंह पर निकले मुंहासों से थी। दरअसल उस दौरान राजेश खन्ना के चेहरे पर मुंहासे निकल आए थे जिसे लेकर आशा परेश ने उनके साथ काम करने से इनकार कर दिया था।

उन्हीं दिनों आशा परेश और निर्देशक नासिर हुसैन के बीच अफेयर का सिलसिला भी चल रहा था। नासिर हुसैन ने राजेश खन्ना को लेकर फिल्म बनाने की ठान ली थी और इधर आशा पारेख तैयार नहीं थीं। हालांकि निर्देशक ने उन्हें मना ही लिया और फिल्म की शूटिंग शुरू हुई। कहा जाता है कि फिल्म की शूटिंग के दौरान आशा पारेख राजेश खन्ना के साथ सहज नहीं रहती थीं जिस बात से काका हमेशा परेशान रहते थे। इसका असर उनके परफॉर्मेंस पर भी हुआ।

 

इसी दौरान आशा पारेख उन्हें गोरखा कहकर चिढ़ाती थीं जिस बात से भी काका को काफी बुरा लगता था। लेकिन वो नए एक्टर थे, स्थापित अभिनेत्री को कुछ कह नहीं पाते थे। इस खटपट का असर फिल्म पर हुआ और जब फ़िल्म जून 1967 में रिलीज हुई तो बुरी तरह फ्लॉप रही।

हालांकि बाद के वर्षों में जब राजेश खन्ना सुपरस्टार बन गए तो आशा पारेख ने उनके साथ कई फिल्में की जिनमें आन मिलो सजना, कटी पतंग, धर्म और कानून शामिल हैं।

 

आशा पारेख ने आन मिलो सजना में राजेश खन्ना के साथ जो काम किया, उसकी खूब तारीफ हुई थी। इस फिल्म की शूटिंग से जुड़ा किस्सा पारेख ने पिछले साल एक इंटरव्यू में बताया था, ‘वो राजेश खन्ना का गोल्डन पीरियड था। हम जब फिल्म की शूटिंग कश्मीर में कर रहे थे, हमेशा उनके आस पास भीड़ जमा रहती थी। लड़कियां मरती थीं उन पर और वो झुंड में बस उनकी एक झलक देखने के लिए आती थीं।’