संजय लीला भंसाली निर्देशित फिल्म पद्मावत पर पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है। कुछ लोग फिल्म की वजह से राजपूत समुदाय का अपमान होने का आरोप लगाकर विरोध प्रदर्शन और हिंसा पर उतारू हैं। वहीं, बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें फिल्म का कंटेंट कुछ खास पसंद नहीं आया है। कुछ का कहना है कि फिल्म में खिलजी का किरदार कुछ ज्यादा ही नकारात्मक दिखाया गया है तो वहीं कुछ ने ढीला ढाला स्क्रीनप्ले होने की बात कही है। पत्रकार से राजनेता बने आशुतोष ने तो यहां तक कह दिया कि भंसाली को फिल्म मेकिंग दोबारा से सीखनी चाहिए।

इस बीच, एक्ट्रेस स्वरा भास्कर ने भी फिल्म के डायरेक्टर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। स्वरा भास्कर का आरोप है कि फिल्म में सती और जौहर प्रथा का महिमामंडन किया गया है। स्वरा फिल्म के जरिए स्त्रियों की पेश हुई छवि से भी बेहद आहत हैं। स्वरा ने अपनी बात एक ओपन लेटर के जरिए रखी है, जिसे अंग्रेजी वेबसाइट द वायर ने प्रकाशित किया है। स्वरा अनारकली ऑफ आरा, तनु वेड्स मनु, प्रेम रतन धन पाओ, निल बटे सन्नाटा जैसी फिल्मों से बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बना चुकी हैं।

ओपन लेटर की शुरुआत में स्वरा भास्कर भंसाली की जमकर तारीफ करती हैं। उन्होंने एक वीडियो भी डाला है, जिसमें वह फिल्म के खिलाफ हो रहे विरोध को लेकर भंसाली का समर्थन करती दिखती हैं। हालांकि, स्वरा की भंसाली को लेकर नाराजगी उनकी उस टिप्पणी से जाहिर होती है, जिसके मुताबिक निर्देशक ने महिलाओं को ‘वजाइना’ के तौर पर सीमित कर दिया है। फिल्म के आखिर में रानी पद्मावती द्वारा इज्जत की रक्षा के लिए खुद को जला देने के दृश्य पर वह लिखती हैं, ‘सर, महिलाओं को रेप का शिकार होने के अलावा जिंदा रहने का भी हक है।

पुरुष का मतलब आप जो भी समझते हो-पति, रक्षक, मालिक, महिलाओं की सेक्शुअलिटी तय करने वाले, उनकी मौत के बावजूद महिलाओं को जीवित रहने का हक है।’ स्वरा आगे और भी तल्ख रुख अपनाते हुए कहती हैं, ‘महिलाएं चलती-फिरती वजाइना नहीं हैं। हां महिलाओं के पास यह अंग होता है लेकिन उनके पास और भी बहुत कुछ है। इसलिए लोगों की पूरी जिंदगी वजाइना पर केंद्रित, इस पर नियंत्रण करते हुए, इसकी हिफाजत करते हुए, इसकी पवित्रता बरकरार रखते हुए नहीं बीतनी चाहिए।’

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स्वरा आगे लिखती हैं, ‘वजाइना के बाहर भी एक जिंदगी है। बलात्कार के बाद भी एक जिंदगी है।’ स्वरा का आरोप है कि भंसाली की फिल्म ऑनर किलिंग, जौहर, सती जैसी कुप्रथाओं को महिमांडित करती है। स्वरा यह भी मानती हैं कि यह फिल्म ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है और सती और जौहर आदि कुप्रथाएं हमारे समाज का ही हिस्सा रही हैं। हालांकि, वह कहती हैं कि फिल्म की शुरुआत में सती-जौहर प्रथा के खिलाफ डिस्क्लेमर दिखा कर निंदा कर देने भर का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि इसके आगे तीन घंटे तक राजपूत आन-बान-शान का महिमंडन चलता है।

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